काशी में माँ काली का हैं अति प्राचीन मंदिर
वाराणसी से सौरभ मिश्रा
महाकाली यानी मां का वह रौद्र रूप जिसमें धरती पर राक्षसों और दुष्टों के संहार के लिए इस रूप को धारण किया भक्तों का कष्ट दुख हरती हैं माता,नारियल व चुनरी अर्पित कर भक्त लेते हैं आशीर्वाद काशी महादेव की नगरी जहाँ बाबा व माता पार्वती संग नव दुर्गा भी विराजमान हैं नवरात्र क़े नव दि माँ क़े अलग अलग रूपों क़े दर्शन पूजन का महात्म हैं शारदिय नवरात्र क़े सप्तम तिथि को माता काली पूजी जाती हैं।
बाबा विश्वनाथ की नगरी में आदि शक्ति जगदंबा मां दुर्गा के कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जो इतिहास में अपने अनोखेपन के लिए जाने जाते हैं. ऐसा ही आदि शक्ति मां काली का एक मंदिर जो बाबा विश्वनाथ से कुछ दुरी पर हैं उस क्षेत्र का नाम ही कालिका गली हैं।
काशी में स्थापित हैं माँ रोद्र रूप काली इसी रूप में राक्षसों का किया था संहार
आप को बताते की बाबा की नगरी आनंदवन के नाम से विख्यात था तभी माता ने काशी में आकर यहां पर अपने उस रौद्र रूप को स्थापित किया था जिसने दुष्टों का संहार किया महाकाली यानी मां का वह रौद्र रूप जिसमें धरती पर राक्षसों और दुष्टों के संहार के लिए इस रूप को धारण किया। माता पार्वती का यह रौद्र रूप संहार का प्रतीक माना जाता है. काशी का यह काली मंदिर पुरातन धार्मिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है जो काशी खंड में वर्णित है।
ऐसा हैं माता काली रोद्र स्वरूप
बड़ी बड़ी आंखें, लंबी जीभ और तेज और तपिश से पूरे शरीर का काला पड़ जाना, आंखों से तेज प्रकाश और अग्नि का निकलना, गले में मुंडमाला और राक्षसों के कटे हुए हाथ और अन्य अंग धारण किए मां काली का यह रौद्र रूप सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं में सबसे विकराल माना जाता है. माता काली ने दुष्टों के संहार और राक्षस रक्तबीज के नाश के लिए इस रूप को धारण किया था।
काशी में माता पार्वती ने अपने काली रूप को छोड़ा था।
मंदिर के महंत सुरेंद्र नारायण तिवारी ने बताया कि काशी में विश्वनाथ मंदिर के निकट मां काली का यह प्राचीन मंदिर काशी में अनंत समय से मौजूद है. जब काशी को आनंदवन के नाम से भगवान भोलेनाथ ने स्थापित किया था उस वक्त काशी में माता पार्वती ने अपने काली रूप को छोड़ा था।
ज़ब माँ पार्वती माँ काली रूप में आई थीं काशी
मंदिर महंत जी का कहना है धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि जब माता काली अपने रौद्र रूप से वापस पार्वती के रूप में गई तो उनके गुस्से और तपिश की वजह से उनका रंग काला पड़ गया था. इसे लेकर भगवान भोलेनाथ कई बार उनको इस बात के लिए टोकते भी थे कि तुम पार्वती के रूप में आ तो गई हो लेकिन अभी भी काली हो इस बात से मां नाराज होकर कैलाश छोड़कर काशी में आ गई।
महादेव क़े पूजन से काली से फ़िर बनी माँ गौरा
मिट्टी से भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग का निर्माण करके उनका पूजन शुरू किया.भगवान भोलेनाथ उस पूजन से प्रसन्न होकर केदारेश्वर के रूप में प्रकट हुए और माता पार्वती को उनके पुराने रूप में वापस लाने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद माता को गौरा के नाम से जाना गया, क्योंकि मां अपने काले रूप से निखर कर गोरी हो चुकी थी, लेकिन जब माता यहां से भोलेनाथ के साथ प्रस्थान करने लगी तो उनका काली का यह रूप काशी के इसी स्थान पर स्थापित हुआ।
माता मंदिर स्थान व समय
माता आदि शक्ति काली का यह मंदिर काशी में भी हैं विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र से सटा हैं । इसी क्षेत्र को पहले आनंदवन क़े नाम से जाना जाता था। फ़िर कालिकागली क़े नाम से जाना जाता हैं । भोर क़े आरती क़े बाद 5 बजे आम भक्तों क़े लिये खोल दिया जाता हैं रात्रि 11 बजे बंद होता हैं।