बिहार न्यूज़ लाइव /सारण डेस्क: • फाइलेरिया मरीजों को भी झेलनी पड़ती सामाजिक बहिष्कार का दंश
• सार्वजनिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्या है हाथीपांव
• फाइलेरिया रोगियों को आजीविका व काम करने की क्षमता भी होती है प्रभावित
छपरा। फाइलेरिया एक ऐसी चुनौती है, जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर वैश्विक कल्याण में बाधा डालती है। इस चुनौती से निबटने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा। सामूहिक प्रयासों का ही नतीजा है कि फाइलेरिया और कालाजार के मरीजों की संख्या में निरंतर कमी दर्ज की जा रही है। किसी भी बीमारी को हराने का एकमात्र तरीका सामुदायिक जुड़ाव और जन सहभागिता है। यह तभी संभव है, जब इस बीमारी के बारे में हर स्तर पर सही और पूरी जानकारी पहुंचे। जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह से हुई बातचीत में जानिए फाइलेरिया बिमारी के बारे में…
सवाल: फ़ाइलेरिया रोग क्या है?
जवाब: फाइलेरिया या हाथीपांव रोग, सार्वजनिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्या है। यह रोग मच्छर के काटने से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया, दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। पूरी दुनिया के फ़ाइलेरिया के मरीजों में लगभग 45 प्रतिशत फ़ाइलेरिया रोगी भारत में हैं।
सवाल: यह रोग हो जाने पर पीड़ित व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
जवाब: वैसे तो यह रोग किसी भी आयु वर्ग में हो सकता है मगर बच्चों को इससे अधिक ख़तरा है। यह संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इससे बचाव न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे; हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों की सूजन) व काइलुरिया (दूधिया सफेद पेशाब) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक बहिष्कार का बोझ सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
सवाल: राज्य सरकार इसके उन्मूलन के लिए क्या प्रयास कर रही है ?
जवाब: बिहार सरकार, लिम्फेटिक फाइलेरिया (हाथीपांव) के उन्मूलन हेतु पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस रोग से बचाव के लिए राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा साल में एक बार मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम चलाये जाते हैं। इस बार पुरे देश में 10 फरवरी को एमडीए का मेगा लंच होगा।
सवाल: फ़ाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के सफल किर्यन्वयन में किस तरह की चुनौतियाँ हैं ?
जवाब: देखिये इस कार्यक्रम में सबसे बड़ी चुनौती है, लाभार्थियों का इस रोग की गंभीरता को समझते हुए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के दौरान फ़ाइलेरिया रोधी दवाओं का प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों के सामने सेवन करना। हम सब प्रशासनिक स्तर और सामजिक स्तर पर सकारात्मक प्रयास कर रहें हैं कि कार्यक्रम के दौरान 100% लाभार्थियों द्वारा फ़ाइलेरिया रोधी दवाओं का सेवन किया जाना सुनिश्चित हों।
सवाल: सर, फ़ाइलेरिया के बारे में तो काफी बातचीत हो गयी, लेकिन कालाजार रोग क्या है, लोगों को इससे सुरक्षित रखने के लिए क्या उपाय किये जा रहें हैं ?
जवाब: देखिये, कालाजार का संक्रमण बालू मक्खी यानि सैंडफ्लाई द्वारा होता है। यह बालू मक्खी कालाजार रोग के परजीवी लीशमेनिया डोनोवानी को एक रोगी व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति तक फैलाती है। यदि किसी व्यक्ति को दो सप्ताह से ज्यादा से बुखार हो, उसकी तिल्ली और जिगर बढ़ गया हो और उपचार से ठीक न हो, तो उसे कालाजार हो सकता है। कालाजार को फैलाने वाली बालू मक्खी के खत्म करने के लिए सरकार द्वारा कीटनाशी दवा का छिड़काव (आ ई.आर.एस.) करवाया जाता है। सरकार कालाजार रोग के उन्मूलन के लिए भी प्रतिबद्ध है ।
सवाल: पाठकों को आपकी ओर से कोई सन्देश ?
जवाब: फ़ाइलेरिया उन्मूलन के तहत वर्ष में एक बार चरणबद्ध तरीके से मास ड्रुग एडमिनिस्ट्रेशनका कार्यक्रम चलाया जा रहा है। मैं यह संदेश देना चाहता हूँ कि ये फ़ाइलेरिया रोधी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं। रक्तचाप, शुगर, अर्थरायीटिस या अन्य सामान्य रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को भी ये दवाएं खानी हैं। सामान्य लोगों को इन दवाओं के खाने से किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। और अगर किसी को दवा खाने के बाद उल्टी, चक्कर, खुजली या जी मिचलाने जैसे लक्षण होते हैं तो यह इस बात का प्रतीक हैं कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के कीटाणु मौजूद हैं, जोकि दवा खाने के बाद कीटाणुओं के मरने के कारण उत्पन्न होते हैं। इसके साथ ही कालाजार रोग के उन्मूलन के लिए जिस समय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम कीटनाशी दवा का छिड़काव करने आये, लोग उन्हें पूरा सहयोग करें।
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