अंकित सिंह,भरगामा (अररिया)
मां दुर्गा तीनों लोकों में सर्व शक्तिमान है. ब्रह्मांड में मौजूद हर तरह की शक्ति इन्हीं की कृपा से प्राप्त होती है और अंत में इन्ही में समाहित हो जाती है,इसीलिए माता दुर्गा को आदि शक्ति भी कहा जाता है. देवताओं ने भी जब राक्षसों के साथ युद्घ में स्वयं को कमजोर महसूस किया तब मां दुर्गा ने उनके शरणागत होने पर प्रचंड रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और देवताओं एवं धर्म की रक्षा की. इस जगत की पालनहार माता हीं है जिनकी कृपा से सबकुछ होता है,इसलिए इन को जगत जननी भी कहा जाता है,मां दुर्गा अपने भक्तों और धरती पर धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए अनेक रूप में प्रकट हुई है. भक्तगण इनको अलग-अलग रूपों और अलग-अलग नामों से पूजते हैं.
कोई शीतला माता,कोई काली माता,कोई मंगला माता तो कोई मां वैष्णवी के रूप में पूजता है. मां दुर्गा के अनेक रूप और नाम हैं,मां के इन्हीं अनेक रूपों और नामों में से एक मां महथावावाली भी है. उक्त बातें सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के पुजारी हरेराम झा ने कही. उन्होंने कहा कि अररिया जिले के भरगामा प्रखंड इलाके के सिरसिया हनुमानगंज पंचायत में महथावावाली दुर्गा माता का प्रसिद्द मंदिर है. इस सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में 16 वर्षों से मां दुर्गे की प्रतिमाएं स्थापित हो रही है. यह मंदिर धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है. यहां 16 वर्षों से पारंपरिक तरीके से दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है. पूजा के दौरान कई देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है.
मंदिर कमेटी और प्रशासन के सहयोग से भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है. मेले में हर साल कलश स्थापना पूजा से लेकर दशमी पूजा तक सांस्कृतिक कार्यक्रम का धूमधाम से आयोजन किया जाता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि माता का वैष्णवी स्वरूप भक्तजनों के हर एक मनोकामनाएं को पूर्ण करती है. ग्रामीणों ने बताया कि नवरात्र के मौके पर आस-पास सहित दूर-दराज के भक्तों की भारी भीड़ जमा हो जाती है.
यहां के हर एक गली और सड़क खचाखच भर जाती है. बताया जाता है कि यहां माता के मंदिर में आने वाले भक्तों खाली हाथ नहीं लौटते हैं. पुत्र,पौत्रादि,नौकरी,सुख,वैभव,दौलत,शौहरत सब मनोकामना पूर्ण होती है. असाध्य रोगी भी माता के दरबार में आने के बाद स्वस्थ हो जाता है. मनोकामनाएं पूर्ण होने पर श्रद्धालु मां दुर्गा के चरणों में सोने-चांदी आदि के जेवर चढ़ाते हैं. सभी चढ़ावे को एकत्रित कर दुर्गा पूजा में माता दुर्गा को पहनाया जाता है. दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु भक्तों के समस्याओं को दूर करने हेतु स्थानीय ग्रामीण एवं सभी वर्गों के युवा संघ सतत व्यवस्था व देख-रेख में लगे रहते हैं.
यह है मां दुर्गा मंदिर का इतिहास,वर्ष 2009 में रखी गई मंदिर की नींव
महथावा से लेकर अररिया जिले में अध्यात्म की स्वर्णिम छटा बिखेर रही सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के बारे में बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि महथावा के रामविलास भगत,कमल किशोर साह,गणेश दास ने वर्ष 2009 में इस मंदिर का आधारशिला रखा था. जिसके बाद इस मंदिर को ग्रामीणों के सौजन्य से निर्माण कराया गया. इसके बाद मां में अपार श्रद्धा रखने वाले श्रद्धालुओं का विश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ता गया और देवी की कृपा से समाज शांति एवं सदभाव के साथ प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता गया. जिसका फलाफल है कि फूस का यह मंदिर आज भव्य स्वरूप ले चुका है. सामाजिक सहयोग से आज जिला के सबसे बड़े दुर्गा मंदिर के रूप में इसी मंदिर को पहचाना जाता है.
सालों भर होते रहते हैं धार्मिक अनुष्ठान
इस मंदिर में सालों भर कोई न कोई विशेष धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं. पूजा के समय का नजारा यहां देखते हीं बनता है. इस मंदिर के पुजारी हरेराम झा ने बताया कि माँ महथावा वाली मैया के दरबार की ऐसी मान्यता है कि मां के दरबार में यदि कोई भी भक्त सच्चे मन से उनकी पूजा-अर्चना करता है तो मां उसकी मनोकामनाएं को अवश्य पूरा करती है. वैसे तो प्रत्येक दिन मां के दर्शनों के लिए मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है,लेकिन नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है.
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