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सारण: वैदिक मंत्रोच्चार के साथ तीन दिवसीय वैदिक संगोष्ठी का शुभारंभ

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वेद को जानने के लिए व्याकरण पढ़ना नितांत आवश्यक:कुलपति

वेद सनातन धर्म का चक्षु है:दयानंद

फोटो 01,02,03 उद्घाटन करते कुलपति ,स्वागत गान प्रस्तुत करती छात्राएं व अन्य,तथा उपस्थित विद्वतजन

बिहार न्यूज़ लाईव सारण डेस्क:  छपरा कार्यालय।

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स्थानीय भरत मिश्र संस्कृत महाविद्यालय और सांदीपनी वेद विद्या प्रतिष्ठा टीवीन उज्जैन के तत्वावधान में तीन दिवसीय वैदिक संगोष्ठी का आयोजन शुरू हुआ।आयोजन के प्रथम सत्र में चारो वेद के मंगलाचरण हिमांशु उपाध्याय,,अजीत कुमार मिश्र और उज्ज्वल ओझा द्वारा किया गया ।साथ ही , महाविद्यालय की छात्राओं माधुरी,शालिनी,महिमा,साक्षी और अमृता कुमारी नेआगत अतिथियों का स्वागत गीत से स्वागत किया।
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि विधान पार्षद ई. सच्चिदानंद राय, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शशि नाथ झा,प्रतिकुलपति प्रोफेसर सिद्धार्थ शंकर सिंह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी के दिव्य चेतन ब्रह्मचारी,व्याकरण शाखा के विभाग प्रमुख दयानाथ झा को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
संगोष्ठी में महाविद्यालय के कुलगीत का लोकार्पण आगत अतिथियों द्वारा किया गया।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि विधान पार्षद ई. सच्चिदानंद राय ने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आज वैदिक संगोष्ठी में आप सभी के बीच उपस्थित हूं।वेद सनातन धर्म की जननी है और मनुष्य का सारा जीवन वेद से ही संचालित होता है।उन्होंने कहा कि महाविद्यालय परिवार द्वारा इस पुनित कार्य के लिए बहुत बहुत बधाई दी।उन्होंने कहा कि महाविद्यालय के विकास के लिए जो भी कुछ सहयोग होगा मेरे द्वारा किया जाएगा।

कुलपति प्रोफेसर शशि नाथ झा ने कहा कि हम सब वेदों की उपज है।वेद लौकिक और पारलौकिक दोनो के लिए है।वेद से मनुष्य का समग्र विकास होता है।उन्होंने व्याकरण के महत्त्व को बताते हुए कहा कि आज विद्यार्थी व्याकरण और अमरकोश और ग्रंथो से विमुख हो रहे है।छात्र को व्याकरण पढ़ने की जरूरत है क्योंकि वेद को जानने के लिए व्याकरण को जानना जरूरी है।

विशिष्ट अतिथि दया नाथ झा ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि वेद में धर्म और ज्ञान दोनो समाहित है और ये सब वेद से ही उत्पपन्न है।वेद सनातन धर्म की चक्षु है।पतंजलि ने कहा कि ब्राह्मण वर्ण को बिना फल की चिंता किए वेद का अध्ययन करना चाहिए।उन्होंने बताया की यज्ञ करने के लिए ज्योतिष की जानकारी होनी चाहिए।

 

दिव्य चेतन ब्रह्मचारी ने कहा कि वेद सभी पुराणों और मीमांशाओ की जननी है।वेद के बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।इसलिए वेदों का बृहत ज्ञान बहुत जरूरी है।प्रथम सत्र का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए समाजसेवी सुधांशु शर्मा ने आगत अतिथ्यो का आभार प्रकट किया तथा बताया कि संस्कृत को पूजन पाठ से ऊपर उठाने की जरूरत है।उन्होंने कहा कि अंग्रेजी बोलने वाले संस्कृत बोलने वाले को हीन दृष्टि से देखते है।वेद ने विज्ञान ,चिकित्सा ,कृषि,और योग का ज्ञान दिया ,आज उसे संवारने की जरूरत है।वेद में ढूढने की जरूरत है।वेद के अमृत को निकालकर लोगो तक पहुंचाने की जरूरत है।

 

अपने आने वाले पीढ़ी को संस्कृत के मूल को बताना होगा। उद्घाटन सत्र का संचालन प्रोफेसर अंबरीश मिश्र ने किया। इस मौके पर जय प्रकाश विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो.वैद्यनाथ मिश्र,प्रो.देवांशु कुमार,ड़ॉ.आशुतोष कुमार द्विवेदी, शंभु कमलाकर मिश्र ,आचार्य बद्री पांडेय, ड़ॉ निशा रानी,ड़ॉ.बिनोद कुमार पांडेय,ड़ॉ आशीष कुमार मिश्र सर्वेश कुमार पदनाभ, नीलेश त्रिपाठी सहित कई विद्वान व शिक्षक ,विद्यार्थी उपस्थित थे।
प्रारम्भ में महाविद्यालय की प्राचार्या ड़ॉ.आभा कुमारी ने इस तीन दिवसीय संगोष्टी के औचित्य पर सविस्तार प्रकाश डाला।

 

 

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