भागलपुर:जीते जी नहीं मिल पाया बालमन के अद्भुत चितेरा राधेलाल ‘नवचक्र’ को साहित्य का भी कोई शिखर सम्मान : पारस कुंज
शब्दयात्रा भागलपुर ने किया भावांजलि का आयोजन ।
भागलपुर,बिहार न्यूज लाईव।रविवार के पूर्वाह्न शब्दयात्रा भागलपुर द्वारा ऑनलाइन भावांजलि का आयोजन कर देश के लब्ध प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार श्री राधेलाल ‘नवचक्र’ को श्रद्धांजलि अर्पित की ।अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार कवि लघुकथाकार पारस कुंज ने कहा – ‘दिवंगत श्री राधेलाल ‘नवचक्र’ से मेरा सम्पर्क नब्बे के दशक से रहा है । वे भारत के सर्वाधिक प्रकाशित होने वाले बाल-मनोविज्ञान के सूक्ष्म अध्येता के साथ बालमन के अद्भुत चितेरा थे, उनकी गिनती देश के नामचीन बाल साहित्यकारों में होती रही हैं ।
बावजूद इसके नहीं मिल पाया उन्हें साहित्य का कोई भी शिखर सम्मान । ऑनलाइन भावांजलि कार्यक्रम में, प्रमुखता से राउरकेला, बैंगलुरू, जेएनयू, पटना और भागलपुर के सम्मानित विद्वान साहित्यकारों ने हिस्सा लिया तथा ‘नवचक्र’ जी के प्रति अपना भावोद्गार प्रकट किया ।राउरकेला उड़ीसा से बतौर मुख्यअतिथि लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार कवि डॉ मधुसूदन साहा ने कहा – ‘राधेलाल ‘नवचक्र’ की बाल कविताओं को उनकी सुन्दर और सुस्पष्ट लिखावट में मैं अपने यौवन काल में बराबर पढ़ा करता था । उनकी कविताएँ और लघुकथाएँ बड़ी प्रेरक एवं रोचक हुआ करती थीं !’ बैंगलुरू से ‘अभ्युदय’ अंतरराष्ट्रीय संस्था की संस्थापिका अध्यक्ष डॉ इन्दु झुनझुनवाला ने कहा – ‘अभी महीना ही तो हुआ था उनका बेंगलूरू की धरती पर कदम रखे और हमारी संस्था में सम्मिलित हुए । भारत भूमि कला और साहित्य की दृष्टि से कितनी उर्वरा है, यह जानना हो तो आदरणीय राधेलाल ‘नवचक्र’ की प्रतिभा को पढ़े, जाने और समझे !’जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक डॉ रणजीत साहा कहते हैं – ‘तब हमलोग संघर्ष कर रहे थे ।
नया-नया लिखना शुरू किया था । भगवान पुस्तकालय की साहित्यिक गोष्ठियों में ‘नवचक्र’ जी आते थे । वहीं उनसे भेंट होती रहती थी । हमलोग जो फुटकर पत्रिकाएं निकालते थे, उसमें वो भी छपते थे । पराग, चंपक, चुन्नू मुन्नू आदि पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं देखता रहता था । उन्होंने ने जितना लिखा है उसका संग्रह निकलना चाहिए !’प्रतिष्ठित लेखक पत्रकार विकास पाण्डेय कहते हैं – ‘नवचक्र जी से मेरी पहचान पहले-पहल बाल पत्रिका पराग में उनकी एक बाल कहानी पढ़कर हुई थी । तब मैं नहीं जानता था कि वे भागलपुर के रहनेवाले हैं । उनकी रोचक कहानियां अक्सर डॉ. हरिकृष्णा देवसरे, कन्हैया लाल नंदन आदि बहुचर्चित बाल लेखकों के साथ पराग बाल पत्रिका में छपती रहती थीं । बाद में इनकी रचनाएं बाल भारती, नंदन, राजा भैया, लोटपोट, बालहंस, चम्पक, विश्वमित्र, दैनिक हिंदुस्तान सरीखी बहु लोकप्रिय पत्र पत्रिकाओं में भी दिखने लगी । इन्होंने अंकों पर आधारित गणित के रोचक सूझ-बूझ से सम्बंधित भी कई कहानियां लीखीं जो काफ़ी पसंद की गईं । राधेलाल नवचक्र ने एक राष्ट्रीय बाल कथाकार के रूप में जाने-अनजाने भागलपुर और बिहार का सर ऊँचा किया ।
यह अलग बात है कि उन्हें जीते जी उचित सम्मान नहीं मिल पाया !’ पटना से हिन्दी और भोजपुरी के बहुचर्चित साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी कहते हैं – ‘राधेलाल ‘नवचक्र’ जी बच्चों और बड़ों दोनों में समान रूप से लोकप्रिय थे । बाल मनोविज्ञान के तो कुशल पारखी थे वह । पिछली सदी के उत्तरार्द्ध में, जब बच्चों की पत्रिकाएं बहुतायत में प्रकाशित होती थीं । ‘नवचक्र’ जी की विभिन्न विधाओं की रचनाएं उन सबमें प्रमुखता के साथ प्रकाशित होती थीं और देश के महत्वपूर्ण बाल-रचनाकारों में उनकी गणना होती थी । प्रौढ़ साहित्य में भी उनका सृजन गहरी संवेदना जगाता था !’
हास्य व्यंग की सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘उल्लू’ के सम्पादक कुमार भागलपुरी कहते हैं – ‘आकाशवाणी भागलपुर में आकस्मिक कलाकार के रूप में कार्य कर रहा था । सुन्दर और आकर्षक अक्षरों में लिखे इनके आलेख को देख प्रभावित हुआ । तभी इनसे मिलने की इच्छा जगी और रिकॉर्डिंग के समय इनसे मिलने का अवसर मिला । स्थानीय होने के कारण हमेशा मिलते रहे । सादा जीवन मितभाषी थे भागलपुर के ‘नवचक्र’ !’ और अंत में, उनके बगलगीर ठाकुर अमरेन्द्र दत्तात्रेय कहते हैं – ‘लघुकथाओं के सृजन में जादूगरी थी उनकी ।
गणितीय सूत्रों को बाल-मन के अनुरूप ढालते हुए ऐसी-ऐसी रचनाएं उन्होंने की, कि पढ़कर दिल बाग-बाग हो जाता था । उस समय के पराग, नंदन, बालहंस से लेकर हिंदुस्तान भर की सारी बाल पत्रिकाएं उनकी कहानियों को लेकर पलक पांवडे बिछाए रहती थीं !’ बताते चलें, देश भर की दस-बीस-पचास नहीं बल्कि हजारों पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से ससम्मान प्रकाशित होते रहने वाले श्री राधेलाल ‘नवचक्र’ जी का ५ अक्टूबर २०२४ को, बैंगलुरू में अकस्मात निधन हो गया था रविवार ६ अक्टूबर २४ की देर रात्रि स्थानीय बरारी श्मशान-घाट पर उनकी अंत्येष्टि सम्पन्न हुई । पुत्र चन्दन कुमार ने उन्हें मुखाग्नि प्रदान किया ।
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