(हरिप्रसाद शर्मा) अजमेर: सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 814वें सालाना उर्स के अवसर पर शनिवार रात अजमेर स्थित दरगाह शरीफ में परंपरागत सालाना संदल की रस्म पूरे अकीदत और एहतराम के साथ अदा की गई। उर्स की शुरुआत से एक दिन पूर्व निभाई जाने वाली इस विशेष रस्म में दरगाह के खादिम समुदाय के साथ देशभर से पहुंचे हजारों जायरीन शामिल हुए।
मजार शरीफ को संदल से किया गया सुगंधित
सालाना संदल की रस्म को ख्वाजा साहब की दरगाह की सबसे अहम और पुरानी परंपराओं में शुमार किया जाता है। इस अवसर पर मजार शरीफ को विशेष रूप से तैयार किए गए संदल से सुगंधित किया गया। खादिमों ने विधि-विधान के साथ रस्म अदा की, जिसके दौरान जायरीन ने दुआएं मांगीं और मन्नतें कीं। देर रात तक दरगाह परिसर में रौनक बनी रही और श्रद्धालु इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने।
संदल से जुड़ी आस्था और मान्यताएं
दरगाह के खादिम सैय्यद कुतबुद्दीन सखी ने बताया कि मजार शरीफ पर चढ़ाया जाने वाला यह संदल चमत्कारी माना जाता है। मान्यता है कि इसके उपयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियों से राहत मिलती है। उन्होंने कहा कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी लोगों की गहरी आस्था का केंद्र बनी हुई है।
एक वर्ष तक मजार पर रहता है संदल
खादिमों के अनुसार, यह संदल पूरे एक वर्ष तक हजरत ख्वाजा गरीब नवाज की मजार शरीफ पर रखा जाता है। इसके बाद इसे उतारकर संदल के घोल से पवित्र जल तैयार किया जाता है, जिसे जायरीन उपयोग में लेते हैं। मान्यता है कि यह पवित्र जल नजर दोष, जादू-टोना और गंभीर बीमारियों में भी लाभ पहुंचाता है।
देश-विदेश से उमड़ती है जायरीन की भीड़
ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। उर्स के मौके पर देश-विदेश से लाखों जायरीन अजमेर पहुंचते हैं और दरगाह में मत्था टेककर अमन, चैन और खुशहाली की दुआ मांगते हैं। सालाना संदल की रस्म के दौरान आस्था का यह स्वरूप और भी अधिक देखने को मिलता है।
भाईचारे और इंसानियत का संदेश
दरगाह के खादिम साल में केवल एक बार संदल को मजार शरीफ से उतारते हैं और बाद में इसे जायरीन में वितरित किया जाता है। सद्भाव, भाईचारे और इंसानियत का संदेश देने वाला ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स एक बार फिर अजमेर को रूहानियत और आपसी सौहार्द के रंग में रंगता नजर आया।
