प्राचीन एवं आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के समन्वय की आवश्यकता- देवनानी

Rakesh Gupta
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*वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक औषधियां में
*महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन का हुआ आयोजन

(हरिप्रसाद शर्मा)अजमेर/ महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान एवं आहार तथा पोषण संकाय द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के तत्वावधान में पादप आधारित न्यूट्रास्यूटिकल्स और चिकित्सा पर नवीन अनुसंधान विषय पर अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का भव्य आयोजन किया गया।

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 इस महत्वपूर्ण कॉन्फ्रेंस का आयोजन विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के मुख्य आतिथ्य में किया गया। कॉन्फ्रेंस की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं विश्वविद्यालय के कुल गीत के साथ हुई। इस दौरान मुख्य प्रवक्ता  जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर पी सी त्रिवेदी, महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कैलाश सोडाणी, वनस्पति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अरविंद पारीक एवं प्रोफेसर रितु माथुर मंचासीन रहे।


    विधानसभा अध्यक्ष प्रोफेसर वासुदेव देवनानी ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के साथ संबंध बहुत गहरा है। छात्रा राजनीति के दौरान विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए प्रयासरत भी रहे। विश्वविद्यालय शोध कार्य एवं नवाचारों में दिन प्रतिदिन नए आयाम स्थापित कर रहा है। विश्व में स्वास्थ्य को लेकर चुनौती बढ़ती जा रही है । आहार एवं पोषण केवल स्वास्थ्य से जुड़ा विषय नहीं बल्कि वैश्विक चिंतन का मुद्दा बन चुका है। ऐसे में प्राकृतिक पौधों के चिकित्सकीय गुणों पर शोध की आवश्यकता है । पूर्वजों द्वारा उपयोग में ली गई औषधियों एवं वनस्पतियों की जानकारी जुटाकर  स्वयं को जानने की जरूरत है ।


   उन्होंने कहा कि पश्चिम की एलोपैथी पद्धति से रोग से ग्रसित होने पर उपचार होता है जबकि भारतीय आयुर्वेद में आहार एवं दैनिक दिनचर्या से रोग की निरोध क्षमता विकसित होती है। ऐसे में प्राचीन एवं आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में समन्वय की आवश्यकता है । पादप आधारित शोध के विकास से हमे पादपों के पत्तों, तने , जड़े, फलों में विटामिन, खनिज, सहित बहुउपयोगी पौष्टिक तत्वों की जानकारी होगी। इससे हम इन्हें  आहार में शामिल कर सकेंगे।  उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्राकृतिक पौधों में मौजूद औषधीय गुणों का वैज्ञानिक शोध के माध्यम से समाज में उपयोग हो। प्रयोगशाला में किए शोध केवल कागजों तक सीमित नहीं  रह जाए।
     उन्होंने बताया कि भारत में प्राचीनकाल से औषधीय गुण वाले आहार का दैनिक सेवन किया जाता रहा है। इसमें एंटीबायोटिक गुण युक्त हल्दी ,  नीम का मंजन , मसाले शामिल  है । इसके उपयोग से भारतीय दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन जीते थे। हमारी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों का विदेशी कंपनियों ने पेटेंट करवाकर धनार्जन किया। इसके लिए हमें डॉक्यूमेंट में भी मजबूत होने की आवश्यकता है।


     राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के प्रोफेसर एच. एन. वर्मा ने कहा कि अकादमी समाज में विज्ञान के प्रसार पर कार्य कर रही है। अकादमी के जयपुर चौप्टर द्वारा विज्ञान के उपयोग से ग्रामीण क्षेत्रों एवं पिछड़े वर्ग में जीवन की गुणवता सुधार के लिए विज्ञान आधारित कृषि, किचेन गार्डन में चिकित्सकीय पौधों की जानकारी प्रसारित की गई। विज्ञान के विकास से आम जीवन के अभावों में कमी आएगी।


       जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर पी.सी. त्रिवेदी ने कहा कि दैनिक जीवन में प्रयुक्त भोजन के द्वारा  रोगों का निवारण या आवाहन किया जा सकता है। जंक फूड से रोगों को आमंत्राण मिलता है। शोधकर्ताओं को फील्ड में जाकर भौगोलिक एवं पर्यावरणीय परिदृश्य के अनुसार पादपों पर शोध करना होगा । भौगोलिक प्राकृतिक एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार भिन्नता पाई जाती  है । अभी तक केवल 10 प्रतिशत जैव विविधता की खोज की गई है। शिक्षकों की शोध में अहम भूमिका है। पूर्ववर्ती ज्ञान को संजोए रखना एवं नवाचार को बढ़ावा देना । शिक्षक व्यक्ति को व्यक्तित्व में बदलता है। कॉन्फ्रेंस में विभिन्न विभागों के न्यूजलेटर , एब्स्ट्रेक्ट पुस्तिका, एवं विज्ञान रश्मि हिन्दी जर्नल का विमोचन भी किया गया।


   इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कैलाश सोडाणी ने कहा कि यह सम्मेलन शोधकर्ताओं और विज्ञान प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, जहां वे अपने शोध को समाज के उपयोग में लाने के उपायों पर विचार कर सकते हैं। कॉन्फ्रेंस में देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं एवं विषय-विशेषज्ञों ने भाग लिया और अपने शोध प्रस्तुत किए। आगामी दो दिवस पर 120 शोध कार्यों पर चर्चा की जाएगी।  पौधों के रोगनिरोधी गुण, आहार एवं भोजन के माध्यम से पोषण और चिकित्सा, तथा दैनिक जीवन में संतुलित आहार की भूमिका पर गहन चर्चा हुई। प्रोफेसर रितु माथुर एवं कॉन्फ्रेंस के आयोजकों ने इसे सफल बनाने के लिए सभी प्रतिभागियों, अतिथियों एवं वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त किया ।

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