संवाददाता/सौरभ मिश्रा
माता क़े उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है.
वाराणसी|महादेव की नगरी में मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है. दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटी फल प्रदान करने वाला हैं. इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है. दुर्गा की पूजा के क्रम में ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन पूजन बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है.
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है ब्रह्म अर्थात तपस्या एवं चारिणी अर्थात आचरण करने वाली अर्थात जो ब्रह्म का आचरण करता है वही ब्रह्मचारिणी है।
शारदीय नवरात्रि के द्वितीय दिन माता ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है।
शिव प्राप्ति हेतु माता पार्वती ने लगाई थीं गुहार
भगवान शिव की प्राप्ति हेतु माता पार्वती ने कई वर्षों तक तपस्या की जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से पुकारा जाने लगा।
रामचरितमानस के बालकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदास जी दोहे-चौपाई के माध्यम से लिखते हैं कि हिमालय की पुत्री पार्वती ने नारदजी के उपदेश से पति के रूप में शिवजी को प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया।
हजारों वर्षो तक की थीं कठिन तपस्या
एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बेल के पत्ते खाए और शिव की आराधना करती रहीं। बाद में पार्वतीजी ने बेल के पत्ते भी खाना छोड़ दिया । कई हजार वर्षों तक निर्जला और निराहार रहकर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा “हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही सम्भव है। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी और शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। कालिदास कुमासम्भवम् में लिखते हैं कि पार्वती की परीक्षा शिव ने स्वयं ली। वे बटुक के भेष में पार्वती से शिव को बैरागी, बौराहा, साँप-बिच्छू पहनने वाला, चिता की अपवित्र राख को शरीर पर मलने वाला है, ऐसा कहे। ऐसे में पार्वती क्रोधित हो गईं तभी भेष बदले हुए शिव अपने असली रूप में आ गए।
माँ ब्रह्माचारिणी दृढ़ता सिखाती हैं
देवी ब्रह्मचारिणी अपने निर्णय पर दृढ़ रहने की शक्ति देती हैं। उद्देश्य के प्रति निष्ठा रखना सिखाती हैं। बाधाओं के सामने डटे रहना सिखाती हैं….! ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक अपने भीतर की स्थिरता को पा जाता है। इस रूप में शक्ति को जो उमा नाम मिला है वह माता मेना के द्वारा तपस्या के लिए मना करने पर मिला है। उ मतलब वह सब तपस्या आदि…. मा मतलब न करो……..! इसी तरह अपर्णा नाम भी संकल्प के प्रति निष्ठा में अर्जित हुआ है।
माँ का स्वरूप ऐसा हैं
विद्यार्थी जीवन कष्ट का होता है इसलिए ब्रह्मचारिणी नंगे पैर रहती हैं। इन्होंने संसार का नहीं स्व की इच्छा का चयन किया है। ये नारंगी और सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं। इसमें नारंगी ब्रह्म तेज और सफेद उज्ज्वलता-पवित्रता का सूचक है। ये दृढ़ निश्चय, अपार सहनशीलता वाली हैं तभी दृढ़ता की प्रेरणा देती हैं। ब्रह्मचारिणी अटूट धैर्य का आशीर्वाद देती हैं। ये मंगल ग्रह पर शासन करती हैं। मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से मुक्ति ब्रह्मचारिणी ही दिलाती हैं। इनके हाथ में माला साधना को सूचित करती है और कमण्डल पवित्रता की धारणा।
ऐसे पड़ा माता का नाम ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि व्रत-पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। भगवती पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। कहते हैं माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। ब्रह्मचारिणी के रूप का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
माता जप श्लोक
दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
मान्यता है कि मां के इस स्वरूप का दर्शन करने वालों को संतान सुख मिलता है साथ ही वह भक्तों की हर मनोकामना को पूरा भी करती है. काशी के गंगा किनारे बालाजी घाट पर स्थित मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा मंदिर में भक्तों की भीड़ सुबह से ही लग जाती हैं। खासकर नवरात्रि के दिनों में भक्त लोग 2 बजे रात से ही दर्शन के लिए प्रसाद लेकर लाइन में लग जाते हैं। नवरात्रि के दिनों में यहां कई कार्यक्रम का भी आयोजन होता है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां की पूजा करते हैं तो उनकी मुरादें पूरी हो जाती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी के मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है. श्रद्धालु लाइन में लगकर मां का दर्शन प्राप्त करते हैं. मां के स्वरूप का दर्शन करने के लिए नारियल, चुनरी , माला फूल आदि लेकर श्रद्धा भक्ति के साथ भक्त माता दरबार में आते हैं.समय भोर क़े आरती क़े बाद से पट खुल जाता हैं रात्रि दस बजे शयन आरती कर पट बंद हो जाता हैं विशेष दिन पर माता की विशेष आरती मंदिर पुजारी करते हैं