पैरालंपिक में मामला दिव्यांग खिलाड़ियों द्वारा रिकॉर्ड बनाने का नहीं है, पेरिस पैरालंपिक की पदक तालिका में रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन भारत के बदलते समाज और उसके नजरिए की कहानी भी है।
पदक जीतने के बाद बिहार से गए पैरालंपिक व एशियन गेम्स के कन्वीनर शिवाजी कुमार से टेलीफोन पर बातचीत में उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों की उपलब्धि पूरे देश के नौजवानों को प्रेरित करेगी। डीसीसीआई के महा सचिव रविकांत चौहान एवं फिजिकली चैलेंज्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के सीईओ रविंद्र भाटी ने भी इस बार भारत के प्रदर्शन पर कहा कि दिव्यांग खिलाड़ी भारत के बदलते समाज और उसके नजरिए की कहानी बनकर उभरे है।
पैरालंपिक में मामला दिव्यांग खिलाड़ियों द्वारा रिकॉर्ड बनाने का नहीं है, पेरिस पैरालंपिक की पदक तालिका में रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन भारत के बदलते समाज और उसके नजरिए की कहानी भी है।
पदक जीतने के बाद बिहार से गए पैरालंपिक व एशियन गेम्स के कन्वीनर शिवाजी कुमार से टेलीफोन पर बातचीत में उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों की उपलब्धि पूरे देश के नौजवानों को प्रेरित करेगी।
डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान एवं फिजिकली चैलेंज्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के सीईओ रविंद्र भाटी ने भी इस बार भारत के प्रदर्शन पर कहा कि दिव्यांग खिलाड़ी भारत के बदलते समाज और उसके नजरिए की कहानी बनकर उभरे है।
राकेश कुमार गुप्ता/पेरिस : आठ सितंबर दिव्यांग लेकिन असाधारण रूप से दृढ़ भारत के पैरा एथलीट को अपने पैरालंपिक अभियान पर गर्व महसूस होगा। हालांकि पैरालंपिक में भारत का सफर समाप्त हो गया है। लेकिन अधिकांश स्थापित नाम उम्मीदों पर खरे उतरे और कई प्रतिभाशाली खिलाड़ियों ने अपने ही रिकॉर्ड तोड़ 29 पदक जीतकर बड़े मंच पर अपनी जगह बनाई।भारत ने कुल 29 पदक जीते जिसमें से सात स्वर्ण हैं जो देश के लिए पहली बार हुआ है। भारत ने 2016 के चरण में ही अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की थी। जिसमें देश के पैरा एथलीट चार पदक जीत सके थे। इसके बाद उनका प्रदर्शन शानदार होता चला गया जिससे तोक्यो में पैरा खिलाड़ियों ने 19 पदक जीते।भारत का सफर समाप्त होते ही पेरिस में चल रहे पैरालंपिक से जो खबरें आई , वे हैरत में डालने वाली तो हैं ही, साथ ही गर्व से भर देने वाली भी हैं। इसमें इतने पदक मिले हैं, जितने भारत की झोली में इसके पहले कभी नहीं गिरे थे। मामला देश के दिव्यांग खिलाड़ियों द्वारा नए रिकॉर्ड बनाने का ही नहीं है, पेरिस पैरालंपिक की पदक पर तालिका दरअसल भारत के बदलते समाज और उसके नजरिये की कहानी भी है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस उपलब्धि से अभिभूत हैं।
पांच खेलों में कुल 29 पदकों से केवल ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धा में ही 17 पदक मिले जिसने सुनिश्चित किया कि देश इन खेलों में शीर्ष 20 में शामिल रहा। पैरालंपिक में एक बार फिर चीन का दबदबा रहा जिसने 200 से ज्यादा पदक जीते।पेरिस के पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भारत ने पेरिस 2024 खेलों में पैरालंपिक इतिहास में अपना सबसे सफल प्रदर्शन करते हुए कुल 29 पदक जीते, जिसमें 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक शामिल रहे। इस उपलब्धि ने टोक्यो 2020 के 19 पदकों को पीछे छोड़ दिया है, जिसमें पांच स्वर्ण शामिल थे।इस रिकॉर्ड उपलब्धि का यह मतलब भी है कि भारत ने अपने पैरालंपिक इतिहास में 60 पदकों का आंकड़ा पार कर लिया है।
पदक जीतने के बाद बिहार से गए पैरालंपिक व एशियन गेम्स के कन्वीनर शिवाजी कुमार से टेलीफोन पर बातचीत में उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों की उपलब्धि पूरे देश के नौजवानों को प्रेरित करेगी।
इसमें हम यह भी जोड़ सकते हैं कि यह उपलब्धि पूरे देश को एक नया आत्मविश्वास देगी, जिसकी इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है। अंग्रेजी भाषा में दिव्यांगों के लिए पहले डिसेबल या अक्षम शब्द का इस्तेमाल होता था। अब यह शब्दावली बदल दी गई है, इसकी जगह लिखा जाता है- स्पेशली एबल्ड पर्सन, यानी विशेष क्षमता वाले व्यक्ति। सचमुच पेरिस पैरालंपिक में गए भारतीय खिलाड़ियों ने यह साबित कर दिया है कि वे विशेष क्षमता वाले खिलाड़ी हैं। वे उस धरती से पेरिस गए थे, जहां खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं और इन्फ्रास्ट्रक्चर, यानी बुनियादी ढांचा न होने का रोना अक्सर रोया जाता है। जहां किसी भी ओलंपिक खेल या अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के बाद लिखे जाने वाले वैचारिक लेखों की अंतिम पंक्तियां इसी त्रासदी की ओर इशारा करती हैं। यह दर्द भी सुनाई और खेल पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा। ठीक उसी दौर में ये खिलाड़ी पेरिस जाते हैं और तकरीबन हर रोज ही एक साथ ही कई पदक जीतने की खबर ओती है। वे हर खेल में जीतते हैं- निशानेबाजी में, तीरंदाजी में, भारोत्तोलन में, माला फेंकने में, लंबी कूद में, ऊंची कूद में, जूडो में- यह फेहरिस्त लंबी है। महिला खिलाड़ी भी जीतती हैं और पुरुष खिलाड़ी भी जीतते हैं।
भारतीय खिलाड़ियों ने 2020 के टोकियो पैरालंपिक से पेरिस के पैरालंपिक में की है। तब भारत को कुल 19 पदक मिले थे और वह 24वें स्थान पर था। यानी, चार साल ही भारत ने छह स्थान की छलांग लगाई है, जो 2024 की उपलब्धि की सबसे बड़ी बात है। अब जरा इसकी तालिका की तुलना कुछ ही हफ्तों पहले हुए पेरिस ओलंपिक से करते हैं। वहां भारत ने कुल छह पदक जीते थे और उसका स्थान 71वां रहा था। भारत का प्रदर्शन उसके पिछले ओलंपिक के मुकाबले अच्छा नहीं था। तब भारत ने एक स्वर्ण समेत कुल सात पदक जीते थे और उसका स्थान 48वां था। यानी, एक ही ओलंपिक में 23 स्थान की गिरावट। भारत के विशेष योग्यता वाले खिलाड़ियों का प्रदर्शन + लगातार चमक रहा है, वे ज्यादा जीत दर्ज कर रहे है, ज्यादा पदक हासिल कर रहे हैं, लेकिन क्यों सामान्य खिलाड़ियों का प्रदर्शन दिव्यांग खिलाड़ियों से बेहतर नहीं हुआ, जिसपर खेल संघों को गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। सरकार को भी सोचना पड़ेगा कि क्यों बिहार जैसे राज्यों में प्रतिभा होते हुए भी बेहतर संसाधनों के अभाव में खिलाड़ियों को दूसरे राज्य जाना पर रहा है।
Comments are closed.