काशी में पांचवे दिन पूजी जाती हैं माता स्कंद

Rakesh Gupta

संवाददाता/सौरभ मिश्रा

नवरात्रि के पंचम दिवस स्कंदमाता के दर्शन पूजन का विशेष विधान है। वाराणसी में नवदुर्गा देवियों का मंदिर स्थित है, उन्हीं में से एक है यह स्कंदमाता मंदिर जहां नवरात्रि के पांचवें दिन भक्तजन माता के दर्शन हेतु दूर-दूर से आते हैं।ऐसी मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से भक्तों के दुख एवं कष्ट दूर हो जाते हैं।

 

काशी खंड व पुराण में उल्लेख हैं
इस मंदिर का उल्लेख काशी खंड एवं देवी पुराण में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि जब देवासुर नाम के राक्षस ने काशी के नगर वासियों एवं संतों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था तो माता दुर्गा ने अपने स्कंदमाता स्वरूप में आकर इस रक्षा का संघार किया था। तभी से माता यहां विराजमान है एवं माता काशी की बुरी शक्तियों से रक्षा करती हैं।

माता का स्वरूप ऐसा हैं
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, जिनमे दाहिने एवं बाईं दो भुजाएं ऊपर की तरफ एवं दो भुजाएं नीचे की तरफ हैं। ऊपर के दोनों भुजाओं में कमल पुष्प सुशोभित है। नीचे की दाहिने भुजा से माता ने स्कंद भगवान को अपनी गोद में पकड़ा है एवं बाई भुजा वर मुद्रा में है। माता कमल पर विराजती हैं जिस कारण इन्हें पद्मासना देवी के नाम से जाना जाता है। माता का वाहन सिंह है।

कार्तिके माता थीं इस वजह भी इन्हे सकन्दमाता भी कहा जाता हैं
मान्यता है यहां देवी की आराधना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही माता के आशीर्वाद से मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। स्कंद अर्थात ‘कार्तिकेय की माता’ होने के कारण ही देवी के इस रूप को स्कंदमाता कहा जाता है।

स्कंदमाता रूप की मान्यता
भगवती के पंचम स्वरूप स्कंदमाता के दर्शन पूजन का विधान पुराणों में किया गया है। स्कंदमाता को बागेश्वरी देवी के रूप में भी पूजा जाता है। माता के इस रूप में वह सिंह पर सवार चार भुजाओं में दिखती हैं। स्कंदमाता में मातृत्व है। वे सभी तत्वों की मूल बिंदु का स्वरूप हैं। उन्हें वात्सल्य स्‍वरूपा कहा जाता है। अतः कहें तो उनकी साधना, आराधना से वात्सल्य और प्रेम की प्राप्ति होती है।

 

दर्शन से होता है संतान सुख की प्राप्ति
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि जिस दंपति को संतान सुख अब तक प्राप्त नहीं हुआ है, वह अगर यहां पूजा करें तो उनकी मनोकामना माता रानी जरूर पूरा करती हैं। इसलिए नवरात्रि के दौरान यहां ऐसे अनगिनत दंपति आते हैं, जिन्हें अब तक संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ है। इस मंदिर के पहले तल पर स्कंदमाता का विग्रह है, तो नीचे गुफा में माता बागीश्वरी का विग्रह।

इस श्लोक से होता हैं लाभ
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।।
मंदिर पहुंचने का स्थान व समय
वाराणसी में माता का मंदिर, बागेश्वरी मन्दिर जैतपुरा में स्थित है।।
मंदिर भोर में खुल जाता हैं रात्रि 11 बजे पट बंद होता हैं

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