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अग्निहोत्र – वायु शुद्धि, देह शुद्धि, मनोशुद्धि तथा ईश्वरोपासना का माध्यम

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_*अग्निहोत्र – वायु शुद्धि, देह शुद्धि, मनोशुद्धि तथा ईश्वरोपासना का माध्यम*

बिहार न्यूज़ लाइव /त्रिकालज्ञानी संतों ने बताया ही है कि भीषण आपातकाल आनेवाला है तथा उसमें संपूर्ण विश्‍व की प्रचंड जनसंख्या नष्ट होनेवाली है । वास्तव में आपातकाल आरंभ हो चुका है । आपातकाल में तीसरा विश्व युद्ध आरंभ होगा । द्वितीय विश्‍वयुद्ध की तुलना में वर्तमान में विश्‍व के लगभग सभी राष्ट्रों के पास महासंहारक परमाणु अस्त्र हैं । ऐसे में वे एक-दूसरे के विरुद्ध प्रयुक्त किए जाएंगे । इस युद्ध में सुरक्षित रहना हो, तो उसके लिए परमाणु अस्त्रों को निष्क्रिय करने के प्रभावी उपाय करने चाहिए । साथ ही इन आण्विक अस्त्रों से प्रक्षेपित किरणों को नष्ट करने के भी उपाय चाहिए । इसमें स्थूल उपाय उपयोगी सिद्ध नहीं होंगे; क्योंकि बम की तुलना में अणुबम सूक्ष्म है । स्थूल (उदा. बाण मारकर शत्रु का नाश करना), स्थूल और सूक्ष्म (उदा. मंत्र का उच्चारण कर बाण मारना), सूक्ष्मतर (उदा. केवल मंत्र बोलना) एवं सूक्ष्मतम (उदा. संतों का संकल्प) इस प्रकार के उत्तरोत्तर प्रभावी चरण होते हैं । स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म कई गुना अधिक प्रभावशाली है । इस कारण अणुबम जैसे प्रभावी संहारक के विकिरण को रोकने के लिए सूक्ष्मदृष्टि से कुछ करना आवश्यक है । इसलिए ऋषि-मुनियों ने यज्ञ के प्रथमावतार रूपी अग्निहोत्र का उपाय बताया है । यह करने में अति सरल तथा अत्यल्प समय में होनेवाला; किंतु प्रभावी रूप से सूक्ष्म परिणाम साधने में सहायक उपाय है । अग्निहोत्र से वातावरण चैतन्यमय बनता है तथा सुरक्षा-कवच भी निर्मित होता है ।

*अग्निहोत्र कैसे करें -*

अग्निहोत्र करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठे व अग्नि प्रज्ज्वलित करें।

*अग्नि प्रज्वलित करने की विधि :* हवनपात्र के तल में उपले का एक छोटा टुकडा रखें । उस पर उपले के टुकडों को घी लगाकर उन्हें इस प्रकार रखें (उपलों के सीधे-आडे टुकडोें की 2-3 परतें) कि भीतर की रिक्ति में वायु का आवागमन हो सके । पश्‍चात उपले के एक टुकडे को घी लगाकर उसे प्रज्वलित करें तथा हवनपात्र में रखें । कुछ ही समय में उपलों के सब टुकडे प्रज्वलित होंगे । अग्नि प्रज्वलित होने के लिए हवा देने के लिए हाथ के पंखे का उपयोग कर सकते हैं; परंतु मुंह से फूंककर अग्नि प्रज्वलित न करें । ऐसा करने से मुंह के कीटाणु अग्नि में जाएंगे । अग्नि प्रज्वलित करने के लिए मिट्टी के तेल जैसे ज्वलनशील पदार्थों का भी उपयोग न करें । अग्नि निर्धूम प्रज्वलित रहे अर्थात उससे धुआं न निकले ।

*अग्निहोत्र मंत्र*

*सूर्योदय के समय*
सूर्याय स्वाहा, सूर्याय इदं न मम ।
प्रजापतये स्वाहा, प्रजापतय इदं न मम

*सूर्यास्त के समय*
अग्नये स्वाहा, अग्नय इदं न मम ।
प्रजापतये स्वाहा, प्रजापतय इदं न मम ॥

*अग्नि में हवन द्रव्य छोड़ना -* चावल के दो चुटकी दाने हथेली पर अथवा तांबे की थाली में लेकर उस पर गाय के घी की कुछ बूंदें डालें । सूर्योदय के (या सूर्यास्त के) वास्तविक समय प्रथम मंत्र बोलें तथा स्वाहा शब्द के उच्चारण के उपरांत दाहिने हाथ की मध्यमा, अनामिका तथा अंगूठे की चुटकी में अक्षत-घी का मिश्रण लेकर अग्नि में छोडें । (चुटकीभर अक्षत पर्याप्त होते हैं ।) अब दूसरा मंत्र बोलें तथा स्वाहा: शब्द बोलने के पश्‍चात दाहिने हाथ से पहले की भांति अक्षत-घी का मिश्रण अग्नि में छोडें ।

*मंत्र बोलते समय भाव कैसा हो ? :* मंत्रों में सूर्य, अग्नि, प्रजापति शब्द ईश्‍वरवाचक हैं । इन मंत्रों का अर्थ है, सूर्य, अग्नि, प्रजापति इनके अंतर्यामी स्थित परमात्मशक्ति को मैं यह आहुति अर्पित करता हूं । यह मेरा नहीं । समस्त सृष्टि का निर्माण तथा उसका पालन-पोषण करनेवाली परमात्मशक्ति के प्रति शरणागतभाव का कथन इस मंत्र में किया गया है । (घर का एक व्यक्ति अग्निहोत्र करे और उस समय अन्य सदस्य वहां उपस्थित रहकर आहुति देनेवाले के साथ अग्निहोत्र के मंत्र बोल सकते हैं ।)

*अग्निहोत्र मंत्र के लाभ -* इस मंत्र के अनंत लाभ बताए गए हैं। इनमें से कुछ लाभ निम्नलिखित हैं – इस यज्ञ को करने से वायु शुद्ध होती है, यह यज्ञ लोगों को रोग मुक्त बनाता है. धन धान्य की समस्या, खाद्यान की समस्या, संतान प्राप्ति की समस्या दूर होती है, यहाँ तक की मोक्ष की प्राप्ति होती है. यज्ञ से उत्पन्न धुएं से आस – पास का दूषित वातावरण शुद्ध व स्वच्छ हो जाता है। इससे आस – पास के कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इस यज्ञ को करने से लोगों के मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न होता है। इस यज्ञ को करने से व्यक्ति अन्य लोगों की अपेक्षा निरोगी बनते हैं व स्वस्थ रहते हैं। यज्ञ के दौरान मंत्रोच्चारण से ईश्वर की कृपा सदा बनी रहती है।

इस संसार में परमेश्वर ने हमें सब कुछ प्रदान किया है, कृतज्ञतावश हमें प्रतिदिन अग्निहोत्र करने के लिए समय निकालना चाहिए। इस यज्ञ को स्वयं करना चाहिए व दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

*सन्दर्भ :* सनातन संस्था का ग्रंथ ‘अग्निहोत्र’

 

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