सारण: भविष्य की पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना अतिआवश्यक – डॉ. सुरेश पाण्डेय 

Rakesh Gupta
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Bihar News Live Desk: भविष्य की पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना अतिआवश्यक – डॉ. सुरेश पाण्डेय 

 

 

गंगा, गंडक और घाघरा नदी से घिरा सारण भारत के प्राचीन केंद्रों मे से एक हैं। नवपाषाण काल से निरंतर अपनी उपस्थिति दर्ज करने वाला चिरांद में एक स्तरीकृत नवपाषाण, ताम्रपाषाण और लौह युग की बस्ती है सारण की भौतिक और सांस्कृतिक निरंरता का प्रमाण हैं। नवपाषाण काल की बस्तियों (2500-1345 ईसा पूर्व) में छोटी गोलाकार झोपड़ियों और गेहूं, चावल, मूंग , मसूर और मटर की छोटे पैमाने पर खेती के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ पत्थर और हड्डी से बने औजार मिले हैं, हालाँकि हड्डी की संख्या ज़्यादा थी। हथौड़े, चक्की, मूसल, चक्की के पत्थर और गेंदें भी मिली हैं। आधुनिक काल में महाराजा फतेह बहादुर शाही के ब्रिटिश सत्ता के प्रतिरोध से स्वतंत्रता तक भारतीय स्व में जागरण में सारण की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। नवपाषण काल से अबतक सारण कि भौतिक और सांस्कृतिक निरंतरता सारण के इतिहास कि महत्वपूर्ण विशेषता हैं। उपरोक्त बातें अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के क्षेत्रीय संगठन मंत्री (उत्तर पूर्व क्षेत्र ) डॉ.सुरेश कुमार पाण्डेयजी ने जय प्रकाश विश्वविद्यालय छपरा में इतिहास संकलन समिति उत्तर बिहार के विश्वविद्यालय इकाई के अगस्त माह की मासिक बैठक में कहा।

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सांस्कृतिक विरासत को समझते हुए अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के क्षेत्रीय संगठन मंत्री( उत्तर पूर्व क्षेत्र ) डॉ सुरेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि समाज के व्यक्तियों या समूहों की जीवनशैली जो भाषा, कला, कलाकृतियों और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होने वाले उनके गुणों में व्यक्त होती है। यह पूर्वजों, उनके विश्वासों और उनके जीवन जीने के तरीके के बारे में बताती है। यह मूर्त या अमूर्त हो सकती है। मूर्त सांस्कृतिक विरासत का अर्थ है वे चीजें जिन्हें कोई व्यक्ति भौतिक रूप से संग्रहीत और स्पर्श कर सकता है। इसमें कपड़े, स्मारक और पुरातात्विक स्थल शामिल हैं। अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का अर्थ है ऐसी चीजें जो बौद्धिक रूप से मौजूद हैं। उनके पास मूल्य, विश्वास, सामाजिक प्रथाएँ, त्यौहार आदि होते हैं। भविष्य की पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना आवश्यक है। सारण प्रक्षेत्र की विशिष्ट मूर्त और अमूर्त संस्कृतिक परम्परा रही हैं। जिसके संरक्षण और दस्तावेजीकरण की आवश्यकता हैं।

 

विश्वविद्यालय इकाई की मासिक बैठक को सम्बोधित करते हुए इतिहास संकलन समिति उत्तर बिहार के संपर्क एवं प्रचार प्रमुख डॉ रितेश्वर नाथ तिवारी ने विश्वविद्यालय इकाई द्वारा सारण के इतिहास को लिपिबद्ध करने कि कार्ययोजना प्रस्तुत किया। बैठक कि अध्यक्षता करते हुए इतिहास संकलन समिति उत्तर बिहार के उपाध्यक्ष प्रो. राजेश कुमार नायक विश्वविद्यालय इकाई के कार्ययोजना कि प्रशंसा करते हुए प्रान्त एक केंद्र से विश्वविद्यालय इकाई को हार्दिक संभव मदद का आश्वासन दिया। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय संचालन डॉ अभय कुमार सिंह ने तथा धन्यवाद ज्ञापन बिट्टू कुमार सिंह ने किया।बैठक में विश्वविद्यालय इकाई के 30 से ज्यादा सदस्यों ने भाग लिया।

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