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दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान के लिए पूर्णतः समर्पित हैं सुरेंद्र लोहिया, दिव्यांग क्रिकेट के भीष्म पितामह कहे जानेवाले सुरेंद्र लोहिया ने बदल दी भारत में दिव्यांग क्रिकेट की तस्वीर

संघर्षमय जीवन जनित संवेदना से युक्त पीसीसीआई अध्यक्ष सुरेंद्र लोहिया और डीसीसीआई महासचिव रविकांत चौहान के साथ दिव्यांग क्रिकेट को ले जा रहे नई ऊंचाइयों पर

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दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान के लिए पूर्णतः समर्पित हैं सुरेंद्र लोहिया

दिव्यांग क्रिकेट के भीष्म पितामह कहे जानेवाले सुरेंद्र लोहिया ने बदल दी भारत में दिव्यांग क्रिकेट की तस्वीर

संघर्षमय जीवन जनित संवेदना से युक्त पीसीसीआई अध्यक्ष सुरेंद्र लोहिया और डीसीसीआई महासचिव रविकांत चौहान के साथ दिव्यांग क्रिकेट को ले जा रहे नई ऊंचाइयों पर

 

✍️राकेश कुमार गुप्ता/डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

भिवानी:दिव्यांग क्रिकेट पूर्णतः संवेदना से जुड़ा तथ्य है। जिसकी जिंदगी में संघर्ष रहता है, उसमें ही संवेदना के भाव का समावेश भी होता है। एक बालक, जिसका समृद्ध परिवार कभी पाकिस्तान के रावलपिंडी के धनाढ्य परिवार में शामिल रहता है। भारत विभाजन का दंश झेलते हुए अपना सबकुछ छोड़कर हरियाणा के भिवानी पहुंचता है। शुरुआत फिर शून्य से होती है। कठिन परिश्रम के उपरांत बालक का परिवार एक उद्यमी के तौर पर अपने को सुस्थापित करता है। फिर बालक जब प्रौढ़ावस्था में पहुंचता है तो कोविड का दंश झेलना पड़ता है। पत्नी सुमित्रा और पुत्र दीपक गोयल को खोना पड़ता है। लेकिन ताजिंदगी संघर्ष के सफर पर रहा यह शख्स अपने विशेष लगाव और संवेदना के वशीभूत होकर अपना जीवन दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान के लिए समर्पित कर देता है। कभी भिवानी स्टेडियम के चहारदीवारी पर बैठ कर मैच देखते दिव्यांग खिलाड़ियों को देखकर द्रवित हुए सुरेंद्र लोहिया ने दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान के लिए एक राष्ट्रीय स्तर के संगठन फिजिकली चैलेंज्ड क्रिकेट एसोसिएशन फॉर इंडिया यानी पीसीसीआई को तैयार करते हैं। इस सफर में समर्पित साथ मिलता है डिफरेंटली क्रिकेट काउंसिल ऑफ इण्डिया यानी डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान का।

 

डीसीसीआई महासचिव रविकांत चौहान
डीसीसीआई महासचिव रविकांत चौहान

 

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पीसीसीआई के अध्यक्ष सुरेंद्र लोहिया ने दिव्यांग खिलाड़ियों की व्यथा को संवेदना से महसूस किया था। एक बार 1998 में भिवानी स्टेडियम में चहारदीवारी पर मैच देखते दिव्यांग खिलाड़ियों को देखकर सुरेंद्र लोहिया द्रवित हो गए। श्री लोहिया को पता था कि दिव्यांग खिलाड़ियों में प्रतिभा होती है। उन्हें विभिन्न स्पर्धाओं में भाग लेने जाने के लिए भी खुद से व्यय करना पड़ता है। प्रशिक्षण के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव रहता है।इसलिए दिव्यांग क्रिकेट के भीष्म पितामह सुरेंद्र लोहिया ने पीसीसीआई की नींव 2012 में रखी। इसमें उन्हें सहयोग मिला डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान का। वर्तमान में 28 राज्यों में दिव्यांग क्रिकेट टीम गठित हो गई है।

 

पीसीसीआई ने कई राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं का आयोजन भी किया है। 2022 में लखनऊ में आयोजित स्पर्धा में 20 राज्यों की दिव्यांग टीम ने हिस्सा लिया। 2023 में उदयपुर में आयोजित स्पर्धा में 24 राज्यों की टीम ने हिस्सा लिया। 2024 में हरियाणा के हांसी और उदयपुर में भी राष्ट्रीय स्तर के स्पर्धा की आयोजन की तैयारी है। पीसीसीआई ने 2024 में अहमदाबाद में भारत और इंग्लैंड के बीच अंतराष्ट्रीय स्पर्धा का आयोजन भी पीसीसीआई ने कराया है।

 

बीसीसीआई से प्राप्त कुछ सहायता के साथ पीसीसीआई ने बिना किसी ठोस सरकारी सहायता के दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान हेतु कई योजनाओं को संचालित कर रही है। जिसमें दिव्यांग खिलाड़ियों के उत्थान और उनके प्रशिक्षण के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास पर काम किया जा रहा है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सचिव जय शाह की पहल पर दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक विशेष समिति बनाई गई हैं ,जिसमें पीसीसीआई की संगी संस्था डीसीसीआई को भी शामिल किया गया है।

 

पीसीसीआई के प्रेसिडेंट सुरेंद्र लोहिया यह स्वीकार करते हैं कि कुछ संवेदनशील अधिकारियों ने दिव्यांग क्रिकेट के लिए बहुत मदद भी किया है। जिसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री अशोक मीणा, श्री राजेश खुल्लर महत्वपूर्ण हैं। उद्योगपति धर्मेश शाह, पूर्व मंत्री हरियाणा घनश्याम सर्राफ, राष्ट्रपति अवॉर्डी अशोक भारद्वाज, संजय गोयल, सचिन जैन, खांटू श्याम मंदिर के प्रबंधक श्री प्रताप सिंह चौहान, सेवादार श्री राजेश भारद्वाज का सहयोग भी दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान में महत्वपूर्ण रहा है। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया के उद्यमी श्री आनंद चुक्का भी अनवरत सहयोग देते रहे हैं । डीसीसीआई महासचिव रविकांत चौहान के सहयोग के बिना तो कुछ भी संभव ही नहीं था।

 

सुरेंद्र लोहिया का परिवार पहले पाकिस्तान में रहता था। उनके दादा जी श्री राम परशुराम लोहिया लाहौर से उस दौर में डबल एम ए थे।उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में एम ए की डिग्री हासिल की थी। उनकी रावलपिंडी में एक बड़ी राइस मिल थी। जिसमें 5 हजार लोग काम किया करते थे। भारत विभाजन के समय उनके परिवार को सब कुछ पाकिस्तान में छोड़ कर खाली हाथ भारत आना पड़ा। भारत के भिवानी में आकर उनके पिता श्रीराम लोहिया और माता गीता देवी ने अपने छोटे बालक सुरेंद्र लोहिया के साथ एक नई जिंदगी शुरू की। फिर संघर्ष करके अपने उद्यम को स्थापित किया।

 

सुरेंद्र लोहिया का बचपन से ही क्रिकेट से लगाव था। उन्होंने भिवानी में स्वदेशी क्रिकेट क्लब की स्थापना की थी। जिसमें रणजी स्तर के खिलाड़ी खेला करते थे। दिव्यांग क्रिकेट के प्रति उनका झुकाव उनके संवेदनशील व्यवहार के कारण हुआ। 2014 के एक मैच में खेलते समय एक दिव्यांग खिलाड़ी तुषार पॉल का एक पैर निकल गया था। 2017 में ग्रेटर नोएडा में भारत के दिव्यांग क्रिकेट खिलाड़ियों ने अफगानिस्तान की सामान्य टीम को कड़ी टक्कर दी थी। ये कुछ ऐसी घटनाएं रही, जिसने सुरेंद्र लोहिया के संवेदनशील मन को दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान के लिए ऊर्जस्वित और प्रेरित किया। सुरेंद्र लोहिया के जीवन का यही उद्देश्य है कि वे दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान और दिव्यांग खिलाड़ियों के उत्साहवर्धन के लिए हरसंभव प्रयास कर सकें। सुरेंद्र लोहिया जी की ख्वाहिश है कि बीसीसीआई महिला क्रिकेट की तरह आईपीएल दिव्यांग क्रिकेट का करवाए ताकि अपने अधूरे सपनों को दिव्यांग क्रिकेटर पूरा कर सकें। उन्हें आर्थिक सहायता मिले, जिससे वे अपना और अपने घर परिवार का पोषण कर सकें।

 

(लेखक डॉक्टर गणेश दत्त पाठक वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद् और डिफरेंटली-एबल्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ बिहार के जनसंपर्क पदाधिकारी हैं। साथ ही लेखक राकेश कुमार गुप्ता संजना भारती अखबार के स्थानीय संपादक एवं फिजिकल डिसेबिलिटी क्रिकेट के पूर्वी भारत के जोनल कोऑर्डिनेटर सह डिफरेंटली-एबल्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार के अध्यक्ष हैं )

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