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पेरिस पैरालिंपिक के बाद दिव्यांग खिलाड़ी रचेंगे अब नवीन कीर्तिमान: रविकांत चौहान

पेरिस गई भारतीय पैरालिंपिक टीम के सहयोगी, डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान ने भेंटवार्ता में बताई अपनी दिल की बात

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पेरिस पैरालिंपिक के बाद दिव्यांग खिलाड़ी रचेंगे अब नवीन कीर्तिमान: रविकांत चौहान

पेरिस गई भारतीय पैरालिंपिक टीम के सहयोगी, डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान ने भेंटवार्ता में बताई अपनी दिल की बात

पेरिस पैरालिंपिक की सफलता ने भारत में दिव्यांग खेलों की तरफ सभी का ध्यान आकर्षित किया है। पेरिस पैरालिंपिक में जीते गए 29 मेडल भारत में दिव्यांग खेलों को नवीन ऊर्जा से सराबोर कर रहे हैं। अभी तक हौंसले की उड़ान भर रहे हमारे दिव्यांग खिलाड़ी, अब नया कीर्तिमान रचेंगे। ये बातें डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान ने शुक्रवार को डीसीएबी के पीआरओ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक से बातचीत में कही। गौरतलब है कि डिफेंट्ली एबल्ड क्रिकेट काउंसिल ऑफ इंडिया यानी डीसीसीआई बीसीसीआई सपोर्टेड बॉडी है।

 

डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान एवं फिजिकली चैलेंज्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के सीईओ रविंद्र भाटी ने भी इस बार भारत के प्रदर्शन पर कहा कि दिव्यांग खिलाड़ी भारत के बदलते समाज और उसके नजरिए की कहानी बनकर उभरे है।
डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान एवं फिजिकली चैलेंज्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के सीईओ रविंद्र भाटी 

 

डीसीसीआई महासचिव और पेरिस पैरालिंपिक में इतिहास रचनेवाली भारतीय टीम के सहयोगी रविकांत चौहान ने साक्षात्कार में बताया कि तमाम सुविधाओं और स्तरीय प्रशिक्षण से लैस पेरिस गई भारतीय पैरालिंपिक टीम का उत्साह देखने लायक था। दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर और डाइट आदि की उच्चस्तरीय व्यवस्थाओं को सहेजने में पैरालिंपिक कमिटी ऑफ़ इंडिया के प्रेसिडेंट देवेंद्र झांझरिया ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। खिलाड़ियों का उत्साह भी चरम पर था तो पेरिस में इतिहास रचा ही गया।

 

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स्वयं दिव्यांग खिलाड़ी होते हुए डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान उस दौर की याद कर भावुक हो जाते हैं, जब दिव्यांग खिलाड़ियों के पास मूलभूत सुविधाएं भी नहीं रहती थी। वह दौर सहानुभूति का था। जब दिव्यांग खिलाड़ी खेल हौंसले के बल पर खेला करते थे और इनाम में तथाकथित सहानुभूति मिलती थी। वह दौर मनोबल को तोड़ता था, उत्साह को क्षीण करता था।

लेकिन आज सरकार दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए उच्च स्तरीय सुविधा उपलब्ध करा रही है। यद्यपि कुछ क्षेत्रों में अभी भी नौकरशाही की असंवेदनशीलता और उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है लेकिन पेरिस पैरालिंपिक की सफलता के बाद दिव्यांग खेलों की तस्वीर बदलनी ही है। आईसीसी के नए मुखिया जय शाह ने हाल ही में दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान के लिए प्रयास करने की बात कही है, जिसका भी सकारात्मक प्रभाव निकट भविष्य में देखने को मिल सकता है।

 

डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान दिव्यांग क्रिकेट के उत्थान के शुरुआती अपने प्रयासों को याद करते हुए बताते हैं कि प्रारंभ में कई अवसरों पर समझौते करने पड़े। पारिवारिक चुनौतियों और दिव्यांग क्रिकेट के प्रति लगाव के बीच सामंजस्य को स्थापित करना एक बेहद मुश्किल टास्क था। संसाधनों की उपलब्धता सदैव एक बड़ी चुनौती रही। फिजिकली चैलेंज्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानी पीसीसीआई के 2012 में गठन के उपरांत हम अपनी टीम को लेकर पाकिस्तान गए और वहां पाकिस्तान को शिकस्त दी।

अब हम बीसीसीआई के सपोर्ट से अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम जैसे ग्राउंड में दिव्यांग क्रिकेट स्पर्धाओं का आयोजन कर रहे हैं। हमने तकरीबन हर राज्य की दिव्यांग क्रिकेट टीमों का गठन कर लिया है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष टूर्नामेंट का आयोजन कर रहे हैं। भविष्य के प्रति बेहद आशान्वित दिख रहे रविकांत चौहान का मानना है कि दिव्यांग खेल अब मात्र सहानुभूति के दायरे से बहुत बाहर निकल चुका है और हौंसले के आधार पर नवीन कीर्तिमान को कायम करने में तल्लीन है।

 

(लेखक डॉक्टर गणेश दत्त पाठक वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद् और डिफरेंटली-एबल्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ बिहार के जनसंपर्क पदाधिकारी हैं। साथ ही लेखक राकेश कुमार गुप्ता संजना भारती अखबार के स्थानीय संपादक एवं फिजिकल डिसेबिलिटी क्रिकेट के पूर्वी भारत के जोनल कोऑर्डिनेटर सह डिफरेंटली-एबल्ड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार के अध्यक्ष हैं )

 

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