सारण/बनियापुर । स्वामी और सेवक का संबंध ही राम कथा की आत्मा है। यह बातें प्रखंड के चेतन छपरा में श्री रामचरित मानस नवाह पाठ के नौवें दिन अयोध्या धाम से पधारे अशोक जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कही। उन्होंने स्वामी श्री राम तथा सेवक हनुमंत लाल जी के संबंधों का वर्णन करते हुए कहा कि जो व्यक्ति हमारे लिए, हमारे साथ काम करता है, उसके दो ही कारण हो सकते हैं।
एक तो यह जोकि सब जानते हैं कि धन का अभाव पूरा करने के लिए काम करता है। दूसरा लेकिन अधिक महत्वपूर्ण कि पैसों और सुविधाओं के अतिरिक्त हमें अपनी सेवाएं देने में उसे आत्मिक संतोष मिलता है। दोनों स्थितियां सही हैं लेकिन किसे अपनाना है यह तय करने के लिए भी दो ही विकल्प हैं। पहला यह कि अपनी योग्यता से स्वामी के कार्यों को करने में अपनी काबिलियत दिखाए और दूसरा यह कि योग्यता में चाहे कम ही हो, लेकिन उसका अपने स्वामी और कार्य के प्रति समर्पण भाव रखना, किसी भी कार्य को सर्वश्रेष्ठ बना देता है। यही राम कथा है।
इसीलिए राम का महत्व है और उन्हें पुरुषोत्तम कहा गया है। यदि हम राम के स्वामी रूप को देखें तो वे अपने सभी सेवकों को अपने पीछे चलने वाला नहीं बनाते बल्कि उन्हें इतना ऊर्जावान बना देते हैं कि वह बिना किसी प्रयास के राम के साथ ही नहीं चलने लगते बल्कि उनसे भी आगे निकलकर स्वामी के कार्यों को पूरा करने में अपनी जान तक जोखिम में डालने को तैयार हो जाते हैं। वहीं वाराणसी से पधारे नीरज जी महाराज ने प्रेम कथा का वर्णन किया।
तो वृन्दावन से पधारी साध्वी निकुंज मंजरी चंचलाजी ने अपने भक्ति मई स्वर से श्री राम तथा हनुमंत जी के संबंधों का वर्णन किया। जहां सैकड़ों श्रोताओं ने इनके प्रवचन से भाव विभोर हो गए। जिस यज्ञ को सफल बनाने के लिए समिति के अध्यक्ष घनश्याम राय, सच्चितानंद शर्मा, अवध किशोर सिंह, त्रिपुरारी सिंह साहित अन्य सभी लोग सक्रिय है।