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सारण: नोट छाप कर अंग्रेजी अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले पंडित महेंद्र मिश्र अब तक नहीं बन पाए स्वतंत्रता सेनानी

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बिहार न्यूज़ लाईव सारण डेस्क:   जलालपुर| नोट छापकर कर अंग्रेजी अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले  पूर्वी धुन के सम्राट पंडित महेंद्र मिश्र को आजादी के इतने वर्षों बाद भी स्वतंत्रता सेनानी सम्मान नहीं मिल पाया है|जबकि उन्होंने सारा जीवन नोट छाप कर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीर स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक मदद देने में लगा दी|उन्होने अपने लिए कुछ नहीं किया |इस सम्बन्ध मे पं मिश्र के प्रपौत्र पं रामनाथ मिश्र बताते है कि पहलवान ,संस्कृत के विद्वान व पूर्वी धूनों के सम्राट को ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचाने की खबर पर ब्रिटिश सरकार ने गोपीचंद जासूस को उनको रंगे हाथ पकड़ने के लिए लगाया| गोपीचंद ने नौकर बनकर व सम्पूर्ण सेवा भाव दिखाते हुए महेन्द्र बाबा का दिल जीत लिया|लेकिन इस बात का पता लगाने मे कि पं मिश्र कहां और कब नोट छापते हैं क ई वर्ष लग गये|

पता लगाने के बाद गोपीचंद जासूस ने स्थानीय ब्रिटिश कमांडर नील को सूचना दी | जिस पर नील ने पुलिस की टुकड़ी के साथ उनके घर धावा बोल दिया| स्थानीय लोगों को पता चला तो बड़ी संख्या में वे लाठी, भाला, तलवार लेकर के वहां पहुंच गए |

 

स्थिति की भयावहता को देखते हुए नील साहब ने बुद्धिमत्ता से काम लिया तथा अपने कनीय कमांडर को फरमान दिया कि वह यह लिखे की नोट छापने की मशीन नहीं मिली|ऐसा कर   वह स्थानीय लोगों के आक्रोश से बच निकला |लेकिन उसने पंडित महेंद्र मिस पर नोट छापने व ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को तबाह करने का आरोप लगाकर मुकदमा कर दिया|

 

मुकदमे के दौरान उनके यहां नौकर रहे गोपीचंद ने महेंद्र मिश्रा के गीतों से प्रेरणा लेकर यह गीत सीख लिया था और गवाही  के दौरान  बताया  कि “*नोटिया हो छापी छापी. गिनिया भंजवनी ए महेंद्र मिश्र ब्रिटिश के कइनी हलकान*”. *सारा जहांनवा में कइनी बड़ा नउआ  पड़ल बा पुलिसिया से काम”*. इस पर पंडित महेंद्र मिश्र माथे पर हाथ रखकर कहने लगे कि  *पाकल पाकल पानवा खिअवलस  गोपीचनवा, प्रीतिया लगाइके  भेजवस  जेल खानवा*. गोपीचंद जासूस के बयान पर पंडित महेंद्र मिश्र को 20 साल की सजा हो गई.|उस सजा से मुक्त होने के लिए पं  मिश्र के पास अर्थ का अभाव हो गया |परिवार वालों ने खेत बेचकर बेचकर  हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ा |इस पर सजा की अवधि 10 साल घट गई |

 

बाद में  जेल मे उनके  व्यवहार व संगीत विद्या से प्रभावित हुए जेलर के  निर्देश  पर उनकी बेटियों ने उन्हें जेल से निकलने में मदद की| जेल से रिहा होने के बाद में वे घर पहुंचे| 26 अक्टूबर 1946 को अपने शिवालय में निर्गुण *कैसे जाएब ससुराल, आ गइले डोलिया कहार हो कैसे जाइब ससुराल*. गुनगुना रहे थे तभी  उनके प्राण निकल गए|इस तरह से एक  महान विभूति का अंत हो गया|

 

स्थानीय लोग बताते है कि राज्य सरकार का कला युवा व संस्कृति विभाग उनकी जयन्ती 16 मार्च को क ई कार्यक्रम आयोजित कर सम्मान व्यक्त करती है|लेकिन आज भी उनकी जन्म स्थल कांही मिश्रवलिया पर्यटक स्थल नही बन पाया है|पूर्वी धुनो को चाहने वाले लोगों को आपार खुशी तब होगी जब उनके नायक पं महेन्द्र मिश्र को स्वतंत्रता सेनानी का वाजिब सम्मान मिल जाय|

 

 

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