बिहार न्यूज़ लाइव अररिया डेस्क भरगामा/अररिया.
कभी किसान प्राकृतिक प्रकोप सूखा,बाढ़,आंधी तो कभी मंदी के दौर से गुजरते रहे हैं. खासकर भरगामा के किसानों की बाढ़ के प्रकोप से हर वर्ष कमर टूट जाती है. महंगे खाद बीज,बैंक से कर्ज लेकर खेती करते हैं,लेकिन हर वर्ष किसानों को तबाही का सामना करना पड़ रहा है. इस कारण किसान बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं. यदि अररिया में फसल आधारित उद्योग लगा होता तो शायद आज के समय में किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक होती.
भरगामा क्षेत्र में हजारों एकड़ से ज्यादा में किसान मक्के की फसल लगाते हैं,किंतु बढ़ती मंहगाई के कारण खाद,बीज,सिचांई आदि में काफी खर्च हो जाता है. हालांकि किसान उपज बेहतर कर लेते हैं पर भंडारण की व्यवस्था न होने के कारण फसल को औने-पौने दामों में बेचने पर मजबूर होना पड़ता है. मक्के की फसल में लगभग 40 हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च हो जाता है. उस अनुपात में किसानों को मुनाफा नहीं हो पाता है. इसका मुख्य कारण मंडी का अभाव है.
इस संबंध में किसान बब्लू सिंह बताते हैं कि अब सरकारी स्तर पर जब तक अररिया में कृषि आधारित उद्योग नहीं लगाया जाएगा तब तक किसानों की स्थिति बेहतर नहीं हो सकती है. वहीं इस संबंध में किसान जितेन्द्र सिंह बताते हैं कि किसान दोहरी नीति का सामना कर रहे हैं. फसल हो ना हो प्रति वर्ष सरकारी दफ्तर में किसान को लगान पहुंचाना है. किसी कारण लगान नहीं जमा करने पर किसानों को ब्याज सहित लगान देना पड़ता है. वहीं किसान रमेश भारती बताते हैं कि यदि जिले में मात्र एक फसल आधारित उद्योग लग जाये तो किसान मालामाल हो जायेगा.
वहीं किसान निरंजन कुमार मिश्र बताते हैं कि इस क्षेत्र में मक्के की खेती अधिक होती है. जरूरत है कि किसानों को सरकारी स्तर पर खाद,बीज कम कीमत पर मुहैया कराया जाये. साथ हीं मक्के का मूल्य निर्धारित किया जाये. साथ हीं कृषि आधारित उद्योग को जिले में बढ़ावा दिया जाये. वहीं किसान आशीष सोलंकी बताते हैं कि प्रखंड व जिला में कृषि आधारित छोटे-छोटे उद्योगों को बढावा मिलना चाहिये. अगर अपने प्रखंड और जिले का सच में विकास चाहिए,तो सबसे पहले कृषि और उत्पादन पर ज्यादा ध्यान देना होगा. लेकिन इसे कोई पार्टी अपनी प्राथमिकता में नहीं रखती.
किसानों की उपजायी फसलों पर आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना होगा,जिससे गांवों और शहरों का फासला कम हो सके. आज के हालात में किसानों को सरकारी सब्सिडी की जरूरत नहीं है,क्योंकि जितने भी अनुदान सरकार लाती है,उसका 80 से 90 प्रतिशत भाग सरकारी स्टाफ,बैंक और बाहरी बिचौलियों में बंट जाता है और किसान ठगा महसूस करता है.
इसके उलट,किसानों के लिए घोषित समर्थन मूल्य में सुधार करके सीधे तैयार फसल नकद बिकवायी जाये तो कृषि और कृषक को फायदा होगा. उन फसलों पर आधारित उद्योग जब अपने देश में लगेंगे तो रोजगार के भी अवसर बढ़ेंगे और यही भरगामा प्रखंड और अररिया जिले का सही विकास होगा.