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सारण: लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पुष्य तिथि पर किया गया श्रद्धा सुमन अर्पित….

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बिहार न्यूज़ लाईव सारण डेस्क:  लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पुष्य तिथि के अवसर पर जय प्रकाश विश्वविद्यालय परिवार की तरफ से अपने कुलदेवता को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

सर्वप्रथम विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय परिसर अवस्थित प्रशासनिक भवन के सामने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की आदमकद प्रतिमा पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के सी सिंहा, कुलसचिव प्रोफेसर रंजीत कुमार ,सीसीडीसी प्रोफेसर हरिश्चंद्र, इंजीनियर प्रमोद कुमार सिंह ने माल्यार्पण किया।पुष्पांजलि अर्पित करने वालों में ड़ॉ. पी एन सिंह,विवेक कुमार सिंह,मधुकर,राहुल कुमार यादव,नीरज कुमार सिंह, विकास कुमार ,राजकुमार,विवेक कुमार ,धर्मेंद्र कुमार ,विश्वविद्यालय कैम्पस के एसएसआई एस के गार्ड ,बलिराम ,अनिल ठाकुरआदि शामिल हुए।

 

इसके उपरांत सीनेट हॉल में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के तैल चित्र पर सबने माल्यार्पण किया। कुलपति प्रोफेसर के सी सिंहा ने कहा कि जयप्रकाश नारायण के सामाजिक राजनीतिक जीवन को दो भागों में विभाजित कर समझा जा सकता है,आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम में एक क्रान्तिकारी के रूप में उनकी भूमिका बेमिसाल रही है ।महत्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोङों आन्दोलन में इन्होने बढ चढ कर भाग लिया,लाठियां खायीं हजारीबाग जेलमें बर्फ की सिल्ली पर रखा गया,यातनाएं सहीं।जेल से भागकर नेपाल के जंगल में शरण लिए और वहीं से आजादी की लङाई की मसाल जलाते रहे।आजादी के बाद वे समाजवादी आंदोलन से जुङ गये और बाद में गांधी और विनोवा भावे से प्रभावित होकर सर्वोदय और भूदान आन्दोलन से जुङ गये।

इस अवसर पर प्रोफेसर रणजीत कुमार ने सीनेट हॉल में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के माल्यार्पण के उपरांत उपस्थित शिक्षकों एवं कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि जयप्रकाश नारायण भारत के ऐसे राजनीतिज्ञ एवं समाजसेवी थे जिन्होंने हमेशा राजनीति पर लोकनीति एवं राजसत्ता पर लोकसत्ता को तरजीह दिया ।वे आजीवन जनता एवं जनहित के मुद्दे पर संघर्ष करते रहे ।उन्हें कई बार सरकार के सबसे महत्वपूर्ण पदो को स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने सुचिन्तित तरीके से सत्ता से दूरी बनाए रखा इसीलिए महात्मा गांधी के बाद वे अकेले राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने अवसर मिलने के किसी भी प्रकार के पदको स्वीकार नहीं किया।

प्रोफेसर हरिश्चंद्र समायोजक महाविद्यालय विकास परिषद ने कहा कि वे आजादी की दूसरी लङाई के नायक माने जाते हैं।72 साल की उम्र में उन्होंने आपातकाल के विरुद्ध छात्र आन्दोलन एवं जन आंदोलन का नेतृत्व किया।

 

 

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