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दिव्यांगता की चुनौतियों का सहजता से सामना कर रंजीत ने हौंसले से किया मिसाल कायम

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✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

सिवान:दिव्यांग क्रिकेट खिलाड़ी रंजीत कुमार की दास्तां दर्दनाक है, व्यथित करती है, विचलित करती हैं लेकिन जब बात उनके हौंसले की होती है तो बिहार के इस लाडले पर गर्व होता है। सिवान में 24 और 25 फरवरी को लाल बाबू सिंह मेमोरियल नेशनल दिव्यांग क्रिकेट चैंपियनशिप में प्रबंधन को मजबूत आधार देने आए रंजीत की कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हो सकती है। गौरतलब है कि इस स्पर्धा का आयोजन डिफरेंटली एबल्ड क्रिकेट काउंसिल ऑफ इंडिया यानी डीसीसीआइ (बीसीसीआई सपोर्टेड बॉडी) से मान्यता प्राप्त संस्था डिफरेंटली एबल्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार द्वारा किया गया था।

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जन्म के मात्र छह महीने के बाद ही पोलियो के कारण हाथ पर बेहद नकारात्मक असर पड़ा। बचपन जैसे तैसे गुजरा। 2 जून, 2018 को 34 वर्ष की आयु में अपने गांव जाते रंजीत टेंपो और ट्रक की भीषण दुर्घटना के शिकार होते हैं और उनका एक हाथ काटना पड़ा। लेकिन फिर भी रंजीत कुमार की जिंदगी थमती नहीं वह तो बस चलती ही जाती है अपने मंजिल की ओर।क्रिकेट के प्रति जबरदस्त लगाव रखनेवाले रंजीत के लिए क्रिकेट सिर्फ खेलने के लिए नहीं होती अपितु वे दिव्यांग खिलाड़ियों को प्रेरित करने के लिए उन्हें एक सुव्यवस्थित मंच प्रदान करने के लिए भी समर्पित भाव से भी प्रयासरत रहते हैं। बिहार दिव्यांग क्रिकेट टीम के गठन में रंजीत भूमिका निभाते हैं वर्तमान डिफरेंटली एबल्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार यानी डीसीएबी के सचिव के तौर पर।

क्रिकेट खिलाड़ी रंजीत कुमार मूल रुप से मुंगेर जिले के ममायी के रहनेवाले हैं। अभी वर्तमान में रंजीत रेलवे में ट्रेन मैनेजर यानी गार्ड के रुप में सेवारत हैं। अपने कार्य में बेहद दक्ष रंजीत कुमार दिव्यांगता की सीमाओं के बावजूद अपने जिम्मेवारियों का बखूबी निर्वहन कर रहे है।

दिव्यांग क्रिकेट खिलाड़ी रंजीत कुमार शरीर की नहीं मन की मजबूती की बात करते हैं। उनका मानना है कि दिव्यांगता सिर्फ एक मानसिक संकल्पना है। जिसे आप सामान्य तौर पर अगर महसूस करेंगे तो आपको सताती रहेगी। इतने दिनों से दिव्यांगता के साथ चलने से हम कुछ शारीरिक बाधाओं से सुंदर सामंजस्य बना चुके हैं। रंजीत एक अच्छे और सफल जिंदगी के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। निश्चित तौर पर उनका आत्मविश्वास उनके हौंसले से ऊर्जा पाता रहता है। आज रंजीत कई दिव्यांगों ही नहीं सामान्य युवाओं के लिए भी प्रेरणा के स्रोत हैं।

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