*श्रावण शिवरात्रि पर बुधवार को कभी भी जलाभिषेक करें, भगवान शिव की कृपा से शुभ फल की प्राप्ति होगी-श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज*
*भगवान शिव तो कालों के काल महाकाल हैं, उनके पूजन व अभिषेक में भद्रा का कोई असर नहीं होता
(हरिप्रसाद शर्मा) ग़ाज़ियाबाद:सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर के पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता व दिल्ली संत महामंडल के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि बुधवार 23 जुलाई को श्रावण शिवरात्रि का जलाभिषेक प्रातःसे देर रात्रि तक कभी किया जा सकेगा। कुछ भक्तों में भद्रा को लेकर संशय है, मगर वे किसी भी संशय में ना पडे और बुधवार को जब भी समय मिले, भगवान दूधेश्वर का जलाभिषेक करें। महाराजश्री ने कहा कि भद्रा या कोई ग्रह दोष हो, उसका असर मनुष्य पर तो हो सकता है, मगर भगवान पर उसका कोई असर नहीं होता है।
वैसे भी भगवान शिव तो मृत्युंजय हैं। कालों के भी काल महाकाल हैं, तो भद्रा का असर उनकी पूजा-अर्चना पर कैसे हो सकता है। सावन शिवरात्रि पर प्रातः 5.37 से दोपहर 3.31 तक भद्रावास योग रहेगा। भद्रा को शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है, मगर कालों के काल महाकाल भगवान शिव के पूजा.अभिषेक पर भद्रा काल के कारण कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अतः भक्त निर्विघ्न होकर प्रातः 4 बजे से लेकर रात्रि 2 तक भगवान शिव का पूजन-अभिषेक करें। भक्त किसी भी समय भगवान का जलाभिषेक करें, भगवान उनसे प्रसन्न होकर अपनी कृपा की वर्षा करेंगे और उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हुए उनके जीवन को सुख-सृमद्धि से भर देंगे। इस बार की श्रावण शिवरात्रि तो और भी खास है क्योंकि कई शुभ योग में भगवान का जलाभिषेक होगा।
23 जुलाई को सर्वार्थ सिद्धि योग, गजकेसरी योग और नवपंचम योग बन रहे हैं। साथ ही कई साल बाद बुधवारी श्रावण शिवरात्रि का योग भी बना है। ऐसे में श्रावा शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक व पूजा करना बेहद शुभ फलदायी रहेगा।
श्रावण शिवरात्रि पर बुधवार को किसी भी समय मात्र एक लोटा जल चढ़ा देने से ही भोलेनाथ प्रसन्न होकर वो फल देंगे, जो वर्षो की तपस्या से भी प्राप्त नहीं होता है। श्रावण शिवरात्रि को ही शिव.पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। अतः ऐसे शुभ दिन पर तो सिर्फ शुभ ही शुभ होगा और भगवान शिव व माता पार्वती दोनों की कृपा प्राप्त होगी।