गुदरी में छुपे होते हैं लाल इस कहानी को चरितार्थ करते रंजीत गिरि

Rakesh Gupta
फोटो 03 गायक रंजीत गिरि

 

संजय कुमार पांडेय/छपरा सदर ।

…..यूं तो आम बोल-चाल की भाषा में लोग कहा करते हैं कि गुजरी में लाल छुपे होते हैं लेकिन कभी-कभी हकीकत भी सामने उभर कर आती है कि वास्तव में गुदरी में लाल छुपे होते हैं इस कहानी को सदर प्रखंड के लोहारी गांव निवासी रंजीत गिरी चरितार्थ किए हुए हैं ।कला के क्षेत्र में अब नाम के लिए मोहताज नहीं रह गए हैं रंजीत गिरी 10 वर्ष की उम्र से संगीत का शौक हुआ तो गांव-गांव में दुर्गा पूजा सरस्वती पूजा तथा अन्य शादी विवाह में भजन और गीत गाए चला करते थे। सातवीं क्लास में ही पिता का साया सर से उठ गया उसके बाद भी अपने संगीत को इन्होंने जैसे तैसे संभालते रहे। पिता की मौत के बाद इनके बड़े भाई जो इनके उम्र से थोड़े ही बड़े थे केरल चले गए प्राईवेट काम करने के लिए। आज रंजीत इस मुकाम पर पहुंचे हैं कि जिस किसी भी कार्यक्रम में जाते हैं चाहे वह हारमोनियम बजाना हो या कोई भजन, कोई गाना गाना हो या किसी नाटक में मुख्य पात्र की भूमिका निभाने हो बिल्कुल छा जाते हैं। दर्शक उनकी कलाओं पर मंत्र मुक्त हो जाते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी है रंजीत गिरी।

 

दोस्त करते थे गाना की तारीफ तो बढ़ता था मनोबल

रंजीत गिरि ने कहा कि बचपन में जब मैं स्कूल तथा गांव के किसी फंक्शन में गाता था तो मेरे दोस्त मेरा काफी तारीफ करते थे जिसके बदौलत मेरा मनोबल बढ़ा और मैं गांव से निकाल कर बाहर आया तो आज इस तरह के कार्यक्रम में मुझको भाग लेने का मौका मिल रहा है। नहीं थे ₹3000 हारमोनियम खरीदने के लिए रंजीत गिरि ने बताया कि पिता जी के मौत के हमारी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। 9 वीं क्लास में मेरा नामांकन मेरे बड़े भाई राजन गिरी ने विशेश्वर सेमिनार स्कूल छपरा में करा दिया। पहले से ही मैं अपने स्कूल में प्रार्थना कराया करता था। विशेश्वर सेमिनरी स्कूल में करीब एक सप्ताह जाने के बाद 5 सितंबर आ गया और वहां फंक्शन हुआ जहां अपने सर से बोलकर मैं भी कार्यक्रम में भाग लिया और गाना गया।

 

स्कूल के सभी बच्चे और शिक्षकों ने मेरे गाने का तारीफ किया उसके बाद स्कूल के हर कार्यक्रम में में भाग लेना शुरू कर दिया। फिर भी मुझे तलाश थी एक संगीत के गुरु की। काफी खोजबीन करने के बाद गुरुजी मिल गए जिनका नाम जवाहर राय है। मैं उनके पास पढ़ने जाने लगा लेकिन संगीत सीखने के लिए एक छोटे से वाद्य यंत्र हारमोनियम की जरूरत थी जो मेरे पास नहीं था। वहीं पर जेडी प स्कूल के धर्मेंद्र सर से भेंट हुई और उन्होंने कहा कि मेरे पास एक हारमोनियम है जो मैं ₹4000 में दूंगा लेकिन रंजीत गिरी के पास ₹1 नहीं थे जैसे तैसे उनके नाना जी के द्वारा ₹3500 दिए गए तब जाकर सेकंड हैंड हारमोनियम खरीद कर और उसे साइकिल पर बांधकर के अपने घर ले गए। गुरु जी की कृपा से निकला भक्ति एल्बम संगीत की शिक्षा पूरी करने के बाद गुरु जी के आदेश से भक्ति एल्बम निकाला जिसमें गुरुजी हम लोगों को लेकर दिल्ली गए। दशहरा के मौसम में एल्बम निकाला एल्बम के प्रचार के लिए हम लोग गांव-गांव घूमकर पंडाल के लोगों से अनुनय विनय करते थे कि हमारी एल्बम सी डी को अपने पंडाल में बजाइए और एक बैनर लगाने दीजिए।

 

फिल वक्त इप्टा के मंच पर करते है काम

अभी रंजीत गिरि इप्टा के मंच से अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं तथा हारमोनियम बजाते हैं, गाना गाते हैं एवं किसी भी नाटक में मुख्य भूमिका के रूप में अपनी पहचान बनाते हैं। इप्टा के माध्यम से छपरा,जलालपुर, पटना, पलामू आदि शहरों में मुख्य भूमिका निभाकर के दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ चुके हैं। छपरा के प्रेक्षागृह में आयोजित इप्टा के कार्यक्रम में जमींदारी प्रथा पर करारा प्रहार करते हुए नौटंकी मजदूर कमलनाथ में कमलनाथ की भूमिका निभाई तथा किस तरह गांव के धनी से लेकर कोलकाता के फैक्ट्री तक में मजदूरों का शोषण किया गया इसका बखूबी भूमिका निभाई। मजदूर कमलनाथ 35 वर्ष पहले लिखा गया विपिन बिहारी श्रीवास्तव का नाटक है जिसको यह युवा कलाकार ने वास्तव में कमलनाथ की भूमिका बिल्कुल इस तरह निभाई की दर्शकों को ऐसा लगता था मानो वास्तव में जमींदारों और फैक्टरी मालिकों का वही जमाना आ गया जिस जमाने में गरीबों का जबरदस्त तरीके से शोषण हुआ करता था।

अभी रंजीत गिरि संगीत से प्रभाकर की डिग्री लेकर एक प्राईवेट स्कूल में संगीत शिक्षक के रूप में कार्य करते है और सरकारी नौकरी के लिए पढ़ाई भी कर रहे है।

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