पूरी काशी जुटती है धनतेरस से अन्नकूट के बीच, पांच दिन देगी मिलेगा दर्शन
काशी में विराजती हैं माँ अन्नपूर्णा जिनसे बाबा ने अन्न की मांगी थीं भिक्षा
संवाददाता सौरभ मिश्रा
वाराणसी|आज से माता स्वर्णमई अन्नपूर्णा का पांच दिन होगा,दर्शन धनतेरस से अन्नकूट के बीच मां की स्वर्णमयी प्रतिमा के दर्शन और खजाना प्राप्त करने के लिए पूरी काशी जुटती है। इन पांच दिनों के दौरान सुप्रसिद्ध अन्नपूर्णा मंदिर में तिल रखने की जगह नहीं होती मगर श्रद्धालुओं का रेला अनुशासित हो दर्शन करता है। स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के दर्शन और उनका खजाना प्राप्त करने की तीव्र इच्छा लोगों को अपने घरों से सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर काशी ले आती है। मान्यता है कि मां का खजाना घर को धन-धान्य से पूर्ण रखता है, किसी वस्तु की कमी नहीं होने पाती। मां का खजाना प्राप्त करने के लिए उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से तो लोग आते ही हैं,
माँ की एक झलक पाने को सर्वाधिक भीड़ होती हैं
यह कहना गलत नहीं होगा कि माता अन्नपूर्णा का खजाना पाने की हसरत पूरे देश को काशी में जुटा लेती है। काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में स्थित मां अन्नपूर्णा का दरबार धनतेरस की पूर्व संध्या 29 अक्टूबर क़े आधी रात के बाद दर्शन के लिए खोल दिया जाएगा। पूरे साल में धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक पांच दिन अन्नपूर्णा के स्वर्णमयी विग्रह का दर्शन सभी को सुलभ होता है।
भारत में एक मात्रा मंदिर जहाँ खजाना बटता हैं
काशी का अन्नपूर्णा मंदिर देश का एकमात्र मंदिर है जहां धनतेरस से अन्नकूट तक खजाने का वितरण होता है। खजाना के रूप में मिले सिक्के व धान के लावा को लोग तिजोरी व पूजा स्थल पर रखते हैं। मान्यता है कि मां का प्रसाद तिजोरी और पूजा स्थल पर रखने से पूरे वर्ष धन और अन्न की कमी नहीं होती।
दिन ही मां अन्नपूर्णा होते हैं दर्शन
काशी में पड़ा था अकाल
देश के किसी अन्नपूर्णा मंदिर में नहीं है ऐसी परंपरा
मान्यता
अन्नपूर्णा की पुरी है काशी
महादेव उन्हें साथ लेकर अविमुक्त-क्षेत्र
(काशी) आ गए। तब काशी श्मशान नगरी माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ खी के
समान अपने घर का श्मशान में
होना नहीं भाया। तब व्यवस्था दी गई कि सतयुग, त्रेता व द्वापर में काशी श्मशान रहेंगी किंतु कलिकाल में अन्नपूर्णा की पुरी के रूप में बसेगी। इसी कारण अन्नपूर्णा मंदिर को काशी के प्रधान देवीपीठ की मान्यता है। कलछुल है।
योगक्षेम की करती हैं चिंता
स्कन्दपुराण के ‘काशीखण्ड’ में उल्लेख है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अतः काशीवासियों के भी योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। ‘ब्रह्मवैवर्तपुराण’ के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा की जाती है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा देवी के निमित्त व्रत रह कर उनकी उपासना का
ऐसा है अन्नपूर्णा देवी का स्वरूप
देवी पुराण के अनुसार मां अन्नपूर्णा का रंग जवापुष्य के समान है। भगवती अन्नपूर्णा अनुपम लावण्य से युक्त नवयुवती के सदृश हैं। बंधूक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित देवी प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं। बाएं हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य, रत्न से जड़ा पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित है|
स्वयं महादेव ने माँ से अन्न की मांगी थीं भिक्षा,काशी में कोई भूखा नहीं सोता
जनश्रुति के अनुसार एक बार काशी में अकाल पड़ गया था, चारों तरफ तबाही मची थी। लोग भूखों मर रहे थे। महादेव भी इस लीला को समझ नहीं पा रहे थे। अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पूरी ने बताया कि चराचर जगत के स्वामी महादेव ने मां अन्नपूर्णा से यहीं पर भिक्षा मांगी थी। मां ने भक्तों के कल्याण के लिए भिक्षा के रूप में अन्न के साथ वरदान दिया था कि काशी में रहने वाला कोई भक्त कभी भूखा नहीं रहेगा व माँ क़े दर्शन पूजन से धन धान्य की कमी नहीं होती|
मंदिर प्रबंधक काशी मिश्रा ने बताया की पहले कई दशक पूर्व केवल एक घंटे क़े लिये स्वर्णमई रूप का दर्शन होता हैं उस समय सविधि पूजनअर्चन कर एक घंटे बाद पट बंद कर दिया जाता था|पर समय क़े साथ जैसे जैसे भक्तों की संख्या बढ़ने लगी वैसे घंटे से दिन हुआ और आज पांच दिन दर्शन देती हैं,माता की कृपा से हजारों भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं|