बिहार न्यूज़ लाइव हाजीपुर डेस्क: डॉ० संजय( हाजीपुर) सदियों से चली आ रही परंपरा में विगत चार दिनों से चल रहे सूर्योपासना का महापर्व छठ भगवान् भाष्कर को अर्घ्य देकर श्रद्धा-भक्ति के साथ संपन्न हुआ।
इस क्रम में बीते दिनों में शुक्रवार को नहाय खाय,शनिवार को खरना के बाद निर्जला रहकर छठव्रतियां कल यानी रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य दीं तथा सोमवार को प्रत्यूष काल से ही नदी,तालाब तथा घर के अहाते में,छत पर घाट बनाकर पवनइतिन नये वस्त्रों को धारण करअपनी ध्यान मग्न मुद्रा में विभिन्न घाटों के पानी में भगवान् भाष्कर की प्रतीक्षा में खडी़ रहीं और ज्योहीं भगवान् भाष्कर की लालिमा उषाकाल में दिखाई दी त्योंही छठव्रती पंचतत्व से बने ठेकुआ तथा ऋतु फल से भरे सूप, दउरा से भगवान् भाष्कर के समक्ष खडी़ हो गईं तथा उनके परिजन बारी-बारी से दूध या गंगा जल से अर्घ्य देते गये। ऐतिहासिक गाँधी आश्रम मोहल्ला में अधिकतर घरों में इसबार छत पर तथा घर के अहाते में ही घाट बनाकर छठ करते देखे गये।
अर्घ्य देने के उपरांत छठव्रती घाट का पूजन की और अपने परिजनों के लिए सुख- समृद्धि तथा मंगलकामनायें की तथा स्वजनों को माथे पर तिलक, चंदन लगा कर बद्धी पहनाई और खोंइचा में प्रसाद वितरण की।इसके बाद छठव्रती सर्बत पीकर पारन की और उसके बाद समीप के मंदिरों में जाकर देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की।बीते कल बनाये गये विभिन्न सुन्दर घाटों का स्थानीय प्रशासन के द्वारा सौन्दर्यीकरण किया गया ताकि किसी छठ व्रतियों (पवनइतिन) को किसी प्रकार की असुविधा न होने पाए। घर के अहाते और छतों पर भी बनाये गये केला के थम्भों से घेरकर बैलून, रौशनी से सुन्दर घाटों का सौन्दर्यीकरण किया गया।कर्णप्रिय छठ गीतों की ध्वनि से ध्वनित वातावरण तथा पटाखे फोड़कर,फुलझरियां छोड़ कर खुशियाँ जाहिर की गई।
इसमें महत्वपूर्ण यह है कि इस महापर्व में प्रसाद के रूप में अक्षत, अंकुरी,पान,कसेली,कच्चा हल्दी,अदरख, नारियल,अलुआ,सुथनी,अरकतपात, पंचतत्व से बने ठेकुआ, ऋतुफलों में- केला,सेव, संतरा,मूली,अमरूद,सरीफा,गागर नींबू,नासपाती,अनार, अनानास,सिंघाडा इत्यादि जो क्रमशः निर्गुण शक्ति, सगुण शक्ति, रसात्मिका शक्ति के प्रतीक स्वरूप हैं। अर्थात् इन शक्तियों के गाह्य स्वरूप ये प्रसाद हैं जिनपर सूर्य देव की सप्त किरणें पड़ने के उपरान्त स्वजन में वितरित किया गया।मुख्यतः बांस से बने दउरा, सूप का प्रयोग किया जाता है जो सदा हराभरा रहने की भावना लिए हुए है।
कुछ छठव्रतियां मनोकामना पूर्ण होने पर सोना,पीतल के सूप से भी अर्घ्य दीं।कुछ व्रतियां मिट्टी से बनी हाथी बैठायीं और ईंख से घेरकर कोशी भरने का भी चलन है जो देखी गई।कुछ पुरूष व्रती द्वारा साष्टांग दण्ड-प्रणाम करते हुए घाट तक पहुँचने की क्रिया विधि भी देखी गई। कुल मिलाकर इस महाव्रत का अनुष्ठान साक्षात प्रकृति की उपासना से संबंधित है जिसमें महिला,पुरूष व्रती के साथ-साथ परिजन भी शामिल होकर सुख और खुशी महसूस करते हैं।
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