बिहार न्यूज लाइव पटना डेस्क: चैत्रादि गणना अंतर्गत भाद्रपद छठा मास है । इस मास की पूर्णिमा के आसपास पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र आता है । इसीलिए इस मास को ‘भाद्रपद’ के नाम से जानते हैं । हरितालिका व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को किया जाता है । मां पार्वती इस व्रत की प्रधान देवता हैं । इस व्रत में उमा-महेश्वर की मूर्ति की स्थापना कर यथाविधि उनका पू्जन किया जाता है । कुछ प्रदेशों में देवता पूजन के साथ हवन भी किया जाता है, जिस में तिल एवं घी इत्यादि की आहुति देते हैं । इसी दिन ‘हरिकाली’, ‘हस्तगौरी’ एवं ‘कोटेश्वरी’ इत्यादि मां पार्वती के रूपों के व्रत भी होते हैं । विशेषकर स्त्रियां ही ये व्रत करती हैं ।
*हरितालिका व्रत का उद्देश्य एवं लाभ*
मां पार्वती ने शिवजी को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया था । इसीलिए अनुरूप वर की प्राप्ति के लिए विवाहयोग्य कन्याएं यह व्रत करती हैं, तो सुुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए सुहागन स्त्रियां भी यह व्रत करती हैं ।
*हरितालिका व्रत करने से होनेवाले विविध लाभ*
१. व्रत के दिन उपवास रखने के कारण देह पवित्र होती है ।
२. ब्रह्मांड में विद्यमान शिवतत्त्व, व्रतकर्ती की ओर आकृष्ट होते हैं ।
३. उसकी शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने में सहायता होती है ।
४. कठोर व्रतपालन से मृत्यु के उपरांत व्रतकर्ती को शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है ।
इस प्रकार यह व्रत इस जन्म में सांसारिक विघ्न दूर करनेवाला एवं मृत्यु के उपरांत लाभ प्रदान करनेवाला है ।
*हरितालिका व्रतांतर्गत देवतापूजन का पूर्वायोजन एवं प्रत्यक्ष पूजन*
प्रातःकाल मंगलस्नान कर पार्वती एवं उसकी सखी की मूर्ति लाकर शिवलिंगसहित उनकी पूजा की जाती है । रात को जागरण करते हैं और अगले दिन उत्तरपूजा (समापन पूजा) कर शिवलिंग तथा मूर्ति विसर्जित करते हैं ।
सनातन हिंदु धर्म में प्रत्येक मास का विशेष महत्त्व है । साथही प्रत्येक मास में वातावरण में होनेवाले परिवर्तन का परिणाम सृष्टिपर भी होता है । इसका विचार कर शास्त्रों में प्रत्येक मास में कुछ विशेष धार्मिक कृत्य करने के विधान बताए गए हैं । इनमें कुछ त्यौहार, कुछ उत्सव, तो कुछ व्रत भी अंतर्भूत हैं । इनका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व एवं आधार समझने से इनके प्रति श्रद्धा बढने में सहायता होती है । प्रत्येक व्रत से संबंधित विशेष धार्मिक विधि, उपवास, संकल्प इत्यादि आचार होते हैं ।
देवतापूजन के स्थान को स्वच्छ कर रंगोली इत्यादि से सुशोभित करते हैं । चौकी के दोनों ओर दीपस्तंभ रखते हैं । पूजन की थाली में सजाई सामग्री पूजास्थान के समीप रखते हैं । हरितालि का पूजन के आरंभ में सर्वप्रथम स्त्रियां आचमन, प्राणायाम करने के उपरांत देशकाल कथन करती हैं । इसके पश्चात स्त्रियां संकल्प करती हैं…
मम उमामहेश्वरसायुज्यसिद्धये हरितालिकाव्रतम् अहं करिष्ये ।
अर्थात, श्री उमामहेश्वर से सायुज्य मुक्ति प्राप्त होने के लिए मैं यह हरितालि का व्रत करती हूं ।
अ. इस दिन स्त्रियां नदी के तटपर जाकर अथवा उपलब्धि के अनुसार बहते एवं शुद्ध पानी की बालू अर्थात महीन रेत घर ले आती हैं ।
आ. घर पर सजाए हुए देवतापूजन के स्थान पर इस रेत की शिवपिंडी बनाती हैं ।
इ. आजकल नगरों में एवं बडे शहरों में मां पार्वती एवं उनकी सखी की, शिवलिंग के साथ मूर्तियां उपलब्ध हैं ।
र्इ. मां पार्वती एवं सखी की मूर्तियों को घर में स्थापित कर, उनका पूजन किया जाता है ।
उ. हरितालिका पूजन में बिल्वपत्र, अपामार्ग अर्थात चिचडा, पारिजात, करवीर अर्थात कनेर, अशोक इत्यादि सोलह प्रकार की पत्रियां शिवपिंडी पर चढाई जाती हैं ।
ऊ. साथही स्त्रियां श्वेत पुष्प भी समर्पित करती हैं ।
ए. गुड-खोपरा अर्थात जैगरी एंड कोकोनट कर्नल, दूध एवं उपलब्धता के अनुसार फल नैवेद्यस्वरूप निवेदित करती हैं ।
एे. तदुपरांत देवी हरितालिका की आरती उतारती हैं ।
आे. पूजन के उपरांत स्त्रियां भावपूर्ण प्रार्थना करती हैं । इस दिन पूजा के समय प्रज्वलित किया गया दीप विसर्जन के समय तक प्रज्वलित रखते हैं, उसे बुझने नहीं देते । इससे पूजक के भाव के अनुसार उसे शिव तत्त्व एवं तेज तत्त्व के लाभ होते हैं ।
आै. सायं समय भी स्त्रियां देवी की आरती करती हैं तथा रात्रि के समय जागरण कर हरितालिका की कथाका श्रवण करती हैं ।
अं. हरितालिका के दिन पूजन करने के साथही स्त्रियां दिनभर उपवास रखती हैं । उपवास करने का अर्थ है, अन्न ग्रहण न कर नामस्मरण करते हुए देवता से सतत संधान साधना ।
क. स्त्रियां जीवन में आनेवाले विघ्न दूर करने के लिए शिवजी से प्रार्थना करती हैं । भावपूर्ण प्रार्थना के कारण स्त्री की ओर शिव-शक्ति के प्रवाह आकृष्ट होते हैं तथा उसके भावानुसार उसे लाभ मिलते हैं ।
*हरितालिका व्रत के दूसरे दिन की जानेवाली विधि*
स्त्रियां देवी की आरती करती हैं । देवी को दही एवं भात का नैवेद्य निवेदित करती हैं । तदुपरांत शिवपिंडी एवं सखी पार्वती की मूर्तियां जलस्रोत के पास ले जाती हैं एवं उन्हें बहते पानी में विसर्जित करती हैं । कुछ स्थानों पर हरितालिका के दूसरे दिन स्त्रियां यथाशक्ति एक, आठ अथवा सोलह दंपति को भोजन कराती हैं तथा उन्हें सौभाग्यद्रव्य भरे सुहागपिटारों का दान देती हैं । इसके उपरांत स्वयं भोजन कर व्रत का समापन करती हैं ।
*संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘श्री गणपति’ एवं ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’*
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