वाराणसी:नवरात्र के अष्ट्मी तिथि को माँ अन्नपूर्णा पूजी जाती हैं,जानें अन्नपूर्णा मंदिर का इतिहास और विशेषता

Rakesh Gupta

 

 

वाराणसी से सौरभ मिश्रा

माँ से भिक्षा मांगी थीं, महादेव शिव ने स्वयं माँ क़े आगे फैलाई थीं झोली
माता क़े दर्शन मात्र से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं धन धान्य भरा रहता है

वाराणसी: नवरात्रि के आठवें दिन अष्टमी पर्व पर लाखों श्रद्धालुओं ने महागौरी अन्नपूर्णा के दरबार में दर्शन पूजन करते हैं

श्री अन्नपूर्णा मंदिर: अन्न की देवी का मंदिर

अन्नपूर्णा मंदिर वाराणसी के बारे में वाराणसी अपने आध्यात्मिक महत्व और गंगा नदी के किनारे कई मंदिरों की मौजूदगी के लिए प्रसिद्ध शहर है। मंदिर देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है, जिन्हें भोजन और पोषण प्रदान करने वाली माना जाता है। भक्त देवी का आशीर्वाद लेने और अपने जीवन में जीविका और समृद्धि के लिए प्रार्थना करने के लिए मंदिर जाते हैं।

 

श्री अन्नपूर्णा मठ मंदिर

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट भगवती माँ अन्नपूर्णा का मंदिर है। मान्यता के अनुसार इन्हें तीनों लोकों की माता मानी जाती हैं। कहा जाता है की भगवती ने स्वंय भगवान शिव को भोजन कराया था। इस मंदिर में के दीवार पर बने देवी के चित्र भी बने हुए हैं।

विशेषता

मंदिर प्रबंधक काशी मिश्रा ने बताया कि अन्नपूर्णा मंदिर में अन्य कई विग्रह हैं। जिसमे यंत्रश्वर महादेव, कुबेर जी,सूर्य भगवान ,गणेश जी समेत हनुमान जी विराजमान हैं।धनतेरस से अन्नकूट महोत्सव तक स्वर्णमयी अन्नपूर्णा का दर्शन चार दिन होता है। भक्त माता के दर्शन हेतु देश के कोने कोने से आते हैं। मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत की रचना कर ज्ञान वैराग्य की कामना की थी।
जो इस प्रकार है-

“अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे, ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थ भिक्षां देहि च पार्वती।’
मंदिर इतिहास
मान्यता के अनुसार उज्जैनी नरेश महाराजा विक्रमादित्य ने काशी में 12 वर्षो तक माँ भगवती की घोर आराधना की। माँ ने तपस्या से प्रसन्न हो कर चरण स्वरूप में माँ अन्नपूर्णा एवं मुख स्वरूप में माँ हरसिद्धि (उज्जैन) में भक्तों पर कृपा करने का बचन दिया था।
माता दरबार निर्माण
बाजीराव पेशवा ने सन 1725 में मंदिर को स्थापित किया था। माँ अन्नपूर्णा की दो फिट ऊँची वर्तमान प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा श्रृंगेरी मठ के जगत गुरु शंकराचार्य अभिनव विद्या तीर्थ के
सानिध्य में 1977 में की गई।

पहुंचने कैसे
वाराणसी पहुंच कर गोदौलिया दशाश्वमेध, बांस फाटक और ज्ञानवापी चौक से मंदिर पहुंचा जा सकता है। माँ क़े दर्शन मात्र से धन धान्य भरा होता हैं।
मंदिर के महंत शंकर पूरी ने बताया कि शरद अष्टमी के दिन माँ गौरी के रूप में दर्शन देती हैं। माँ का हरियाली श्रृंगार धूम-धाम से मनाया जाता है। इसके बाद महिलाएं व पुरुष 17 दिवसीय महाव्रत करते हैं। माँ का वर्ष में चार दिवसीय स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन व अन्नकूट भी होता है।माँ क़े दर्शन पूजन से परिवार में सुख, शान्ति, और समृद्धि बनी रहती हैं।

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