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अररिया: कबाड़ में तब्दील हुईं थानों में जब्त गाड़ियां,सरकार को हो रही राजस्व की हानि

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बिहार न्यूज़ लाइव अररिया डेस्क वरीय संवाददाता अंकित सिंह /अररिया। पुलिस द्वारा जब्त किए गए वाहन कानूनी जटिलता की वजह से विभिन्न थानों में सड़ रहे हैं। वाहनों की भरमार की वजह से अधिकांश थाने पूरी तरह से कबाड़ खानों में तब्दील होते नजर आ रहा है। थानों में सड़ने वाले वाहनों में दो पहिया वाहनों की संख्या अधिक है। ट्रक और हल्के वाहन भी थाना परिसर में जगह घेरे हुए है। कई वर्षो से तेज धूप,बरसात व पाला की मार झेल रहे अधिकांश वाहन सड़ चुके हैं। जिन्हें कौड़ी के मोल भी नहीं बेचा जा सकता है। कुछ ऐसे थाने हैं जहां पर कर्मियों के रहने की जगह नहीं है। तो जब्त किये गये वाहनों के रखरखाव की बात जुदा है। जब्त वाहनों में कुछ चोरी की है तो कुछ दुर्घटना के अंजाम में जब्त किये हैं।

कुछ ऐसे वाहन हैं जिसका अवैध सामानों की तस्करी में प्रयोग किया गया है। और उस वाहन को पुलिस ने जब्त किया है। लोगों की मानें तो पुलिस द्वारा जब्त किये गये वाहनों को छुड़ाने के लिए होने वाली लंबी चौड़ी प्रक्रिया से बचने के लिए लोग वाहनों को नहीं छुड़ाते हैं। क्योंकि ऐसे अधिकांश वाहन होते हैं जिनका न तो टैक्स जमा रहता है और नहीं फिटनेस। इन सारी औपचारिकताओं को पूरा कर वाहन छुड़ाने में नौ की लकड़ी नब्बे खर्च वाली कहावत चरितार्थ होती है। प्रत्येक वर्ष पुलिस द्वारा अभियान चलाकर वाहनों को पकड़ा जाता है। जिससे लगातार संख्या में इजाफा होते जा रहा है। वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण जिले के अधिकांश थाना पूर्ण रूप से कबाड़ खाना की शक्ल अख्तियार कर चुका है। इस संबंध में वरीय पदाधिकारी भी सटीक उत्तर देने में ना नुकुर करते रहते हैं। वे कहते हैं कि नीलामी की प्रक्रिया करने के बाद हीं वाहनों को थाना से हटाया जाएगा।

क्या है नियम

नियमानुसार लावारिस अवस्था में बरामद या जब्त वाहन के छह माह बाद निस्तारण की प्रक्रिया शुरू की जानी होती है। वाहन बरामद होने पर पुलिस पहले उसे धारा 102 के तहत पुलिस रिकॉर्ड में लेती है। बाद में न्यायालय में इसकी जानकारी दी जाती है। न्यायालय के निर्देश पर सार्वजनिक स्थानों पर पंपलेट आदि चिपकाकर या समाचार पत्रों के माध्यम से उस वाहन से संबंधित जानकारी सार्वजनिक किये जाने का प्रावधान है ताकि वाहन मालिक अपना वाहन वापस ले सके।


जटिल होती है नीलामी प्रक्रिया

लावारिश या किसी मामले में जब्त वाहन के निस्तारण की प्रक्रिया काफी लंबी होती है। पहले तो पुलिस थाना स्तर पर इंतजार करती है कि वाहन मालिक आकर अपना वाहन ले जाए। काफी इंतजार करने के बाद भी जब मालिक नहीं आता है,तब न्यायिक प्रक्रिया शुरू की जाती है इसमें काफी समय लगता है। पुलिस सूत्रों के अनुसार किसी मामले में जब्त की गयीं गाड़ियां तब तक थाने में लगी रहती हैं,जब तक पूरे मामले का निष्पादन न हो जाये और कोर्ट का आदेश न मिले। कोर्ट के आदेश मिलने के बाद हीं गाड़ियों को रिलीज किया जाता है। कारण यह है कि मामले में जब्त की हुई गाड़ियों को कोर्ट में प्रस्तुत करना पड़ता है। वहीं जब्त लावारिस गाड़ियों का आदेश मिलने के बाद रिलीज किया जाता है।

जब्त वाहनों में शामिल हैं कई चोरी की गाड़ियां

थाने में जब्त कई गाड़ियां चोरी की हैं तो कई गाड़ियों से अपराधियों ने घटना को अंजाम दिया है। अनुसंधान के क्रम में मामला सामने आने पर पुलिस उन गाड़ियों को जब्त कर थाने में रख देती हैं। मामले का जब तक निष्पादन नहीं होता है तब तक गाड़ियां थाने में लगी रहती है। कुछ गाड़ियों को चिह्नित कर उनके स्वामियों को सौंप दिया जाता है,तो कई गाड़ियां थाने में हीं सड़ जाती है।

इस संबंध में क्या कहते हैं पूर्णिया प्रश्रेत्र के डीआईजी विकास कुमार

थाने में जब्त गाड़ियां कोर्ट के आदेश पर रिलीज किया जाता है। जब तक कांड का निष्पादन कोर्ट द्वारा नहीं होता है,तब तक पुलिस गाड़ियों को रिलीज नहीं करती है,जिसके कारण थाने में गाड़ियों को लगाना पड़ता है।

 

 

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