*महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की प्रेस विज्ञप्ती !*
दिनांक : 27.3.2023
*_‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’की ओर से आयर्लंड में ‘व्यसनाधीनता’ विषय पर शोधनिबंध प्रस्तुत!_*
*साधना द्वारा व्यसनाधीनता पर अल्प कालावधि में मात कर सकते हैं !* – शोध का निष्कर्ष
बिहार न्यूज़ लाइव/ *महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय (MAV) की ओर से श्री. शॉन क्लार्क ने बताया,* अध्यात्मिक शोध से दिखाई दिया है किसी व्यसन का 30 प्रतिशत कारण शारीरिक होता है, अर्थात मादक पदार्थाें पर निर्भर होता है, तो 30 प्रतिशत मानसिक तथा 40 प्रतिशत आध्यात्मिक होता है । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार उचित आध्यात्मिक साधना करने से व्यसन पर अल्प कालावधि में मात कर सकते हैं । व्यसन पर पूर्णरूप से मात करनेवाली आध्यात्मिक साधना एक अत्यंत शक्तिशाली साधन है’ ।
वे डब्लिन, आयर्लंड में ‘कॉन्फरन्स सिरीज’ द्वारा आयोजित 10 वें ‘वार्षिक कांग्रेस ऑन मेंटल हेल्थ’ (ए.सी.एम.एच. 2023) इस ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में बोल रहे थे । श्री. क्लार्क ने ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से ‘आध्यात्मिक कारणों से व्यसन कैसे लगता है तथा उसपर मात कैसे करें?’ इस विषय पर 102 वां शोधनिबंध परिषद में प्रस्तुत किया । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी इस शोधनिबंध के लेखक हैं तथा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध गुट के श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं ।
*श्री. क्लार्क ने बताया कि,* नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव अथवा अतृप्त पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्ट व्यक्ति के जीवन पर परिणाम करते हैं, तथा वह उस व्यक्ति की नाकारात्मक ऊर्जा का आवरण बढाने का कारण बनता है । तथापि, एकबार किसी व्यक्ति ने आध्यात्मिक साधना आरंभ की, तो उसकी नकारात्मक ऊर्जा का आवरण अल्प होने लगता है । श्री. क्लार्क ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के ‘युनिवर्सल ऑरा स्कॅनर’ (यु.ए.एस.) उपकरण द्वारा प्रयोग कर निकाला निष्कर्ष इस परिषद में प्रस्तुत किया ।
इस प्रयोग में फ्रान्स के एक संतो के तीन चित्रों का प्रभामंडल नापा गया । पहले, साधना आरंभ करने के पूर्व जब उन्हें सिगरेट का व्यसन था । दूसरा, आध्यात्मिक साधना आरंभ करने के उपरांत तथा तीसरा, आध्यात्मिक प्रगति कर संत बनने के उपरांत, इनके निष्कर्ष पर ऐसा ध्यान में आया कि, जिस पहले चित्र में उन्हें सिगरेट का व्यसन था उसमें नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल बडी मात्रा में था ।
दूरसे चित्र में, उनकी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल आधे से अल्प हुआ, तो संत होने के उपरांत निकाले उनके तीसरे चित्र में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल अधिक मात्रा में आया । इस समय महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में आध्यात्मिक साधना कर कुछ महीनों अथवा वर्षाें में व्यसन पर मात किए साधकों के परीक्षण के उदाहरण इस समय दिए गए ।
*इन सभी प्रयोगों का निष्कर्ष बताते हुए श्री. क्लार्क ने बताया कि,* यदि वैद्यकीय समुदाय को समाज का मानसिक आरोग्य सुधारना है तो, उन्होंने अपने शोध में आध्यात्मिक परिणाम सम्मिलित करना चाहिए एवं उनकी उपचार पद्धति में आध्यात्मिक साधना का उपयोग करना चाहिए; क्योंकि मानव के कल्याण के लिए अध्यात्म अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।
आपका नम्र,
*श्री. आशिष सावंत*
शोध विभाग, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय.
(संपर्क : 95615 74972)
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