सारण: प्रेक्षा गृह सह आर्ट गैलरी अब भिखारी ठाकुर को समर्पित, कला प्रेमियों में खुशी की लहर

Rakesh Gupta
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डॉ सुनील प्रसाद

बिहार न्यूज़ लाईव सारण डेस्क: छपरा”अबही नाम भईल बा थोड़ा ,जब ई तन छूट जाई मोरा , तेकरा बाद पचास बरिसा- तेकरा बाद बीस-दस, तीसा।

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तेकरा बाद नाम होई जइहें- पंडित, कवि, सज्जन सब यश गईहंन ।”

भोजपुरी के महान कलाकार भिखारी ठाकुर द्वारा कहें गए बात आज 100 साल बाद सही साबित हो रही है। बिहार कैबिनेट द्वारा मंगलवार को कई नीतिगत फैसले लिए गए, जिसमें हाल ही में करोड़ों की लागत से छपरा शहर में आधुनिक सुविधाओं से लैस आर्ट गैलरी सह प्रेक्षा गृह का नामकरण भिखारी ठाकुर के नाम पर किया गया। सरकार के इस फैसले से कला प्रेमियों सहित प्रबुद्ध जनों में खुशी व्याप्त है। उल्लेखनीय है कि बिहार सरकार के कला संस्कृति व युवा विभाग के मंत्री जितेंद्र कुमार राय द्वारा गत दिनों छपरा में आयोजित एक कार्यक्रम में यह कहा गया था कि आर्ट गैलरी का नामकरण भिखारी ठाकुर के नाम पर किया जाएगा। 600 सीटों की क्षमता वाला अत्याधुनिक आर्ट गैलरी अब एकता भवन की कमी को पूरा करने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है। शहर के गर्ल्स उच्च विद्यालय के समीप बनें इस आर्ट गैलरी में अमूमन सभी सरकारी व गैर सरकारी बड़े कार्यक्रम का आयोजन होते रहें हैं। सारण स्नातक क्षेत्र के एमएलसी डॉ बिरेन्द्र नारायण यादव ने भी पूर्व में विधान परिषद में आर्ट गैलरी का नाम भिखारी ठाकुर के नाम पर किये जाने का प्रश्न उठाया था। उल्लेखनीय है कि छपरा सदर प्रखंड अंतर्गत आने वाले एक छोटे से गाँव कुतुबपुर में एक गरीब नाई परिवार में जन्मे भिखारी ठाकुर अपनी रचनाओं में लिखे हैं कि उन्हें भी यह भरोसा नही था कि आगे चल उनके नाम का यश पूरे विश्व मे प्रसिद्ध होगा। आज पूरे विश्व में भोजपुरिया समाज के बीच प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके भिखारी ठाकुर सही मायने में जनता के कलाकार थे। वे हमेशा अपने नाटकों व रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किये। वर्तमान में राजधानी पटना में चितकोहरा के समीप बने एक पुल का नामकरण भी भिखारी ठाकुर के नाम पर है। वहीं उनके गृह क्षेत्र में आने वाले गुलटेंनगंज रेलवे स्टेशन पर उनके नाम का बोर्ड स्टेशन परिसर में स्थापित है। आज भिखारी ठाकुर समस्त भोजपुरिया समाज में स्थापित हैं। उनके शिष्यों को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री तथा साहित्य एवं नाट्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। भोजपुरी की चर्चित लोक गायिका कल्पना पोटवारी द्वारा भिखारी ठाकुर के 136 वीं जयंती समारोह में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजे जाने की माँग कीं। समाज में व्याप्त कुरीतियों और सम सामयिक समस्याओं को उजागर करने का महत्ती प्रयास भिखारी ठाकुर ने किया था। और आज तक उनकी लौ में सभी लोग राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं। लेकिन दीपक तले अंधेरे वाली कहावत चरितार्थ साबित हो रही है। दबी जुबां से दिल की बात बाहर आती है कि भिखारी ठाकुर के नाम पर कई लोग वृद्धा पेंशन एवं सुख सुविधा का लाभ तक उठा रहे हैं। जबकिं उनके परिवार को हर तरह की सुख सुविधाओं की बेहद इंतज़ार है। एक ओर जहां सुशील जीवकोपार्जन के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहा है। वही उनकी पुत्रवधू व सुशील की मां गरीबी का दंश झेल रही है। भिखारी ठाकुर के इकलौते पुत्र शीलानाथा ठाकुर थे। जो भिखारी ठाकुर के नाट्य मंडली व उनके कार्यक्रमों से कोई रूची नहीं थी। उनके तीन पुत्र राजेन्द्र ठाकुर, हीरालाल ठाकुर व दीनदयाल ठाकुर भिखारी की कला को जिंदा रखे हुए थे। नाट्य मंडली बनाकर जगह-जगह कार्यक्रम करने लगे। लेकिन इसी बीच उनके बाबू जी गुजर गये। फिर पेट की आग तले वह संस्कार दब गई। अब तो राजेन्द्र ठाकुर भी नहीं रहे। फ़िलहाल भिखारी ठाकुर के परिवार में उनके प्रपौत्र सुशीला कुंवर, तारा देवी, सुशील ठाकुर, राकेश ठाकुर, मुन्ना ठाकुर सहित कई अन्य बच्चें रहते हैं। वह भी जीर्ण-शीर्ण स्थिति वाले कच्चे मकान में रहने को मजबूर है भिखारी ठाकुर का परिवार। साहित्य और संस्कृति के पुरोधा, लोक साहित्य के रचनाकार, भोजपुरी के शेक्सपीयर का गांव कुतुबपुर दियरा काश, स्थानीय सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूढी के सांसद ग्राम योजना के तहत गोद में होता तो शायद पुरोधा के इस गांव को तारणहार की प्रतिक्षा नहीं होती। हालांकि जिला मुख्यालय से उनके गांव की ओर जाने के लिए राजद व जदयू की संयुक्त सरकार द्वारा गंगा नदी पर पुल का निर्माण तो करा दिया गया है लेकिन पुल से उतरने के बाद उनके घर तक जाने के लिए अभी भी वही गद्दों में तब्दील गंवई सड़क ही मिलता हैं। हाल में इस सड़क को पीसीसी कराया गया है। जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर ( गंगा उस पार ) स्थित कुतुबपुर दियरा गांव आज तक मूलभूत सुविधाओं से मरहूम नजर आता हैं। क्योंकि कार्यक्रमों की रौशनी, प्रशासन या राजनेताओं का आश्वासन उस गांव को रौशन नहीं कर सका हैं। जयंती समारोह, श्रद्धांजलि सभा और सांस्कृतिक समारोह भी कुछ लोगों तक सीमट कर रह गया है। आस-पास के दर्जनों गांव, हजारों की बस्ती, बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए तीन पंचायतों में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए एक मात्र अपग्रेड उच्च विद्यालय हैं। वह भी प्राथमिक विद्यालय से अपग्रेड हुआ है। आगे की पढ़ाई के लिए गंगा नदी इस पर छपरा आना होता है। कुछ बच्चे तो आ जाते हैं, लेकिन बच्चियां जाए तो जाए कहां। कुतुबपुर गांव से सटे कोट्वापट्टी रामपुर, रायपुरा, बिंदगांवा व बड़हरा महाजी अन्य पंचायतें हैं। स्थानीय लोगों के लिए जीविकोपार्जन का मुख्य आधार कृषि ही है। हालांकि अब गंगा नदी इनके खेत व खलिहान को निगलने लगी है। 75 फीसदी भूमिखंड में सरयू व गंगा नदी का राग है। टापू सा दिखने वाला सदृश गांव है। बाढ़ की तबाही अलग से झेलना पड़ता है। प्रत्येक साल किसानों को परवल की खेती में बाढ़ आने के बाद लाखों-करोड़ों रूपयों का नुकसान उठाना पड़ता है।
राज्य सरकार द्वारा भिखारी ठाकुर के नाम पर प्रेक्षा गृह का नामकरण किये जाने पर उनके गाँव के लोगों ने भी खुशी जाहिर की है। उनके प्रपौत्र राकेश ठाकुर, शुशील ठाकुर, सुनील ठाकुर सहित अन्य ने इसे गौरवान्वित पल बताया। वहीं प्रो जैनेन्द्र दोस्त, सरिता साज, आदि ने खुशी जाहिर की है।

 

 

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