बिहार न्यूज़ लाइव सुल्तानगंज डेस्क: एस के झा
सुलतानगंज: बाईपास रोड स्थित अंगलोक भवन, सुल्तानगंज मे अंगिका – हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार कैलाश झा किंकर जी की जयंती, अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच और अजगैबीनाथ साहित्य मंच सुल्तानगंज के संयुक्त तत्वावधान में निष्ठा पूर्वक मनाई गई।
इस अवसर पर कैलाश झा किंकर के शुभचिंतक साहित्यकारों में कला साहित्य मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. ब्रह्मदेव नारायण सत्यम, कला मंच के राष्ट्रीय महामंत्री हीरा प्रसाद हरेंद्र, साहित्य परिषद के डॉ. राजेंद्र प्रसाद मोदी , अजगैबीनाथ साहित्य मंच ,सुलतानगंज के अध्यक्ष भवानंद सिंह , साहित्यकार ई. अंजनी कुमार शर्मा, अजगैबीनाथ साहित्य मंच के संयोजक मनीष कुमार गुंज, युवा कवि कुणाल कुनीज कनौजिया ,वरिष्ठ कवि रामस्वरूप मस्ताना,कवियत्री श्रीमती उषा किरण साहा ,साहित्य प्रेमी अमरेंद्र कुमार, कला मंच के प्रदेश महासचिव सुधीर कुमार प्रोग्रामर जी सहित कई गन्य मान् उपस्थित हुए। कार्यक्रम का संचालन अजगैविनाथ साहित्य मंच के अध्यक्ष भवानंद सिंह ने किया।
वक्ताओं ने बारी-बारी से कैलाश झा कंकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की। चर्चा के दौरान सुधीर कुमार प्रोग्रामर ने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में कैलाश जा किंकर की रचनाएं अधिक से अधिक शामिल हो इसके लिए आवश्यकता कदम उठाने की आवश्यकता बताएं। हीरा प्रसाद हरेंद्र ने उन्हें अंगिका के नूर कहके संबोधित किया ।वहीं साहित्यकार भवानंद सिंह ने किंकर को साहित्य का शिखर पुरूष बताते हुए हिन्दी- अंगिका का महान साहित्यकार बताया।बांका से पधारे कवि सरयुग पंडित सौम्य का मंच द्वारा अंग वस्त्र से सम्मान किया गया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उपस्थित कवियों द्वारा कविता पाठ किया गया ।मनीष गूंज ने कहा -किसपर करू भरोसा ,कोई नहीं हमारा ।पहचान छीनता है कोई छीनता निबाला।। वहीं हीरा हरेन्द्र ने कहा -दुश्मन के दिल दहलाना हमरा भी आबै छै ।
भभकी से गुल जलाना हमरा भी आबै छै।। वहीं सुधीर कुमार प्रोग्रामर ने कहा -सोंच के चार चश्मे भी बदले मगर ,घर में बचपन का घर ढ़ूंढ़ते रह गए । बांका से पधारे अंगिका कवि सरयुग पंडित सौम्य ने अंगिका मे कहा -अमरपुर के गुड़ बहिनी बाराहाट के चूड़ा कतरनी ,तैयार होय जा सजनी घूमे मेला पपहरनी ।कुणाल कुणीज कनौजिया ने कहा -मैं नाजुक गुलाब देख रहा हूँ, मैं उनके रंगीने शबाब देख रहा हूँ।।ब्रह्म देव ना. सत्यम ने किंकर जी की रचना पढी-घरे -घर जमाले होय छै,बूढ़ो तें जपाले होय छै। वहीं डा. राजेंद्र प्र. मोदी ने अपनी गजल मे कहा -पेट का अनल बुझाओगे कब ।वहीं भवानंद सिंह ने अपनी कविता मे कहा -ऐ मेरे वजूद ! मेरे वजूद ,मैं ढ़ूढ़ता हूँ तुम्हें ,।
अपनी जिंदगी के संगीत में ,स्वर -अधिस्वर के मध्य अपेक्षित आयाम पर ठहरकर ,सा से सा तक हर साँस को जीवंत बना जाने में ,ऐ मेरे वजूद ,मैं ढूंढता हूँ तुम्हें।कविता पाठ करने वालों में हीरा प्र. हरेंद्र ,ब्रह्मदेव नारायण सत्यम ,सरयुग पंडित सौम्य ,सुधीर कुमार प्रोग्रामर ,डा. राजेंद्र प्र. मोदी ,अरविंद कुमार मुन्ना ,भवानंद सिंह ,मनीष कुमार गूंज ,कुणाल कुनीज कनौजिया ,रामस्वरूप मस्ताना ,उषकिरण साहा ,अंजनी शर्मा आदि शामिल थे।कार्यक्रम के अंत में सभी साहित्यकारों ने 2 मिनट का मौन रखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।