बिहार न्यूज़ लाइव / सिवान डेस्क: हसनपुरा(सीवान) रमजान उल मुबारक माह का महीना चल रहा है। जहां रविवार को तीसरा रोजा रखा गया। वहीं इसके पहले क्षेत्र के सभी मस्जिदों की साफ सफाई व रंगरोगन के साथ रौनकें बढ़ गयी हैं। रमजान में इबादतों के साथ साथ रोजेदारों के चेहरे खिल उठे हैं। उनको इबादत करने का मौका अल्लाह ने नवाज दिया है। बता दें कि इस्लाम धर्म में इबादत का महीना यानी रमजान (रोजा) माह (सूरज निकलने के कुछ वक्त पहले से सूरज के अस्त होने तक कुछ भी नहीं खाना-पीना बहुत अहमियत रखता है। इस्लाम मज़हब में रोज़ा रूह का सुकून भी है। रोजा रखना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है। अरबी ज़बान का सौम या स्याम लफ़्ज ही दरअसल रोजा है इसका मतलब होगा ‘संयम’। यानी रोजा ‘संयम’ और ‘सब्र’ सिखाता है। पहला रोजा ईमान की पहल है। सुबह सेहरी करके दिनभर कुछ न खाना-पीना या सोते रहकर शाम को इफ़्तार करने का नाम रोजा नहीं है। यानी रोजा सिर्फ भूख-प्यास पर संयम या कंट्रोल का नाम नहीं है। बल्कि हर किस्म की बुराई पर रोक का नाम रोजा है। सेहरी से रोजा शुरू होता है। नीयत से पुख्ता होता है। इफ़्तार से मुकम्मल होता है। रोजा ख़ुद ही रखना पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होता तो अमीर और मालदार लोग धन खर्च करके किसी ग़रीब से रोजा रखवा लेते। वैज्ञानिक दृष्टि से रोजा स्वास्थ्य यानी सेहत के लिए मुनासिब है। मज़हबी नजरिए से रोजा रूह की सफाई है। रूहानी नजरिए से रोजा ईमान की गहराई है। सामाजिक नजरिए से रोजा इंसान की अच्छाई है।