बिहार न्यूज़ लाइव सारण डेस्क दरियापुर।भगवान भास्कर की पहली किरण के धरती पर पहुंचने से पहले ही छत की मुंडेर पर,घरों के समीप पेड़ पौधों पर ची ची की सुमधुर आवाज से हमारी निंद को तोड़ने वाली राजकीय पक्षी के रूप में चर्चित गौरैया विलुप्त होने के कगार पर है।ऐसा प्रतित होता था की गौरैया चिड़िया नही बल्कि घड़ी का अलार्म हुआ करती थी।परंतु आज के आधुनिक विकाश की दौड़ में मानव समाज जैसे जैसे आगे बढ़ता गया,वैसे वैसे इसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा।एक समय में गौरैया हमारे परिवार का सदस्य हुआ करती थी,परंतु आज अधिकांश घरों में देखने के लिए भी बच्चे तरस जा रहे है।
जानकारों की माने तो आज ग्रामीण परिवेश में भी सभी घरों के कंक्रीट से बन जाने तथा मोबाइल टावर एवम खेतो में अत्यधिक कीटनाशक का छिड़काव इनके अस्तित्व को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।वही इस संबंध में पर्यावरणविदो की माने तो विश्व में इसकी 26 प्रजातियां है।जिसमे से भारत में मुख्य रूप से 5 प्रजातियां ही देखी जाती है।वह भी विलुप्ति के कगार पर है।हालांकि इसके अस्तित्व को बचाने के लिए वर्ष 2010 में ही 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस घोषित कर दिया गया।इसके उपरांत वर्ष 2013 में इसे बिहार सरकार ने राजकीय पक्षी भी घोषित कर दिया।
जिसके बाद से हर साल गौरैया दिवस पर सरकार के द्वारा इसके अस्तित्व को बचाने के लिए कई तरह की बाते तो की जाती है,परंतु इसके संरक्षण के लिए अभी तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा रहा है।आज हमे जरूरत है सभी लोगो को इस दिशा में जागरूक करने की ताकि इसका संरक्षण किया जा सके।वही आज भी यदि घरों के छज्जों में घोंसला लगाकर,सम्मी का पौधा लगाकर तथा छतों पर पानी रखा जाए तो फिर से हमारे घरों में गौरैया की चहचहाहट गूंज सकती है।