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हाजीपुर: चले हैं खुशी तलाशने हौले-हौले, धीरे-धीरे—कवि-संगोष्ठी में बही कविता की रसधार

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बिहार न्यूज़ लाइव हाजीपुर डेस्क____डॉ० संजय (हाजीपुर) – शहर का ऐतिहासिक गाँधी स्मारक पुस्तकालय में रविवार को सायंकाल ज्येष्ठ मास की कवि-संगोष्ठी आयोजित हुई जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि शालिग्राम सिंह अशान्त ने की तथा संचालन डॉ० संजय ‘विजित्वर’ ने किया। इस अवसर पर उपस्थित कवियों ने अपनी सामयिक रचना,मुक्तक और गेय रचनाओं से खूब वाहवाही बटोरी। साथ ही दो नन्हीं बच्चियों की भाव भंगिमा के साथ रचना की आवृत्ति पाठ काफी प्रभावित किया और एक नन्हा बालक की प्रस्तुति में तोतली आवाज सुनकर मन हर्षित हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत स्थानीय जमुनी लाल महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर छोटेलाल गुप्ता की ‘माँ’ पर केन्द्रित रचना-‘लोग कहते हैं मैं बिल्कुल अपनी माँ पर गया हूँ, वही कद- काठी,वही रंग-रूप,वही नयन- नक्श’— तथा-‘ अपना घर-बार छोड़कर बुद्ध होना आसान है’- से हुई जिसपर खूब वाहवाही तथा तालियाँ बजी। इसके बाद वरिष्ठ कवि आशुतोष सिंह ने अपनी गेय रचना -नंदनवन खिल उठे आंख में सांसो में चन्दन बन के, आने की आहट से तेरे रोम-रोम में खग चहके-सुनाई जिसपर खूब वाहवाही और तालियाँ बजी ।

 

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इस क्रम में वरिष्ठ कवि हरि विलास राय ने सामयिक मुक्तक -आज औलाद भी बेरहम बन रहा,–खुदगर्ज है जमाना न हमदर्द कोई–अरमा दिल की चिता बन गई –सुनाकर तालियाँ बटोरी। डॉ० शिवबालक राय प्रभाकर ने -कल का भविष्य ही तो आज वर्तमान है –आज का वर्तमान ही कल का भविष्य होगा -सुनाई जिस पर वाहवाही हुई। इसके बाद दो नन्हीं बच्चियां शुभी और सिल्की ने डॉ० संजय ‘विजित्वर’ की मार्मिक रचना- ढूँढते- ढूँढते उम्र बीत गई पर वे ना मिले जिनको ढूँढते थे— की भाव-भंगिमा के साथ आवृत्ति पाठ सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी। इसके बाद डॉ० नन्देश्वर सिंह की सामयिक रचना- जीतेगा भाई जीतेगा, कोई- न- कोई तो जीतेगा, हारेगा भाई हारेगा पबलिकबे हरदम हारा है,

 

पबलिकबे हरदम हारेगा सुनाकर खूब वाहवाही और तालियाँ बटोरी। इसके बाद नन्हा बालक युग ने अपनी मधुर आवाज से सरस्वती मंत्र,देवताओं की स्तुति मंत्र सुनाई तो तालियाँ बजी और वाहवाही हुई। वरिष्ठ कवि सीताराम सिंह ने-बड़ों के बड़प्पन का धन चूमता हूँ, बच्चों का स्नेहिल नमन चूमता हूँ—-छूकर जो तन-मन को शीतल कर दे, नरम उस हवा का वदन चूमता हूँ –पर खूब वाहवाही और तालियाँ बजी। कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि-संगोष्ठी के संयोजक , डॉ० संजय ‘विजित्वर’ ने– चले हैं खुशी तलाशने, हौले-हौले, धीरे धीरे –चले नेह- दीपक जलाने हौले-हौले,धीरे-धीरे–सुनाई तो उपस्थित कवियों ने स्वर-में-स्वर मिलाई और वाहवाही की। इसके बाद कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शालिग्राम सिंह अशान्त ने -हम आला मिजाज रखते हैं, हम शायरों की बात मत पूछो , तुम जात मत पूछो, हम ठोकरों पर ताज रखते हैं- सुनाई जिसपर खूब वाहवाही हुई। इस कवि-संगोष्ठी में विपिन कुमार सिंह, सत्येन्द्र शर्मा, रोहित तथा बाबू साहेब की भी उपस्थिति रही। कार्यक्रम के अन्त में पूर्व सैनिक, सुमन कुमार ने उपस्थित लोगों के प्रति आभार प्रकट किया।

 

 

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