Bihar News Live
News, Politics, Crime, Read latest news from Bihar

जीवन की खुशहाली और अखंड सुहाग का पर्व ‘गणगौर’

241

- sponsored -

 

बिहार न्यूज़ लाइव /

- Sponsored -

जीवन की खुशहाली और अखंड सुहाग का पर्व ‘गणगौर’
गणगौर एक ऐसा त्यौहार है, जो जन मानस की भावनाओं से जुड़ा है। ग्राम्य जीवन की वास्तविकताओं के दर्शन है इसमें। देवी देवताओं और धार्मिक आस्था से जुड़े ये त्यौहार जीवन की वास्तविकताओं से परिचित करवाते है। गणगौर का त्यौहार ऐसे समय में आता है जब फसल कटकर आ चुकी है। कृषक वर्ग फुरसत में है। आर्थिक रूप से भी हाथ मजबूत है। ऐसे में माहौल और खुशमिजाज हो जाता है। लोगों की धार्मिक आस्था भी मजबूत हो जाती है। दुगुने जोश खरोश से जिंदगी चलने लगती है। एक नई ऊर्जा पैदा हो जाती है। एक और खास बात धर्म के माध्यम से, मीठे मीठे गीतों के जरिये बेटियों को जीवन जीने की उचित शिक्षा मिल जाती है। वो भी बिना कुछ कहे।  यह पर्व नारी को शक्तिशाली और संस्कारी बनाने का अनूठा माध्यम है। वैयक्तिक स्वार्थों को एक ओर रखकर औरों को सुख बांटने और दुःख बटोरने की मनोवृत्ति का संदेश है। गणगौर संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं को प्रेम और एकता में बांधने का निष्ठासूत्र है।

-प्रियंका सौरभ

गणगौर राजस्थानी आन-बान-शान का प्राचीन पर्व हैं। हर युग में कुंआरी कन्याओं एवं नवविवाहिताओं का अपितु संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा संबंध इस पर्व से जुड़ा रहा है। यद्यपि इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मान्यता प्राप्त है किन्तु जीवन मूल्यों की सुरक्षा एवं वैवाहिक जीवन की सुदृढ़ता में यह एक सार्थक प्रेरणा भी बना है। यह पर्व सांस्कृतिक, पारिवारिक एवं धार्मिक चेतना की ज्योति किरण है। इससे हमारी पारिवारिक चेतना जाग्रत होती है, जीवन एवं जगत में प्रसन्नता, गति, संगति, सौहार्द, ऊर्जा, आत्मशुद्धि एवं नवप्रेरणा का प्रकाश परिव्याप्त होता है। यह पर्व जीवन के श्रेष्ठ एवं मंगलकारी व्रतों, संकल्पों तथा विचारों को अपनाने की प्रेरणा देता है।

गणगौर राजस्थान एवं मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के निमाड़, मालवा, बुंदेलखण्ड और ब्रज क्षेत्रों का एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीज) को आता है। इस दिन कुँवारी लड़कियाँ एवं विवाहित महिलाएँ शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए “गोर गोर गोमती” गीत गाती हैं। इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर, सिन्दूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चन्दन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है। गण (शिव) तथा गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियाँ मनपसन्द वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।

होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक, 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार है -गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा अठारह दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव ) उन्हें फिर लेने के लिए आते हैं ,चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है। गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के उपरांत अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रीत के रूप में भी प्रचलित है।

 गणगौर का पवित्र त्योहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है त्योहार के अंतिम दिन प्रत्येक गांव में भंडारे का आयोजन होता है तथा माता की विदाई की जाती है गणगौर पूजन में कन्याएँ और महिलाएँ अपने लिए अखण्ड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से प्रतिवर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं। अक्सर यह बात कही जाती है कि, चैत्र शुक्ला तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ था। उसी की याद में यह त्योहार मनाया जाता है। कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शंकर की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया तथा उन्हीं के तीसरे नेत्र से भष्म हुए अपने पति को पुनः जीवन देने की प्रार्थना की। रति की प्रार्थना से प्रसन्न हो भगवान शिव ने कामदेव को पुनः जीवित कर दिया तथा विष्णुलोक जाने का वरदान दिया। उसी की स्मृति में प्रतिवर्ष गणगौर का उत्सव मनाया जाता है।

 गणगौर राजस्थान एवं मध्यप्रदेश का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इस नृत्य में कन्याएँ एक दूसरे का हाथ पकडे़ वृत्ताकर घेरे में गौरी माँ से अपने पति की दीर्घायु की प्रार्थना करती हुई नृत्य करती हैं। इस नृत्य के गीतों का विषय शिव-पार्वती, ब्रह्मा-सावित्री तथा विष्णु-लक्ष्मी की प्रशंसा से भरा होता है। उदयपुर जोधपुर बीकानेर और जयपुर को छोड़कर राजस्थान के कई नगरों की प्राचीन परम्परा है। गणगौर नृत्य मध्य प्रदेश के निमाड़ अंचल का प्रमुख नृत्य है।

गणगौर एक ऐसा त्यौहार है, जो जन मानस की भावनाओं से जुड़ा है। ग्राम्य जीवन की वास्तविकताओं के दर्शन है इसमें। देवी देवताओं और धार्मिक आस्था से जुड़े ये त्यौहार जीवन की वास्तविकताओं से परिचित करवाते है। गणगौर का त्यौहार ऐसे समय में आता है जब फसल कटकर आ चुकी है। कृषक वर्ग फुरसत में है। आर्थिक रूप से भी हाथ मजबूत है। ऐसे में माहौल और खुशमिजाज हो जाता है।
लोगों की धार्मिक आस्था भी मजबूत हो जाती है। दुगुने जोश खरोश से जिंदगी चलने लगती है। एक नई ऊर्जा पैदा हो जाती है। एक और खास बात धर्म के माध्यम से, मीठे मीठे गीतों के जरिये बेटियों को जीवन जीने की उचित शिक्षा मिल जाती है। वो भी बिना कुछ कहे। क्योंकि बेटियां यह सब देख सुनकर अपने आप को उसी रंग में ढालने लग जाती है। हर माता पिता चाहते है कि बेटियों को अच्छा घर परिवार मिले और सुखी रहे।

नाचना और गाना तो इस त्यौहार का मुख्य अंग है ही। घरों के आंगन में, सालेड़ा आदि नाच की धूम मची रहती है। परदेश गए हुए इस त्यौहार पर घर लौट आते हैं। जो नहीं आते हैं उनकी बड़ी आतुरता से प्रतीक्षा की जाती है। आशा रहती है कि गणगौर की रात को जरूर आयेंगे। झुंझलाहट, आह्लाद और आशा भरी प्रतीक्षा की मीठी पीड़ा को व्यक्त करने का साधन नारी के पास केवल उनके गीत हैं। ये गीत उनकी मानसिक दशा के बोलते चित्र हैं।

गौर गौर गोमती
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला , गौर का सोना का टीका
टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो
करता करता आस आयो वास आयो
खेरे खांडे लाडू आयो , लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले मने पाल दी , पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला , सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा , गेंहू ग्यारा , राण्या पूजे राज ने , म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को राज बढ़तो जाए , म्हाको सुहाग बढ़तो जाय ,
कीड़ी- कीड़ी , कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात है , जात है गुजरात है ,
गुजरात्यां को पाणी , दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में सिंघोड़ा , बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो , सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो
झर झरती जलेबी ल्यो , हर-हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो
इस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में बोलें : एक-लो , दो-लो ……..सोलह-लो।

भौतिक एवं भोगवादी भागदौड़ की दुनिया में गणगौर का पर्व दुःखों को दूर करने एवं सुखों का सृजन करने का प्रेरक है। यह पर्व दाम्पत्य जीवन के दायित्वबोध की चेतना का संदेश हैं। इसमें नारी की अनगिनत जिम्मेदारियों के सूत्र गुम्फित होते हैं। यह पर्व उन चैराहों पर पहरा देता है जहां से जीवन आदर्शों के भटकाव की संभावनाएं हैं, यह उन आकांक्षाओं को थामता है जिनकी गति तो बहुत तेज होती है पर जो बिना उद्देश्य बेतहाशा दौड़ती है। यह पर्व नारी को शक्तिशाली और संस्कारी बनाने का अनूठा माध्यम है। वैयक्तिक स्वार्थों को एक ओर रखकर औरों को सुख बांटने और दुःख बटोरने की मनोवृत्ति का संदेश है। गणगौर संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं को प्रेम और एकता में बांधने का निष्ठासूत्र है। इसलिए गणगौर का मूल्य केवल नारी तक सीमित न होकर सम्पूर्ण मानव के मनों तक पहुंचे, तभी इस पर्व को मनाने की सार्थकता है। 

- Sponsored -

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

- sponsored -

- sponsored -

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More