सारण: बांस पर्यावरण के लिए सर्वोत्तम. इसमें होती है CO2 के अवशोषण की अद्भुत क्षमता, टिशू कल्चर तकनीक के माध्यम से होगा बड़े पैमाने पर बांस का उत्पादन……

Rakesh Gupta
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सारण वन प्रमंडल ने कृषि वानिकी योजना के तहत टिशू कल्चर बांस वितरित करने की बनायी योजना.

बिहार न्यूज़ लाइव सारण डेस्क:  छपरा नगर. बांस पर्यावरण के लिए सर्वोत्तम होता है, इसमें कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण की अद्भुत क्षमता होती है. टिशू कल्चर तकनीक के माध्यम से बड़े पैमाने पर बांस का उत्पादन किया जायेगा.
इस आशय की जानकारी देते हुए वन प्रमंडल पदाधिकारी रामसुंदर एम. के ने बताया कि मुख्यमंत्री कृषि वानिकी योजना का सारण जिला में तेजी से कार्यान्वयन किया जा रहा है. पहली बार सारण वन विभाग किसानों की मांग के आधार पर कृषि वानिकी योजना के तहत टिशू कल्चर बांस के पौधे वितरित करने की योजना पर बना रहा है.

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वन विभाग द्वारा भागलपुर और अररिया जिलों में पहले से ही टिश्यू कल्चर बांस के पौधे तैयार किये जा रहे हैं. उन्होंने आगे बताया कि कृषि वाणिकी योजना के तहत सारण वन प्रमंडल द्वारा किसानों को बंबूसा बालकोआ, बंबूसा नूतन और बंबूसा टुल्डा प्रजाति के उच्च गुणवत्ता वाले बांस वितरित किया जायेगा, इसका लाभ उठाने के लिए किसान वन विभाग के नर्सरी या प्रमंडलीय कार्यालय, छपरा से संपर्क कर आवेदन दे सकते हैं. श्री एम के ने बताया कि किसान के लिए बांस हरा सोना है, इसका रखरखाव आसान है क्योंकि इसमें अधिक पानी, कीटनाशक या उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है, साथ ही यह किसी भी अन्य पौधे की तुलना में अधिक कार्बन-डाई- ऑक्साइड को अवशोषित करता है तथा प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है.

उन्होंने विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि इस वर्ष वन विभाग ने कृषि वानिकी योजना में टिश्यू कल्चर बांस को भी शामिल किया है. सारण जिले में दिघवारा, सोनपुर, मांझी के इलाकों में किसान आमतौर पर स्थानीय जरूरतों के लिए बांस की फसल उगाते हैं. टिश्यू कल्चर बांस की उपलब्धता से उन्हें अतिरिक्त लाभ मिलेगा. इससे किसानों की आय में वृद्धि भी होगी.

उन्होंने आगे बताया कि इसके अलावा सारण प्रमंडल इस योजना के तहत पोपलर के पौधों का भी वितरण कर रहा है. पोपलर सारण-सीवान – गोपालगंज क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कृषि वानिकी फसल ह. पॉप्लर की लकड़ी का इस्तेमाल छाल प्लाइवुड, बोर्ड और माचिस की तीलियां बनाने में प्रयोग किया जाता हैं, खेल से संबंधित सभी वस्तुएं और पैन्सिल बनाने में भी इस लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. भारत में यह पौधा 5-7 साल में 85 फीट या उससे भी ऊपर की ऊंचाई तक बढ़ सकता है.

 

 

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