सड़क दुर्घटना में पीड़ितों की मदद करने वाले कहलायेंगे राहवीर

Rakesh Gupta
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अंकित सिंह,(अररिया)उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश के आलोक में शनिवार को सड़क दुर्घटनाओं में पीड़ितों की मदद करने वाले लोगों अर्थात गुड समेरिटन की सुरक्षा एवं अधिकारों के लिए न्यायिक पदाधिकारियों,पुलिस पदाधिकारियों,चिकित्सा पदाधिकारियों को समाहरणालय परिसर के परमान सभागार में जिला परिवहन पदाधिकारी सुशील कुमार ने प्रशिक्षण दिया। इस प्रशिक्षण में कुल 198 लोग ऑनलाइन माध्यम से शामिल हुए एवं लगभग 30 लोग भौतिक रूप से शामिल हुए।

बैठक में सिविल सर्जन,यातायात उप निरीक्षक,प्रवर्तन अवर निरीक्षक,एनएचएआई के पदाधिकारी आदि उपस्थित थे। जिला परिवहन पदाधिकारी सुशील कुमार ने बताया कि सड़क दुर्घटनाओं में पीड़ितों की मदद करने वाले गुड समेरिटन की सुरक्षा एवं अधिकारों के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा कई दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे व्यक्तियों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए या हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए। साथ हीं पुलिस किसी भी गुड समेरिटन को अपनी पहचान बताने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है।

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इसी प्रकार अस्पताल द्वारा गुड समेरिटन को रोका नहीं जा सकता एवं उनसे किसी भी तरह के भुगतान की मांग नहीं किया जा सकता है। न्यायिक अधिकारियों को गुड समेरिटन को अनावश्यक रूप से शमन करने से बचना चाहिए,ताकि ऐसा करने से गोल्डन आवर में अर्थात दुर्घटना के बाद के पहले घंटे में अधिक से अधिक लोगों की जान बचाई जा सके। साथ हीं साथ सड़क सुरक्षा के मद्देनजर जिला परिवहन पदाधिकारी द्वारा एनएचएआई के कर्मियों को साइनेज बोर्ड लगाने,अवैध कट को बंद करने इत्यादि हेतु निर्देशित किया गया।

सड़क दुर्घटनाओं में पीड़ितों की मदद करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये दिशा-निर्देश सेव लाइफ फाउंडेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2016) मामले पर आधारित हैं और इन्हें तब तक कानून का बल प्राप्त है जब तक संसद कोई नया कानून नहीं बनाती है। बताया गया कि कोई भी राहगीर जो सड़क दुर्घटना के शिकार व्यक्ति की मदद करता है,उसे ‘गुड समैरिटन’ कहा जाता है। इसमें पीड़ित को अस्पताल ले जाना,प्राथमिक चिकित्सा (फर्स्ट ऐड) देना,पुलिस या आपातकालीन सेवाओं को सूचित करना आदि कार्य शामिल हैं। यह सुरक्षा सभी नागरिकों पर लागू होती है,चाहे उनका पेशा कुछ भी हो। बताया गया कि सड़क दुर्घटना के शिकार व्यक्ति की मदद करने पर कोई नागरिक या आपराधिक जिम्मेदारी (सिविल और क्रिमिनल लिएबिलिटी) नहीं होगी।

उन्हें अपनी निजी जानकारी बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। अस्पताल या पुलिस स्टेशन में उन्हें परेशान या हिरासत में नहीं लिया जा सकता। डीटीओ सुशील कुमार ने विभिन्न संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि पुलिस किसी भी गुड समैरिटन को अपनी पहचान बताने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। उनसे पूछताछ केवल एक बार और उनकी सुविधानुसार समय और स्थान पर की जाएगी। बार-बार अदालत के चक्कर लगवाने की बजाय,वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या हलफनामा (एफिडेविट) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अस्पतालों को दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को तत्काल उपचार देना अनिवार्य है।

वे गुड समैरिटन को रोक नहीं सकते या उनसे किसी भी तरह के भुगतान की मांग नहीं कर सकते। अस्पताल के प्रवेश द्वार पर ‘गुड समैरिटन को परेशान नहीं किया जाएगा’ जैसा एक चार्टर प्रदर्शित करना होगा। न्यायिक अधिकारियों को गुड समैरिटन को अनावश्यक रूप से समन करने से बचना चाहिए।

हलफनामा (एफिडेविट) या कमीशन के माध्यम से साक्ष्य लेने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इन दिशा-निर्देशों का मुख्य उ‌द्देश्य लोगों के मन से डर को दूर करना और उन्हें सड़क दुर्घटना पीड़ितों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करना है,ताकि ‘गोल्डन आवर’ (दुर्घटना के बाद का पहला घंटा) में अधिक से अधिक जानें बचाई जा सकें।

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