“दिव्यम अवार्ड्स “से चर्चा में आए डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान के सोशल मीडिया पोस्ट से मची खलबली , दिव्यांग क्रिकेट को बदनाम करनेवाले लोगों पर साधा निशाना

Rakesh Gupta
डीसीसीआई महासचिव रविकांत चौहान
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चंद स्वार्थी लोगो के वजह से दिव्यांग क्रिकेट हो रहा बदनाम :रविकांत चौहान


दिव्यांग क्रिकेट के “पितामह” समझे जाने वाले लोग अपने राह से भटक गए है। दिव्यांग क्रिकेट को पैसे की उगाही समझने वाले लोगों के साथ हाथ मिला चुके है : रविकांत चौहान

जयपुर: जयपुर में बीसीसीआई के ‘नमन अवार्ड्स’ की तर्ज पर, भारतीय दिव्यांग क्रिकेट परिषद (डीसीसीआई) ने अपना पहला ‘दिव्यम अवार्ड्स’ समारोह (शारिरिक रुप से दिव्यांग) आयोजित किया गया था ।जिसकी गूंज पूरे क्रिकेट जगत में छायी रही । दिव्यम पुरस्कार वितरण समारोह का शानदार आयोजन से डीसीसीआई के महासचिव रविकांत चौहान को पुरे क्रिकेट जगत में चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है । लेकिन उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयान करते हुए बताया कि कुछ चंद स्वार्थी लोगो के वजह से दिव्यांग क्रिकेट बदनाम हो रहा है।

भारत में दिव्यांग क्रिकेट (शारिरिक रुप से दिव्यांग) को चलते हुए 40 साल से भी ज़्यादा समय हो गया है। यह केवल खेल का सफ़र नहीं, बल्कि एक लंबी और कठिन संघर्ष की कहानी है। इन वर्षों में खिलाड़ियों ने अपने सपनों और मेहनत के बल पर यह खेल आगे बढ़ाया, लेकिन उन्हें बेइज़्ज़ती, दबाव और राजनीति का शिकार होना पड़ा है।

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कई लोग, जो समाज की मुख्य धारा से जुड़े हुए थे, दिव्यांग क्रिकेट (शारिरिक रुप से दिव्यांग) को केवल अपने फायदे का माध्यम बनाते रहे। उन्होंने खिलाड़ियों को सिर्फ़ “दिव्यांग” बना कर रखा, और खुद जो चाहा वो किया। जब कोई दिव्यांग व्यक्ति आगे बढ़ने की सोचता, तो उसे किसी न किसी तरह से दबा दिया जाता, बदनाम किया जाता, झूठी बातें फैलाई जातीं, ताकि वह अपने हक़ तक न पहुँच सके।कहानी लंबी है, और इसमें बहुत कुछ है जो धीरे-धीरे सामने आएगा,लेकिन यह संघर्ष हम और हमारे साथी लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।

आज दिव्यांग क्रिकेट का स्वरूप बदल चुका है। अब डर बदनामियों और धमकियों से नहीं लगता, क्योंकि सच सामने आ रहा है। यह खेल बीसीसीआई तक पहुँच चुका है।

संघर्ष की नई हकीकत

  1. पितामह मानसिकता

कुछ सामान्य लोग अपने आप को दिव्यांग क्रिकेट का “पितामह” समझने वाले लोग अपने राह से भटक गए है। दिव्यांग क्रिकेट को पैसा की उगाही समझने वाले लोगों के साथ हाथ मिला चुके है। वे कभी भी खिलाड़ियों को आगे बढ़ने नहीं देना चाहते, क्योंकि उन्हें लगता है कि दिव्यांग क्रिकेट का निबंधन उनके नाम है।जब दिव्यांग क्रिकेट अपने सबसे अच्छे समय से गुजर रहा है, तो ऐसे लोग परेशान हैं। उन्हें डर लगने लगा कि अब दिव्यांग लोग अपने दम पर आगे बढ़ रहे हैं, उनकी मेहनत से खिलाड़ियों के घर में चार-पहिया वाहन और जीवन में सुधार हो रहा है।

  1. व्यापार और स्वार्थ

कुछ लोग, जिनका व्यवसाय या घर इस क्रिकेट पर निर्भर था, अब खिलाड़ियों की सफलता से परेशान हैं।

(A) ट्रैवल एजेंसी के रुप में काम करना- जो खिलाड़ियों से पैसे लेकर ऐसे देशों में भेजती थी। जहां लोग क्रिकेट नहीं खेलते थे वहां सिर्फ मौज और मस्ती के लिए जाना और वह उनकी आमदनी का जरिया थी, अब बंद हो गई।

(B) अब ये लोग हमारे खिलाड़ियों को फँसाने और हमारे खिलाफ गलत बातें फैलाने लगे हैं।

(C) लुभावने लालच देकर टूर्नामेंट करवा कर खिलाड़ियों को यह बताने की कोशिश की जाती है कि “हम आपके लिए सोच रहे हैं”, लेकिन असलियत में उनका केवल व्यक्तिगत स्वार्थ और लालच होता है।

  1. धमकियाँ और दबाव

जब कोई दिव्यांग आगे बढ़ने की कोशिश करता है, तो उसे धमकाया जाता, दबाया जाता, झूठी FIR करवाई जाती, प्रेस वार्ता करके बदनाम किया जाता। लेकिन आपको पता है कि ऐसे लोग कभी अपने मक़सद में सफल नहीं हो सकते। उनका ध्यान केवल अपने घर और स्वार्थ तक सीमित है, न कि खिलाड़ियों की तरक्की और सम्मान तक। वे दिखाना चाहते हैं कि वे खिलाड़ियों के लिए सोचते हैं, लेकिन असल में अब तक उनकी भागीदारी केवल स्वार्थ और फायदे के लिए थी। याद रखना सत्य परेशान हो सकता है ,पराजित नहीं ।

  1. भीतर की कमजोरी

दुर्भाग्य से हमारे बीच कुछ ऐसे दिव्यांग खिलाड़ी और लोग भी हैं, जो छोटे लालच के कारण अपने ही साथियों को धोखा देते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहना बेहद ज़रूरी है।

आह्वान और संदेश

हम सभी खिलाड़ियों से अनुरोध करते हैं:
•जो धमकाए गए हैं,
•जिनके साथ गलत व्यवहार हुआ है,
•जिनसे पैसे का गलत इस्तेमाल किया गया है,

वे अब सामने आएँ और अपनी आवाज़ उठाएँ। केवल मिलकर ही हम इस लड़ाई को जीत सकते हैं।

यह संघर्ष सिर्फ़ हमारे लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है। दिव्यांग क्रिकेट को उसका हक़ और सम्मान दिलाना हमारी जिम्मेदारी है।आप सभी इस समय सफलता की दहलीज पर है और ऐसे लोग जिन्होंने आपके नाम का भरपुर फायदा उठाया और आपसे खेलने के नाम पर रुपयों की वसुली की और इंडिया का टैग लगा दिया ऐसे लोग अपने घर की संस्था चला रहे है और अब वो ढूँढ रहे है कैसे चलते हुए काम को रोका जाए क्योंकि अब खिलाड़ियो को बेवकुफ बनाने का समय चला गया। आज दिव्यांग क्रिकेट को हमने कहाँ से कहाँ तक पहुँचाया, इसका परिणाम सामने है। आज हमारे क्रिकेट का स्टैण्डर्ड बहुत बढ़ गया है, और अब पुरा समाज हमारे क्रिकेट की बातें करता हैं।

बीसीसीआई हमारे क्रिकेट को बहुत कुछ देना चाहती है, लेकिन कुछ समाज के ऐसे लोग हैं जो इसे नहीं चाहते, क्योंकि वे केवल अपनी रोटी सेंकने और अपने आप को आगे बढ़ाने में लगे हैं। हम सब मिलकर अपनी सफलता में भागेदारी निभाएँगे यह मन में विचार लेकर चले। देश के माननीय प्रधानमंत्री जी व भारत सरकार से आह्वान करता हू कि ऐसे लोगो के विरुद्ध कार्यवाही की जाए जो दिव्यांगजनो को उनके क्षेत्र में बढने से रोका जा रहा है उनके नाम पर अपना घर चला रहे है और सभी दिव्यांग खिलाड़ियों को गुमराह कर रहे है।

इस दौरान देश के विभिन्न राज्यों कई प्रतिनिधि एवं दिव्यांग खिलाड़ियों ने रवि चौहान के पोस्ट का सोशल मीडिया पर धीरज हर्डे,मधुसुधन नायक ,ज्योतिराम घुले ,संजय भैरव ,अनिल चोकर ,अभिषेक मंडल ,सुदामा ,अजय,राज भड़ाना ,नवीन रावत ,दीपक भदौना, कुणाल शर्मा ,रंजीत कुमार ,पंकज कुमार ,अखिलेश कुमार राय ,राहुल सिंह ,संजय भैरव ,धर्मवीर पाल,विक्की वर्मा , सहित गुरमीत धीमन ( हिमाचल प्रदेश ),गुरनाम सिंह (गुजरात ) अभिषेक सिंह ( छत्तीसगड ) संजय तोमर ( मध्य प्रदेश ),कल्पेश गायकर ( मुंबई ),आफताब आलम ( झारखंड ) ने पुरजोर तरीके का समर्थन किया।

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