◆ शम्भुआ में रामचन्द्र सिंह उर्फ भाईजी के निधन उपरांत गरुड़पुराण कथा समाप्त करते हुए कथावाचक ने कही
दलसिंहसराय (समस्तीपुर ) अज्ञान के कारण जीव जन्म-मरणरूपी संसार चक्र में पड़ता है तथा सभी प्रकार के दु:खों से मलिन तथा साररहित इस भयावह संसार में अनेक प्रकार के शरीर धारण करके अनन्त जीवराशियाँ उत्पन्न होती हैं और मरती हैं, उनका कोई अन्त नहीं है। उक्त बातें शम्भुआ में रामचन्द्र सिंह उर्फ भाईजी के निधन उपरांत गरुड़पुराण कथा समाप्त करते हुए कथावाचक पंडित बसंत कुमार झा ने कही । पंडित श्री झा ने आगे कहा कि ये सभी सदा दु:ख से पीड़ित रहते हैं, इन्हें कहीं सुख नहीं प्राप्त होता।
जिसके सुनने मात्र से मनुष्य संसार से मुक्त हो जाता है। वह परब्रह्म परमात्मा निष्कल (कलारहित) परब्रह्मस्वरूप, शिवस्वरूप, सर्वज्ञ, सर्वेश्वर, निर्मल तथा अद्वय द्वैतभावरहित है। वह परमात्मा स्वत: प्रकाश है, अनादि, अनन्त, निर्विकार, परात्पर, निर्गुण और सत्-चित्-आनन्दस्वरूप है। यह जीव उसी का अंश है। जैसे अग्नि से बहुत से स्फुलिंग अर्थात चिंगारियाँ निकलती हैं उसी प्रकार अनादिकालीन अविद्या से युक्त होने के कारण अनादि काल से किये जाने वाले कर्मों के परिणामस्वरुप देहादि उपाधि को धारण करके जीव भगवान से पृथक हो गए हैं। वे जीव प्रत्येक जन्म में पुण्य और पापरूप सुख-दु:ख प्रदान करने वाले कर्मों से नियंत्रित होकर तत्तत् जाति के योग से देह(शरीर), आयु और कर्मानुरोधी भोग प्राप्त करते हैं।
अंत मे 16 अध्याय करने के अंतिम देर रात कथावाचक पंडित बसंत झा ने कहा कि उद्भिज्ज, स्वेदज और पिण्डज जरायुज – इन चार प्रकार के शरीरों को सहस्त्रों बार धारण करके उनसे मुक्त होकर सुकृतवश पुण्यप्रभाव से जीव मनुष्य-शरीर प्राप्त करता है और यदि वह ज्ञानी हो जाए तो मोक्ष प्राप्त कर लेता है। मौके पर अधिवक्ता नवल किशोर सिंह , विनोद कुमार सिंह, दिग्विजय सिंह , सुनील कुमार सिंह ,श्रीराम सिंह , सुमन कुमार सिंह , संजय कुमार सिंह , सुधीर कुमार सिंह , संतोष कुमार सिंह प्रभात कुमार सिंह ,सीताराम झा , राम ज्योति देवी , सुशीला देवी , कुसुम देवी , मंजू देवी , रेखा देवी, पिंकी सिंह , आशा सिंह , शोभा सिंह , रंजना सिंह ,विभा सिंह , राजनी , शिवम, अंकुश ,अनिकेत , विकास , आदेश , आदित्य, आनंद ,आर्यन , अभिनव , आर्यन,आदर्श , नवरत्न समेत दर्जनों श्रोता शामिल थे।