**प्रशासन की लापरवाही और प्रभावशाली लोगों का दबाव *जांच में अतिक्रमण की पुष्टि होने के बावजूद नोटिस संख्या 69/2025 के तहत नोटिस जारी
(हरिप्रसाद शर्मा) अजमेर/ अजमेर के लोहागल क्षेत्र में स्थित अजमेर विकास प्राधिकरण की करोड़ों रुपये मूल्य की सरकारी भूमि पर भू माफियाओं ने कब्जा कर व्यावसायिक गतिविधियां शुरू कर दी हैं। प्रशासन की लापरवाही और प्रभावशाली लोगों के दबाव में इस गंभीर मामले में अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। यह मामला न केवल सरकारी संपत्ति के दुरुपयोग का है, बल्कि प्रशासनिक निष्क्रियता और रसूखदारों की मिलीभगत का भी जीवंत उदाहरण बनता जा रहा है।
सेवानिवृत्त नायब तहसीलदार मुरारीलाल शर्मा ने प्रेसवार्ता कर जानकारी दी कि ग्राम लोहागल, खसरा नंबर 682 और 607 (पुराना खसरा नंबर 1514 और 1515), जो कि लोहागल जनाना अस्पताल मार्ग पर स्थित है और वर्तमान जमाबंदी में खाता संख्या 580 यूआईटी (अब एडीए) के नाम दर्ज है पर कबीर गार्डन नामक शादी समारोह स्थल का संचालन हो रहा है।इस भूमि का बाजार मूल्य वर्तमान में लगभग तीन करोड़ रुपये आंका गया है। यहां पक्की चारदीवारी, भवन, बिजली कनेक्शन और बोरिंग जैसी सुविधाओं के साथ एक पूर्ण व्यावसायिक परिसर बना हुआ है। वर्ष 2012 में एडीए द्वारा इस भूमि को श्री कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी स्मृति संस्थान को सार्वजनिक उपयोग हेतु आवंटित किया गया था, जिसमें केवल 800 वर्गगज क्षेत्र में निर्माण की स्वीकृति दी गई थी। मगर मौके पर 1377.77 वर्गगज में अवैध निर्माण पाया गया है, जो स्वीकृत क्षेत्रफल से 500 वर्गगज अधिक है।
यह एडीए एक्ट 2013 के स्पष्ट उल्लंघन की श्रेणी में आता है। मुरारीलाल शर्मा ने बताया कि इस प्रकरण की शिकायतें 26 दिसंबर 2024 और 28 अप्रैल 2025 को राज्य सरकार के उच्चाधिकारियों को भेजी गईं। जांच में अतिक्रमण की पुष्टि होने के बावजूद नोटिस संख्या 69/2025 के तहत नोटिस जारी होने के छह महीने बाद भी एडीए ने कोई कार्रवाई नहीं की। 11 जून 2025 को एक वी.सी. कार्यक्रम में स्वयं मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार ने प्रभावी कार्रवाई के निर्देश दिए परंतु अब तक कोई निर्णयात्मक कदम नहीं उठाया गया है।इस मामले के विरोध में सेवानिवृत्त अधिकारी ने एडीए पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने बताया कि एक अन्य प्रकरण संख्या 13/2024 में एक गरीब विधवा महिला शालू शर्मा का तीन मंजिला मकान न्यायालय के स्थगन आदेश के बावजूद केवल डेढ़ माह में तोड़ दिया गया, जबकि करोड़ों की सरकारी जमीन पर बैठे रसूखदारों पर कार्रवाई अभी तक लंबित है।
पीड़ित शालू शर्मा के अनुसार इस कार्रवाई से उन्हें लगभग 40 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 और लोक सूचना गारंटी अधिनियम 2013 के तहत आवेदन देने और शुल्क जमा करने के बावजूद एडीए प्रशासन ने पत्रावली की प्रतियां उपलब्ध नहीं करवाई हैं। यह पारदर्शिता और जवाबदेही की प्रक्रिया का गंभीर उल्लंघन है। अब सवाल उठता है कि क्या एडीए एक्ट 2013 केवल कमजोर और आम नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई का माध्यम बन गया है? जब उच्च अधिकारी स्वयं कार्रवाई के आदेश दे चुके हैं, तब भी यदि प्रशासन मूकदर्शक बना है तो यह प्रशासनिक निष्क्रियता नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की गहराई को दर्शाने वाला गंभीर संकेत है। यदि अब भी सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह न केवल कानून और न्याय का मजाक होगा, बल्कि भविष्य में भू माफियाओं को और अधिक बढ़ावा देने वाला खतरनाक उदाहरण भी बन सकता है।