खुशबू कुमारी ( हाजीपुर )- स्वर्गीय उषा वर्मा तथा स्वo धूपेन्द्र प्रसाद का आठवां स्मृति दिवस शनिवार को स्थानीय प्रचीन मोहल्ला गांधी आश्रम स्थित उषा-धूपेन्द्र स्मृति सदन में श्रद्धा पूर्वक मनाया गया।इस अवसर पर साहित्यसेवियों ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए बताया कि अपने पितरों को याद करना और उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर चर्चा करना वर्तमान पीढ़ी के लिए तथा समाज के लिए शुभ संकेत हैं।
कार्यक्रम के आरंभ में मोहल्ला वासी तथा साहित्य सेवियों ने स्वर्गीय उषा वर्मा तथा स्वर्गीय धूपेन्द्र प्रसाद के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद डॉo संजय ‘विजित्वर’ ने उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए बताया कि स्वर्गीय उषा वर्मा एक निडर और व्यवहार कुशल महिला थी। सामाजिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी ।
आज भी उनकी नेकदिली की चर्चा गांधी आश्रम मोहल्ला के प्राचीन निवासी करते रहते हैं और स्वर्गीय धूपेन्द्र प्रसाद एक मितभाषी और ईमानदार व्यक्तित्व थे जिनकी चर्चा मोहल्लावासी,सगे-संबंधी तथा शिक्षा विभाग के कई कर्मी उन्हें याद करते हुए करते हैं। गांधी आश्रम मोहल्ला के प्राचीन निवासी डॉ० विजय कुमार ने बताया कि स्वर्गीय उषा वर्मा समाज में काफी मिलनसार थी और सबके सुख- दुख में बिना संकोच किए अपनत्व का भाव दर्शाती थी अर्थात सहयोगात्मक प्रवृत्ति की साहसी नारी थी जो कम देखने को मिलता है और स्वर्गीय धूपेन्द्र प्रसाद की ईमानदारी की चर्चा आज तक समाज में होती है ।
इसके बाद वरिष्ठ कवि आशुतोष सिंह ने बताया कि पितरों को याद करने से और उनके प्रति श्रद्धा भाव रखने से आशीर्वाद मिलता है तथा संतान तरक्की करता है। श्री सिंह ने जीवन की सच्चाई को दर्शाती मार्मिक गेय रचना- लेके जाना तो कुछ भी यहां से नहीं ,मोह,माया, आशक्ति, अभिमान बांध ले—सुनाई जिसपर खूब वाहवाही हुई।इसके बाद वरिष्ठ कवि मणिभूषण प्रसाद सिंह अकेला ने कहा कि इस तरह का कार्यक्रम समाज के लिए संदेशात्मक है और माता -पिता पर केंद्रित रचना—‘माता प्रथम गुरु ,पिता वन पथ-दर्शक,वही तो हैं मेरे भगवान –सुनाकर आत्ममुग्ध कर दिया। वरिष्ठ कवि शंभु शरण मिश्र ने मुक्त छंद की मार्मिक रचना-नहीं आई थी लाज हरिश्चन्द्र को मांगते हुए कफ़न का चिथरा’— सुनाकर भावविभोर कर दिया।
वरिष्ठ कवि डॉ शिव बालक राय प्रभाकर ने कहा कि स्वर्गीय धूपेन्द्र प्रसाद जी वास्तव में एक विनम्र और ईमानदार व्यक्ति थे । उन्होंने मुक्त रचना-धरा का सबकुछ धरा पर धरा ही रह जाता —-सुनाई जिसकी खूब सराहना हुई। बालक युगांत युग ने बंदे मातरम का आवृत्ति पाठ किया।
डॉ संजय ‘विजित्वर’ ने ‘पाला’ शब्द के विभिन्न अर्थों पर केंद्रित चार पंक्तियां – मार दिया पाला सुनाकर सबको खूब हंसाया ।वरिष्ठ कवि रवीन्द्र कुमार रतन ने स्वर्गीय उषा वर्मा तथा स्व धूपेन्द्र प्रसाद की संघर्षशील जीवन की चर्चा की और उनपर समर्पित चार पंक्तियां -युग युगांतर तक रहेगी तेरी साधना का स्मरण , माता पिता आपके इंसान नहीं भगवान थे—-और बज्जिका रचना-आवऽ मिल के दीया जलावऽ सुनाई जिसपर खूब वाहवाही हुई।अंत में सुशांत शेखर ने सभी साहित्यसेवियों के प्रति आभार व्यक्त किया।
