बिहार न्यूज़ लाईव सारण डेस्क: लहलादपुर: प्रखंड मुख्यालय से गुजरती हुई गंडकी नदी उपेक्षा का शिकार एवं संकीर्ण होती जा रही है. कुछ वर्षो पहले यह नदी लोगों की प्यास बुझाने, स्नान करने, कपड़े धोने, माल-मावेशियों को नहलाने के काम आती थी.
छठ पर्व के मौके पर आज भी इस नदी किनारे कई गाँवों के छठव्रती भगवान भाष्कर को अर्ध्य दिया करती हैँ. किमबदन्ति है कि इस नदी में वर्षों पूर्व पहले जहाज चला करता था. जिससे व्यापारी अपना व्यापार करते थे. आज यह नदी जंगल-झार तथा गन्दगी के अम्बार से भरी पड़ी है. इस नदी के किनारे बने मकान एवं दूकान के सारे कूड़े-कचरे इसी गंडकी नदी में फेंके जाते हैँ.
जहां इस नदी की सफाई होनी चाहिये, वहीँ इसमें बाजारों के कचरे से इसके अस्तित्व को खतम किया जाने लगा है. कूड़े-कचरे सड़ने से प्रदूषण उत्पन्न हो रहे है. जिससे आम जन-जीवन पर कुप्रभाव पड़ रहा है. विभिन्न तरह के बीमारियों को न्योता दे रहा है यह कूड़े-कचरे का अम्बार. नदी किनारे के कुछ हिस्से का अतिक्रमण कर कुछ लोगों ने अपने मकान का हिस्सा बना लिया है. लोगों के अतिक्रमण से यह नदी काफी संकीर्ण होती जा रही है. यदि कुछ बुजुर्गों की माने तो इस गंडकी नदी से सटे दोनों किनारे स्थित कास्तकारी जमीनों की कीमत कास्तकारों को सरकार दे चुकी है.
ताकि नदी का अस्तित्व बरकरार रह सके. नदी किनारे हो रहे अतिक्रमण को प्रशासन भी अनदेखा कर रहा है. यही कारण है कि दिन प्रति दिन दूकान एवं मकान निर्माण के माध्यम से अतिक्रमण का दायरा बढ़ता जा रहा है तथा अतिक्रमण के साथ साथ कूड़े-कचरे का भी अम्बार बढ़ता जा रहा है. अब स्थिति यह है कि यह नदी सुख चली है. छठव्रतियों के लिये अर्ध्य देने के लिये कुछ ऐसी व्यवस्था छठ पूजा समितियों के माध्यम से की जाती है कि ताकि उन्हें सुविधा मिल सके. वर्षात के मौसम में थोड़ा पानी अवश्य दिखाई देता है.
इस नदी किनारे अवस्थित श्रीढोंढनाथ मंदिर के निकट दूर-दूर के गाँवों से शव जलाने लोग आते हैँ. यहां के श्मशान का भी अतिक्रमण लोगों ने कर रखा है और प्रशासन बिल्कुल मौन है. अपने संपत्तियों का खोज-खबर यहां के प्रशासन नहीं करता, यही कारण है कि अतिक्रमण का दायरा दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहा है. इसपर अंकुश लगाना अनिवार्य है ताकि नदी का वजूद बचा रहे. यह एक ऐतिहासिक धरोहर है.
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