बिहार न्यूज़ लाइव सिवान डेस्क: सासाराम और बिहारशरीफ में भड़की हिंसा से महागठबंधन को हो सकता है चुनावों में बड़ा नुकसान. जी हां सासाराम और बिहारशरीफ में भड़की हिंसा के दौरान एक तरफ ओवैसी और इनके पार्टी के नेता सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहे….. तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने ओवैसी को ही भाजपा का एजेंट बता दिया. इस पर ओवैसी इस कदर भड़के कि मन की सारी भड़ास निकाल दी.
उन्होंने कहा कि नीतीश तो खुद ही बीजेपी के साथ रह कर उसके सबसे बड़े एजेंट का काम करते रहे हैं….तो वे दूसरे को कैसे बीजेपी का एजेंट बता सकते हैं? ओवैसी ने इस दौरान नीतीश-तेजस्वी को खूब सुनाया. देखें तो ओवैसी के तर्क में दम भी दिखता है. इसलिए कि नीतीश तो अपने शासन के अधिकतम समय में बीजेपी के साथ ही रहे हैं….
हालांकि उन्होंने कई बार यह साबित भी किया है कि इससे उनके विचारों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. बता दें कि राम मंदिर का मुद्दा हो या नरेंद्र मोदी के पीएम फेस घोषित किये जाने पर बीजेपी का साथ छोड़ना. ऐसा करके नीतीश मुसलमानों को यह एहसास कराते रहे हैं कि communlism से वे समझौता नहीं करते.
हालांकि इसके बावजूद पहली बार बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ कर ओवैसी की पार्टी AIMIM ने एहसास करा दिया कि मुसलमानों का भरोसा नीतीश से कहीं अधिक उन पर है….और मुसलमान वोटों के मामले में वे आरजेडी से भी बहुत कमजोर नहीं हैं. देखें तो लाख कोशिशों के बावजूद नीतीश की पार्टी जेडीयू से कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता था, जबकि AIMIM के 5 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की, जो आरजेडी के 8 से तीन ही कम थे. वहीं अब ओवैसी की AIMIM बिहार की सभी लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है. अगर ऐसा हुआ तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा होना तय हो जायेगा. वैसे ओवैसी का असर बिहार में पहली बार 2020 के असेंबली इलेक्शन में दिखा था, जब उनके 5 उम्मीदवार जीत गए थे….
फिर गोपालगंज विधानसभा के उपचुनाव में दिखा, जब वे आरजेडी के जीत जाने वाले उम्मीदवार की हार का कारण बने थे. अगर ओवैसी के उम्मीदवार ने वोट नहीं काटे होते तो गोपालगंज सीट भाजपा के हाथ से निकल कर आरजेडी की हो गयी होती. यानी कि ओवैसी ने पहले भी महागठबंधन को काफी नुकसान पहुंचाया है….और जानकारों के अनुसार अब जबकि राज्य में हिंसा हुई तो सरकार पूरी तरीके से एक्टिव नहीं दिखी जिसका लाभ आगामी चुनावों में ओवैसी उठा सकते हैं. यानी कि आगामी चुनावों में ओवैसी एक बार फिर महागठबंधन के खिलाफ बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं.
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