बाल सुधार गृह के बालको की होनी चाहिए उम्र की वास्तविक जाँच

Rakesh Gupta
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बिहार न्यूज़ लाइव /सारण डेस्क: छपरा सदर : बाल कैदियों द्वारा गृह रक्षक हत्या में प्रशासन ने शुरू किया मंथन। शनिवार को बाल सुधार गृह में होमगार्ड के जवान चंद्रभूषण सिंह की हत्या के बाद प्रशासन और किशोर न्याय बोर्ड के द्वारा लगातार मंथन किया जा रहा है। इस दौरान किशोर न्याय बोर्ड के निर्णय अनुसार हत्या में शामिल पांच बाल सुधार गृह के बालकों को छपरा से औरंगाबाद भेज दिया गया। पुलिस अपनी कार्रवाई में लगी हुई है। छपरा बाल सुधार गृह में हरदम तरह-तरह के करनामें होते रहते हैं। लेकिन सही साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने तथा कुछ अन्य कारणों के चलते इन अपराधी प्रवृत्ति के बालकों का मनोबल हर दम बढ़ते जाता है। पहली मामला तो यह है कि छपरा बाल सुधार गृह किराए के एक मकान में चलता है। जिसमें इन बालकों को घर से भी ज्यादा सुविधा मुहैया नजर आती है और यहां यह कितने भी करतूत कर ले तो अपने को बालक के नाम पर सुरक्षित रखने में कामयाब हो जाते है। यहां कार्यरत कर्मचारियों की भी इन अपराधी बालकों के सामने कुछ नहीं चलती है। कारण यह है कि चाहे यह बालक हो या बड़े अपराध की दुनिया में प्रवेश तो कर ही गए हैं तो, मानना तो इनको अपराधी चाहिए।

 

छपरा बाल सुधार गृह का बाउंड्री इतना ना छोटा है कि अपराधी प्रवृत्ति के बालक कभी भी इस को इधर से उधर लांग करके जाते हैं। शहर में खुलेआम घूमते हैं और एक किसी भी घटना को अंजाम देकर के चुपचाप पुनः बाल सुधार गृह में प्रवेश कर जाते हैं । एक दो वाकय तो ऐसे ही सुनने में आया है। इसकी सच्चाई चाहे जो हो लेकिन एक कंपाउंडर की हत्या में भी इस बाल सुधार गृह का तार जुड़ा हुआ होने का चर्चा जोड़ो पर था। इस बार तो प्रत्यक्ष रूप से गृह रक्षक की हत्या हो गई है।

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अब प्रश्न यह है कि इन बालकों के पास इतनी दिमाग कहां से आ जाती है की हत्या कर देते हैं। जबकि ज्यादातर किशोर उम्र के अपराधियों को ही इन बाल सुधार गृहों में आश्रय दिया जाता है। इसके पीछे कुछ ना कुछ राज जरूर छुपा हुआ है और पहला राज है कि क्या वास्तव में यह बालक हैं या वयस्क हो गए हैं। कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ी है। क्योंकि प्रायः देखा जाता है कि 18, 19 वर्ष के अपराधियों को भी किसी न किसी प्रकार उम्र प्रमाण पत्र बना करके कम दिखाया जाता है तथा जेल में जाने के बदले इन अपराधी प्रवृत्ति के युवाओं को भी बाल सुधार गृह में भेज दिया जाता है। प्रशासन को इस पर सोचना चाहिए कि इन इन किशोरों को वास्तव में किशोर है कि नहीं।

 

इसका एक मेडिकल चेकअप होना चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। और वास्तव में किशोर ही बाल सुधार गृह में रहे कोई युवा अपराधी नहीं। लेकिन यहां तो जुगाड़ और पैरबी दर लोग कोई ना कोई अपना जुगाड़ टेक्नॉलजी लगाकर उम्र कम करा लेते है।अगर ये अपराधी बालक बनकर ही बड़े बड़े अपराधों को अंजाम तक पहुंचा देते हैं तो वास्तविकता के तह जाने के लिए बाल सुधार गृह में जितने भी अपराधी प्रवृत्ति के बालक अभी हैं इनका वास्तविक उम्र पता लगाने के लिए जरूर कोई ना कोई व्यवस्था प्रशासन को करनी चाहिए।

 

 

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