Bihar News Live
News, Politics, Crime, Read latest news from Bihar

मधेपुरा:भाई बहन के प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार ।

45

- sponsored -

 

बिहार न्यूज़ लाईव मधेपुरा डेस्क: जिला संवाददाता रंजीत कुमार

मधेपुरा :आज भाई बहन के प्रेम के प्रतीक का पर्व रक्षाबंधन पूरे देश में मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में रक्षाबंधन के त्योहार का विशेष महत्व होता है। हमारे कुलगुरु पंडित नू नू झा अनुसार हर वर्ष श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस साल रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहेगा। ऐसी मान्यता है जब भी भद्रा होती है तो इस दौरान राखी बांधना शुभ नहीं होता है। राखी हमेशा भद्राकाल के बीत जाने के बाद ही बांधी जाती है।
आज श्रावण पूर्णिमा का त्योहार है। पूरे देशभर में इस तिथि पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं से युक्त रहता है। इस दिन पूजा-पाठ, जाप और दान का विशेष महत्व होता है। इस तिथि पर पूजा-पाठ और गंगा स्नान करने पर जीवन के कई तरह दोषों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

आखिर क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन,जानिए तीन पौराणिक कथाएं
रक्षाबंधन शब्द का अर्थ है ‘रक्षा’ और ‘बंधन’, अर्थात भाई अपनी बहन की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता है और बहन भाई की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती है। शास्त्रों के अनुसार इस त्योहार से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं।

पहली श्रीकृष्ण-द्रौपदी से जुड़ी कथा

- Sponsored -

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से कट गई । यह देखकर द्रौपदी ने खून रोकने के लिए अपनी साड़ी से कपड़े का एक टुकड़ा फाड़कर चोट पर बांध दिया। भगवान कृष्ण,द्रौपदी से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने हमेशा उनकी रक्षा करने का वादा किया। उन्होंने यह वादा तब पूरा किया जब द्रौपदी को हस्तिनापुर के शाही दरबार में सार्वजनिक अपमान का सामना करना पड़ा।

दूसरी इंद्र-इंद्राणी से जुड़ी कथा

शास्त्रों के अनुसार एक बार देव और असुरों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब असुर, देवताओं पर भारी पड़ने लगे। ऐसे में देवताओं को हारता देख देवेंद्र इन्द्र घबराकर ऋषि बृहस्पति के पास गए। तब बृहस्पति के सुझाव पर इन्द्र की पत्नी इंद्राणी (शची) ने रेशम का एक धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। जिसके फलस्वरूप इंद्र विजयी हुए। कहते हैं कि तब से ही पत्नियां अपने पति की कलाई पर युद्ध में उनकी जीत के लिए राखी बांधने लगी।

तीसरी मां लक्ष्मी-राजा बलि से जुड़ी कथा
कथा के अनुसार असुरराज दानवीर राजा बलि ने देवताओं से युद्ध करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था और ऐसे में उसका अहंकार चरम पर था। इसी अहंकार को चूर-चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में बलि के द्वार भिक्षा मांगने पहुंच गए। चूंकि राज बलि महान दानवीर थे तो उन्होंने वचन दे दिया कि आप जो भी मांगोगे मैं वह दूंगा।

भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली। बलि ने तत्काल हां कर दी। लेकिन तब भगवान वामन ने अपना विशालरूप प्रकट किया और दो पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया। फिर पूछा कि राजन अब बताइये कि तीसरा पग कहां रखूं? तब विष्णुभक्त राजा बलि ने कहा, भगवान आप मेरे सिर पर रख लीजिए और फिर भगवान ने राजा बलि को रसातल का राजा बनाकर अजर-अमर होने का वरदान दे दिया।

लेकिन बलि ने इस वरदान के साथ ही अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया। भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बलि की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।

 

 

- Sponsored -

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

- sponsored -

- sponsored -

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More