हाजीपुर:उदीयमान सूर्य देव को अर्घ्य देकर संपन्न हुआ छठ पूजा

Rakesh Gupta
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डॉ० संजय(हाजीपुर)-:जी हां,लोक आस्था और विश्वास का महापर्व छठ उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर शांति और सद्भाव के साथ संपन्न हुआ। छठव्रतियां उदीयमान सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद अपने परिजन को माथे पर तिलक और बद्दी पहनाई तथा महा प्रसाद वितरित कीं। सूर्योपासना व्रत की कथा सुनी और मां भगवती की पूजा-अर्चना के लिए नजदीक के मंदिरों में जाती दिखाई पड़ीं।अंकुरी,ठेकुआ से पारण की। सदियों की परंपरा और महात्म्य का अद्भुत उदाहरण माना जाता है छठ। महिला के साथ-साथ प्रायः पुरुष भी इस कठिन व्रत को करते दिखाई पड़ते हैं। वास्तव में प्रकृति का साहचर्य, शारीरिक साधना, सामाजिक समरसता, परोपकार, और समाजवादी दृष्टिकोण के ताना-बाना को सुनने वाला यह व्रत अद्वतीय कहें तो अतिशयोक्ति नहीं है।

वैशाली जिला में शांति, सद्भाव के साथ यह महापर्व मनाया गया। स्थानीय पुल घाट, सीढ़ी घाट , कौशल्या घाट, कौन हारा घाट,सोनचिरैया पोखर सहित आपने-अपने घरों में आंगन घाट,दरवाजा घाट,छत घाट पर भी छठव्रतियां अस्ताचलगामी सूर्य तथा उदीयमान सूर्य को भक्ति-भावना के साथ अर्घ्य देती नजर आईं। प्रशासनिक स्तर पर सभी प्रमुख घाटों पर विशेष व्यवस्था की गई थी ताकि किसी छठवर्ती को कोई परेशानी न होने पाए।विभिन्न घाटों और स्वयं के द्वारा बनाये गये आंगन , दरवाजा तथा छत घाटों पर सुंदरतम सजावट देखने को मिली। इस क्रम में कर्णप्रिय छठ गीत सुनाई पड़ी।

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सच पूछा जाए तो भक्तिमय वातावरण में डूबा रहा नहाय खाय से लेकर उदीयमान सूर्य देव को अर्घ्य देने तक। इस महापर्व का महात्म्य इसलिए भी अधिक है कि बांस से बने अथवा पीतल के सूप में जो भी प्रसाद स्वरूप भगवान भास्कर को निवेदित किया जाता है जैसे- ठेकुआ,केला,नारियल, पान,कसेली, विभिन्न ऋतुफल,अंकुरी,अक्षत, मिष्टान इत्यादि ,वे सब-के-सब सगुण शक्ति, निर्गुण शक्ति तथा रसात्मिका शक्ति के प्रतीक हैं जिन्हें हम ग्रहण करते हैं।

बाजारों में नये परिधानों सहित छठ से संबंधित विभिन्न वस्तुओं की खरीददारी भी वृहत पैमाने पर होती है।दान -पुण्य का भी क्रम जारी रहता है। सहयोगात्मक प्रवृत्ति भी उत्कर्ष पर होता है।एक विशेष बात और कि अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए निर्धन या संपन्न व्यक्ति ही क्यों न हों, सूप फैलाकर पांच या ग्यारह घर जाकर भीख भी मांगते हैं और मिलनेवाले उस पैसे से छठ सामग्री लाकर सूप में सजाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते दिखाई पड़ते हैं ।साथ ही कुछ व्रतधारी भूमि पर लेटकर दण्ड प्रणाम करते हुए अपने -अपने छठ घाट पर जाते दिखाई पड़ते हैं। इसीलिए इस व्रत का महात्म्य के बारे में जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

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