बिहार न्यूज़ लाइव /दिलीप कुमार यादव
मामला श्रम संसाधन विभाग प्रशिक्षण पक्ष
श्रम संसाधन विभाग के प्रशिक्षण पक्ष के अधीन संचालित राज्य में 150 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान है अनुदेशक की भारी कमी देखने को मिल रही है गौरव तलब है कि बिहार राज्य के मुख्यमंत्री इस बात के धन्यवाद के पात्र हैं कि जहां राज्य में गिने-चुने औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान स्थापित था वही आज अनुमंडल स्तर पर एवं जिला स्तर पर 150 और निर्माण का कार्य चल रहा है
एक दशक से औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में अनुदेशक की भारी कमी के कारण प्रशिक्षण गुणवत्ता का अस्तर नीचे गिरता जा रहा है श्रम संसाधन के विभागाध्यक्ष राज्य के मुख्यमंत्री के अधीन मंत्री का कार्यभार देखते हैं चाहे वह अभी प्रतिपक्ष हो या सरकार के सत्ता में हो लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि 10 वर्षों से बहाली प्रक्रिया लंबित चलते आ रहा है सरकार या तो विकल्प के आधार पर इस मंत्रालय को संचालित कर रहे हैं और अन्य राज्यों से प्रशिक्षण प्राप्त कर अनुदेशक पद के लिए अभ्यार्थियों का भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं कई अभ्यर्थी न्यायपालिका के शरण में भी गुहार लगा बैठे हैं तो कई अभ्यर्थी सरकार के श्रम संसाधन के मंत्री तक गुहार लगा चुके हैं की अनुदेशक पद के विज्ञापन निकाला जाए और संस्थान में खिल रहे अनुदेशकों की कमी को स्थाई तौर पर बहाली की जय लेकिन दुर्भाग्य बात यह है कि देश के अन्य सभी राज्यों में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में अनुदेशक की बहाली कर ली गई है मात्र बिहार एक ऐसा राज्य है जहां सरकार इस गंभीर समस्या से छात्रों के साथ नहीं है जो अनुदेशक प्रशिक्षित बैठे हुए हैं
उनका निदान नहीं कर रहे हैं केवल दैनिक समाचार में ही विज्ञापन निकालने की जिक्र आज तक 10 वर्षों से चलते आ रहा है लेकिन विज्ञापन नहीं निकाला गया निकाला भी गया तो उसे लंबित या स्थगित करके रखें हुए हैं विभाग के मंसूबे पर भी अब सवाल खरा उठना लाजमी तय हो गया क्योंकि 2016-17 में निकाले गए। अंशकालीन अतिथि अनुदेशक की बहाली विज्ञापन के अनुकूल त्रुटिपूर्ण अभ्यार्थी को चयन किया गया उस विज्ञापन को भी सरकार ने गंभीरता पूर्वक नहीं लिया उसमें संशोधित करने का अवसर अभ्यार्थी को नहीं दिया गया। अखबार में निकाले गए विज्ञापन में इस बात का कहीं जिक्र नहीं था गृह जिला के अभयार्थी ही आवेदन करेंगे अपने जिला में करेंगे, लेकिन सहायक निदेशक के मंसूबे के अनुकूल इसमें संशोधन करने की समय सीमा नहीं दी गई और उसमें चयनित अभ्यर्थी को रख लिया गया ।दूसरी तरफ जब प्रतिपक्ष नेता वर्तमान के तत्कालीन श्रम संसाधन संसाधन विभाग के मंत्री थे उन्होंने पुणः दैनिक अखबार विज्ञापन संख्या 11334 LRD वर्ष2018 -19 में अंशकालीन अतिथि अनुदेशक 1800 पदों पर बहाली निकाला और विज्ञापन जारी कर विज्ञापन और विभाग के दिशा निर्देश अनुसार सारी प्रक्रिया पूरी की ,लेकिन कागजात सत्यापन कराने के बावजूद भी उन सभी अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं किया।
वर्ष 2015 में बिहार कर्मचारी चयन आयोग के तहत ली गई आवेदन का भी शुल्क वापस तक नहीं किया और मामला गोल मटोल हो गया जब नीति आयोग के रिपोर्ट का खुलासा हुआ तो इस बात से साफ जाहिर हो गया कि सरकार केवल अखबार में ही बहाली प्रक्रिया का जिक्र करते हैं ना कि उनके मंसूबा यह है कि राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षित अनुदेशकों की बहाली की जाए ।और तदुपरांत बहु विकल्प के तौर पर 2016 -17 में चयनित अभ्यर्थियों का जो अंशकालीन अतिथि अनुदेशक में हुए थे, उनका सेवा समय विस्तार करते जा रहा है ।इन सभी तथ्यों को गहराई से देखा जाए तो यह साफ जाहिर हो रहा है कि बिहार में प्रशिक्षण कर रहे छात्रों के साथ उनके भविष्य का गुणवत्ता बढ़ाना नहीं बल्कि बिना प्रशिक्षित अनुदेशक का प्रशिक्षण नहीं दिलाना उनका मंसूबा बनते जा रहा है ।जिससे प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यार्थी अपनी गुणवत्ता की निखार सरकार के कई सेक्टरों में नहीं दिखा पा रहे हैं ,राज्य के सभी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्य और विभाग में बैठे सभी आला अधिकारी आखिर किस समीक्षा की बात करते हैं और किस गुणवत्ता की बात करते हैं ,ले रहे प्रशिक्षण छात्रों का भविष्य जानता है दूसरी तरफ जहां देश के सबसे बड़ा नियोक्ता रेलवे महारत्न कंपनी कंपनियां डीआरडीओ एनटीपीसी भेल गेट इसरो सेल जैसे स्थानों पर असफलता जाहिर कर रहा है वहीं निजी कंपनियों में भी बिहार के बच्चों का जो आईटीआई प्रशिक्षित हैं उनके गुणवत्ता पर सवाल उठना ताय हो रहा है ,कि आखिर बिहार में किस तरह की प्रशिक्षण व्यवस्था औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में चल रहा है सरकार लगातार 7 वर्षों से अखबार में बहाली प्रक्रिया का जिक्र कर रहे हैं ,लेकिन कब होगी बहाली कब निकलेगा विज्ञापन आस लगाए राज्य के अनुदेशक के पद पर प्रशिक्षण प्राप्त करके अभ्यार्थी अपनी उम्र तक बिता चुके हैं लेकिन सरकार जरा सा भी इस बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। अब छात्रों ने इन तमाम बातों से और सरकार के दैनिक अखबारों से देख कर ही यह विश्वास बना उठा है कि केवल अखबार में ही प्रकाशित होता है लेकिन बहाली या विज्ञापन जिस दिन निकल जाए और बहाली प्रक्रिया पूरी हो जाए
उसी दिन यह माना जाएगा कि सरकार ने एक दशक से लंबी प्रक्रिया पूरी कर ली यही धन्यवाद के पात्र होंगे वही डीजीटी के द्वारा गाइडलाइंस में देश के सभी राज्य में सरकारी एवं निजी आईटीआई में 2022 तक 80% प्रशिक्षित अनुदेशक का लक्ष्य रखा था और यह आदेश भी जारी की थी लेकिन सरकार इस पर भी गंभीर रूप से खरा नहीं उतर पा रहे हैं अब तो अनुदेशक पद के प्रशिक्षण प्राप्त करना भी अपने जिंदगी को गटर में डालने के बराबर है क्योंकि अनुदेशक पद के प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत मात्र एक ही अवसर राज्य के सरकारी या निजी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में सेवा करने का अवसर मिलता है निजी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में भी प्रशिक्षित अनुदेशकों के साथ संस्थान उनका मानदेय देने में असमर्थ हो रहा है क्योंकि दूसरी तरफ डीजीटी निजी संस्थानों को अप्रशिक्षित अनुदेशक से भी प्रशिक्षण चलाने का अनुमति दे दिया है तो प्रशिक्षित अनुदेशक पद के अभ्यर्थी का विकलप तो बचा ही क्या है इसीलिए सरकार की मंसूबा राज्य के सभी सरकारी आईटीआई में प्रशिक्षित अनुदेशक बहाली करने की नहीं है
अगर होता तो एक दशक से वह स्थाई बहाली कर लिए होते दूसरी तरफ राज्य के अन्य सेक्टरों में ट्रेनिंग करके ही भर्ती प्रक्रिया की मान्यता दी गई है चाहे वह मेडिकल हो चाहे शिक्षा बोर्ड हो इन तमाम क्षेत्रों में यह गुणवत्ता लागू हो चुका है आखिर सरकारी आईटीआई में ऐसी किस बात की कमी है कि सरकार इन बिंदुओं पर आज तक फंसे हुए हैं सरकार अपने मंसूबे और अधिकारी के मंसूबे के बीच यह तय कर लिया है कि अनुदेशक की बहाली का जिक्र केवल दैनिक अखबार में ही करते रहना है ताकि अभ्यार्थी उसको देखते रहे और अपनी मन को सरकार की ओर से आश्वासन की तरह पाठ पढ़ते रहे इस बार अगर सरकार फिर दिन प्रतिदिन दैनिक अखबार में विज्ञापन निकालने का जिक्र तो कर रहा है लेकिन विभाग बेखबर होकर वैकल्पिक व्यवस्था पर सरकारी आईटीआई में प्रशिक्षण ले रहे छात्रों के गुणवत्ता को नीचे अस्तर कर रहे हैं
लेकिन धरातल पर आईटीआई प्रशिक्षण के गुणवत्ता की बुनियादी नीव धूमिल होती जा रही है प्रशिक्षित अभ्यर्थी रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं क्योंकि उनमें गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण ही नहीं प्राप्त है आखिर इस तरह से क्या कार्यपालिका और विधायिका पर सवाल उठना गलत या सही है
दिलीप कुमार यादव भारत सरकार द्वारा अनुदेशक पद के प्रशिक्षित प्रशिक्षण प्राप्त सफल