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महादेव की न्यारी काशी में माँ दुर्गा क़े चौथे रूप में माँ कुष्माडा पूजी जाती हैं

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संवाददाता/सौरभ मिश्रा

माँ कुष्मांडा स्वरूप के दर्शन पूजन करने रोग और शोक का हरण होता है मनुष्य क़े समस्त पापों का क्षय भी होता हैं ।काशी नगरी में नवरात्र में देवी दर्शन के क्रम में चतुर्थी तिथि शारदीय नवरात्र की इस तिथि पर देवी के कूष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन करने का विधान है।काशी में देवी के प्रकट होने की कथा राजा सुबाहु से जुड़ी हुई है। काशी में देवी माँ कुष्मांडा का मंदिर विशाल कुंड के निकट है। माना जाता है कि इस कुंड का सीधा संबंध मां गंगा से है। इसका जल कभी नहीं सूखता है।

माँ क़े मंद मुस्कान से पिंड से ब्रहमांड तक का सृजन देवी ने कूष्मांडा स्वरूप में ही किया था।बंगाल रानी भवानी ने निर्माण करवाया था। वाराणसी के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। 1760 ईस्वी में बने इस मंदिर का निर्माण बंगाल के नाटोर राज्य की महारानी रानी भवानी ने करवाया था वर्तमान में नटोर स्थान बांग्लादेश में स्थित है। काशी में स्थित यह मंदिर माता कूष्माण्डा देवी को समर्पित है, यह मंदिर काशी में स्थित नवदुर्गा मंदिरों में से एक है। माता कूष्माण्डा देवी माँ दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप है। इस मंदिर से सटा हुआ एक सुंदर सा कुण्ड भी है। जिस कारण इस स्थान को दुर्गाकुंड के नाम से जाना जाता है।

 

रानी भवानी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में इनका नाम अर्धबंगेश्वरी (অর্ধবঙ্গেশ্বরী) था। सन 1748 में पति की मृत्यु के बाद रानी भवानी ने संपूर्ण राजशाही जमींदारी का भार स्वयं उठाया।इसी क्रम में रानी भवानी ने काशी में स्थित दुर्गाकुंड मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। यह मंदिर माता कूष्माण्डा देवी को समर्पित है।पौराणिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर आदिकालीन है। इस मंदिर का उल्लेख काशी खण्ड में भी वर्णित है।

 

इस कुण्ड के संदर्भ में देवी भागवत अध्याय 23 में एक कथा है, काशी नरेश सुबाहू नें अपनी पुत्री शशि कला का विवाह करने के लिए एक स्वयंवर बुलाया। लेकिन राजकुमारी के मन में वनवासी राजकुमार सुदर्शन के प्रति अगाध प्रेम जानकर उन्होंने गुपचुप ढंग से वैदिक रीति से विवाह कार्य संपन्न कर दिया। जब यह समाचार अन्य राजाओं को मिला तो वह आग बबूला हो अपनी सेनाएं लेकर राजकुमार सुदर्शन का मार्ग रोक कर युद्ध करने के लिए तत्पर हो गए।

 

राजकुमार सुदर्शन माता दुर्गा का परम भक्त था, अतः उसने माता का ध्यान किया। सुदर्शन द्वारा ध्यान करने पर माता साक्षात सिंह पर सवार होकर सुदर्शन के पक्ष में युद्ध करने लगी, जिससे राजकुमार सुदर्शन को विजय प्राप्त हुई। तब देवी की स्तुति करते हुए काशी नरेश ने देवी से वरदान मांगा की माता की अब आप मेरी काशी नगरी में सदा विराजने की कृपा करिए।

 

भगवती दुर्गा के नाम से यहां आप शक्ति के रूप में विराजमान हो आपको काशीपुरी की निरंतर रक्षा करनी चाहिए। जिस प्रकार शत्रु के समूह से सुदर्शन की रक्षा की है माता वैसे ही आप काशी की भी रक्षा करते रहिए। काशीपुरी जब तक धरा धाम पर रहे तब तक आप का यहां रहना अति आवश्यक है। मुझे यही वरदान देने की कृपा करें। मान्यता है की देवी भागवत में वर्णित कथा के अनुसार मां जगदंबा दुर्गा मंदिर इसी दुर्गकुंड पर स्थित है। माना जाता हैं की माँ यहाँ प्रकट हुई थीं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित नहीं है। ऐसा माना जाता है कि यही मां दुर्गा प्रकट हुई थी, अतः जहां भी देवी माता प्रकट होती है वहां उनके प्रतीकात्मक चिन्हों की पूजा की जाती है। यहां इस मंदिर में माता के मुखौटे एवं चरण पादुका की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। बीस यंत्र क़े आधार पे बना हैं, दर्शन मात्र से समृद्धि और वैभव मिलता हैं।

यह मंदिर बीसा यंत्र के आधार पर बनाया गया है। इसका उल्लेख तंत्र शास्त्रों में मिलता है। यह मंदिर तांत्रिक दृष्टिकोण से भी अति महत्वपूर्ण है, यह वर्ष भर में दूर-दूर से तांत्रिक अपनी तंत्र सिद्धि के लिए भी आते हैं। बीसा यंत्र के आधार पर बने संरचनाओं में मंत्र सिद्धि बहुत ही आसानी से हो जाती है। ऐसी जगह पर ध्यान इत्यादि करने से धन समृद्धि वैभव की प्राप्ति होती है एवं तनाव कष्ट एवं रोग से मुक्ति मिलती है।

 

दुर्गाकुण्ड मंदिर भारतीय नागर शैली पर बना हैं ।

मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली में बनाया गया है। चौकोर आकार में बना यह मंदिर पूर्ण रूप से पत्थरों से बना हुआ है। यह मंदिर गेरू के साथ लाल रंग से रंगा हुआ है, यह गेरुआ लाल रंग शक्ति एवं मां दुर्गा का रंग माना जाता है।

कुंड का रहस्य माँ गंगा से जुडा हैं

मंदिर के दाहिनी तरफ एक आकर्षक कुण्ड भी बना है, इसे दुर्गा कुण्ड के नाम से जाना जाता है। एक समय यह कुंड सीधे गंगा नदी से जुड़ा हुआ था, ऐसा मन जाता था की इस कुण्ड में गंगा नदी का ही पानी आता था। यह कुंड मंदिर की शोभा को और भी बढ़ा देता है।मंदिर प्रांगण में एक हवन कुण्ड भी स्थित है जहां के हवन यज्ञ इत्यादि कार्य संपन्न होते हैं।

माँ दर्शन के विशेष दिन और दर्शन का म्हात्तम

वैसे तो वर्ष भर मंदिर में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। परंतु कुछ विशेष दिन होते हैं जब मंदिर में प्रचंड भीड़ होती है। यहां मंदिर में नवरात्रि में सबसे अधिक भीड़ होती है। नवरात्रि के अलावा दीपावली के समय एवं विशेष त्योहारों पर यहां अधिक भीड़ रहती है।माता को फूल चुनरी नारियल भक्त भेट कर मुरादे मांगते हैं इनके दर्शन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

 

माता क़े दर्शन का स्थान व समय
वाराणसी क़े दुर्गाकुण्ड स्थित ही दुर्गा मंदिर इस स्थान को भी दुर्गा कुंड क़े स्थान क़े नाम से जाना जाता हैं।भोर क़े मंगला आरती क़े बाद 5 बजे से भक्तों क़े लिये पट खोल दिया जाता हैं।सामान्य दिनों में 11 बजे बंद होता हैं नवरात्री में 12 बजे तक मंदिर खुला रहता हैं।

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