समस्तीपुर: पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर चिकित्सा पदाधिकारी राणा नितेश सिंह ने सामुदायिक स्वास्थ खानपुर के प्रांगण लगाया कई प्रकार के पेड़ पौधे।
पर्यावरण की रक्षा हमारी सुरक्षा,डॉ0 जी एम झा।
बिहार न्यूज़ लाइव अर्जुन कुमार झा/समस्तीपुर/ डेस्क: पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर खानपुर प्रखंड क्षेत्र के अंतर्गत सामुदायिक स्वास्थ केंद्र खानपुर के प्रांगण में चिकित्सा पदाधिकारी डॉ0 राणा नितेश कुमार सिंह ने अपने साथ डॉक्टर जीएम झा,अनिल कुमार सिंह,एंव एएनएम विभा कुमारी,शांति कुमारी,नीलम कुमारी,एनजीओ सुपरवाजर संजीत कुमार,डाटा ऑपरेटर मनीष कुमार,के अलावे अन्य स्वाथ कर्मी के साथ सुबह करीब 6:30 बजे पीपल,अलतास, अमरूद,अर्जुन,आम का 12 पेड़ स्वास्थ केंद्र के परिसर में लगाये।
तथा चिकित्सा पदाधिकारी राणा नितेश कुमार सिंह ने पौधा रोपण के बाद उन्होंने स्वास्थ केंद्र के सभी डॉक्टर एंव सभी कर्मी को सम्बोधित करते हुये कहा कि पर्यावरण दिवस विश्व भर में हर साल 5 जून को मनाया जाता है।यह एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय उत्सव है।जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की संरक्षा,स्थायी विकास और पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा देना है।यह दिन भी लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिये महत्व को समझने और इसकी रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है।
पर्यावरण दिवस को संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली ने 1972 में प्रारंभिक रूप में घोषित किया था। इसका उद्घाटन 1974 में हुआ और उस समय से यह एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय उत्सव बन गया है। पर्यावरण दिवस पर विभिन्न देशों में विशेष कार्यक्रम,संगोष्ठी,नुक्कड़ नाटक,के माध्यम से पर्यावरण जागरूकता कैंपेन,पौधरोपण आदि आयोजित किये जाते हैं।
पर्यावरण दिवस के अंतर्गत,लोगों को उनके आस-पास के पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने,पेड़-पौधों की रक्षा करने,प्रदूषण कम करने,जल संरक्षण,वन संरक्षण,जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया जाता है।
बढ़ती पर्यावरणीय चिंताओं और विविध पर्यावरणीय
कठिनाइयों से उबरने के लिए कुछ अनिवार्य कदम उठाना,इक्कीसवीं सदी की विशेषता रही है।प्राकृतिक आपदाओं और विध्वंसों के कुप्रभाव के बाद ही 21वीं सदी में मनुष्य जाति चेतस हुआ कि आने स्वार्थ पूर्ति हेतु उन्होंने अपने सबसे बड़े और स्थायी अवलंबन का ही नुकसान किया।
मसलन जलवायु परिवर्तन आज दुनिया की सबसे जरूरी पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। इक्कीसवीं सदी में, ग्लोबल वार्मिंग,विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने ने बिलकुल नये डायनामिक्स को हमारे सामने खड़ा कर दिया है। 2015 में पेरिस समझौते ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास के रूप में कार्य किया।परिणामस्वरूप,इस शताब्दी के दौरान जलवायु परिवर्तन को कम करने और नियंत्रित करने के प्रयासों में तेज़ी आई है। जलवायु परिवर्तन के बारे में जन जागरूकता और पर्यावरण पर जीवाश्म ईंधन के नकारात्मक प्रभावों में वृद्धि के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) स्रोतों के पक्ष में ध्यान देने योग्य बदलाव आया है। सौर और पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने वाले कानून ने 21वीं सदी में उल्लेखनीय विकास किया है। इक्कीसवीं सदी में,जैव विविधता संरक्षण ने महत्वपूर्ण महत्व प्राप्त कर लिया है। तेजी से वनों की कटाई,निवास स्थान के नुकसान, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन के परिणामस्वरूप कई प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं।लुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित करने, आवासों को बचाने और टिकाऊ भूमि और संसाधन प्रबंधन को आगे बढ़ाने की पहलों ने लोकप्रियता हासिल की है।अब कोशिश यह की जाती है कि पर्यावरण,सामाजिक और आर्थिक मुद्दों के एकीकरण पर जोर दिया जाए।वर्तमान परिदृश्य में पर्यावरण सक्रियता और जागरूकता में काफी वृद्धि हुई है।
विश्व स्तर पर, लोगों,समुदायों और संगठनों ने स्थायी उपायों को बढ़ावा देने, नीतिगत सुधारों पर जोर देने और पर्यावरणीय चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक साथ काम किया है।उदाहरण के लिए, युवा जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग के फ्राइडे फॉर फ्यूचर आंदोलन ने दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया है और समूह कार्रवाई को प्रेरित किया है।सुंदरलाल बहुगुणा याद आते हैं जिन्होंने चिपको आंदोलन के ज़रिए हम में पर्यावरण के प्रति जागरूक होने और संवेनशीलता बरतने का अलख जगाया।बहुगुणा जी के अलावा कई प्रमुख भारतीय पर्यावरणविद् हैं जिन्होंने भारत में पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।उनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम हैं।वंदना शिवा, सुनीता नारायण, मेधा पाटकर, अनिल अग्रवाल,चंडीप्रसाद भट्ट, अनिल अग्रवाल,राजेन्द्र सिंह इत्यादि।
वंदना शिवा ने जहाँ कस्थायी कृषि,जैव विविधता संरक्षण और किसानों के अधिकारों के लिए एक मुखर वकालत की वहीं सुनीता नारायण एक पर्यावरणविद् और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की महानिदेशक हैं, जो भारत में एक प्रभावशाली शोध और वकालत संगठन है।
वह वायु और जल प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास से संबंधित मुद्दों में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं।मेधा पाटकर जी तो किसी परिचय की मोहताज नहीं वे एक ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद हैं।जिन्हें बांधों जैसे बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के कारण जल संसाधन प्रबंधन और विस्थापित समुदायों के पुनर्वास पर उनके काम के लिए जाना जाता है।वे नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक हैं।जो एक आंदोलन है जो नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध से प्रभावित लोगों के अधिकारों पर केंद्रित है।चंडी प्रसाद भट्ट एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं।वह चिपको आंदोलन के अग्रदूतों में से एक थे।
और वन संरक्षण और सामुदायिक विकास के लिए विभिन्न जमीनी पहलों में शामिल रहे हैं।अनिल अग्रवाल जी का नाम लेना जरूरी है। अनिल अग्रवाल एक पर्यावरणविद् और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के संस्थापक थे।उन्होंने भारत में पर्यावरणीय मुद्दों को उजागर करने और सतत विकास प्रथाओं को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंत मे राजेंद्र सिंह जी का स्मरण ज़रूरी है।राजेंद्र सिंह,जिन्हें भारत के जल पुरुष के रूप में भी जाना जाता है।एक पर्यावरणविद् और जल संरक्षणवादी हैं।
वह नदियों को पुनर्जीवित करने, पारंपरिक जल संचयन विधियों को पुनर्जीवित करने और समुदाय आधारित जल प्रबंधन प्रणालियों को बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से भूमिका निभा रहे हैं। हम देख सकते हैं कि हमारे देश में भी ऐसे पर्यावरणविद रहे हैं।जिन्होंने भारत में पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
देश भर में इस क्षेत्र में कई और व्यक्ति और संगठन अथक रूप से काम कर रहे हैं।आगे चिकित्सा पदाधिकारी राणा नितेश कुमार सिंह ने स्वाथ के बारे में विशेष रूप से चर्चा करते हुये कहा कि पर्यावरण को सब से बड़ा खतरा प्लास्टिक से है।इससे बचने की जरूरत है।
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