शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ, कलाकार, साहित्यकार के तौर पर उनका व्यक्तित्व और कृतित्व समाज का करता रहेगा अनंतकाल तक मार्गदर्शन
✍️ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक
कुछ व्यक्ति जब तक जीवित रहते हैं अपनी आभा से चतुर्दिक वातावरण को आलोकित करते रहते हैं लेकिन कुछ व्यक्तित्व जीवंत प्रकृति के होते हैं जिनके इस दुनिया में नहीं रहने पर भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की पावन स्मृतियां हमें उनको याद करने और उनके आदर्शों के पालन के लिए प्रेरित करती रहती है। कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे स्वर्गीय केदारनाथ पांडेय। उनका व्यक्तित्व शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ,समाजसेवी और कलाकार के तौर पर श्रृंगारित था। व्यक्तित्व की आभा इतनी प्रभावी थी कि आज उनकी द्वितीय पुण्यतिथि मन रही है लेकिन उनको श्रद्धा के सुमन अर्पित करने के भाव में हर व्यक्ति की आँखें नम हो जा रही है। सूबे के मुखिया नीतीश कुमार हो या विधान परिषद् के सभापति अवधेश नारायण सिंह सभी उनके शिक्षा में गुणात्मक सुधार और शिक्षक हितों के संदर्भ में उनके उल्लेखनीय योगदान का वंदन करते दिखते हैं। उनके पुत्र आनंद पुष्कर भी अपने स्वर्गवासी पिता के प्रति अपार श्रद्धा को देखकर ऊर्जस्वित और प्रेरित हो उठते हैं और विश्वास दिलाते हैं कि पिता के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए वे कृतसंकल्पित हैं।
एक बेहद साधारण से परिवार में जन्मे केदारनाथ पांडेय के लिए बचपन से ही पढ़ाई से लगाव रहा। उनके इस लगाव को परिवार का भी भरपूर समर्थन मिला। परिवार ने आर्थिक संकट आने पर भी उनके पढ़ाई पर कोई बाधा उत्पन्न नहीं होने दी। उनके बड़े भाई ने पिता के दायित्व का निर्वहन किया। उन्होंने शिक्षक के तौर पर जब अपने करियर की शुरुआत करनी चाही तो उनकी कर्मस्थली सीवान ही बना। कई स्कूलों में अध्यापन कराया फिर एक स्कूल में प्रधानाध्यापक भी बने। एक स्कूल की स्वयं स्थापना और संचालन भी किया। इस दौरान उन्होंने शिक्षा क्षेत्र की चुनौतियों को संवेदनशीलता से महसूस भी किया। शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक परिवर्तन लाने की आवश्यकताओं को भी समझा, जो भविष्य में उनके विधान परिषद् के सदस्य के तौर पर एक बेहतर भूमिका के निर्वहन का आधार भी बना।
शिक्षक के रुप में उनका व्यवस्थित सफर 1965 में उच्च विद्यालय कैलागढ़ में अध्यापक के तौर पर शुरू हुआ। 1970 में सीवान के विद्याभवन भवन शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में शिक्षा संकाय के अंशकालिक प्राध्यापक नियुक्त हुए। 1973 में सीवान जिला माध्यमिक शिक्षक संघ के सचिव चुने गए। 1992 में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव चुने गए। शिक्षकों की समस्याओं को संवेदनशील तरीके से समझने के उपरांत उन्होंने राजनीति की ओर रुख किया। 2002 में बिहार विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए। फिर विधान परिषद के याचिका समिति के सदस्य निर्वाचित हुए। फिर बिहार विधान परिषद के निवेदन समिति के भी अध्यक्ष बने। 2016 में वे बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष बने। शिक्षक संघ के नेता और विधान परिषद् के सदस्य के तौर पर उन्होंने शिक्षकों की समस्याओं को राजनीतिक स्तर पर संज्ञान में लाने और उन समस्याओं के स्थाई निराकरण के लिए प्रभावी रणनीति के निर्धारण में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। शिक्षक समुदाय से जुड़ी उनकी संवेदनशीलता ने शिक्षा में गुणात्मक सुधार के संदर्भ में भी सकारात्मक भूमिका का निर्वहन किया।
स्वर्गीय केदारनाथ पांडेय की शिक्षा और राजनीति के इतर सांस्कृतिक स्तर पर उनकी सक्रियता थी। जिससे उनका व्यक्तित्व एक बहुआयामी प्रतिभा का धनी बन जाता है। वे एक उच्च कोटि के लेखक भी थे। उन्होंने तकरीबन 16 पुस्तकें भी लिखीं। नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार के तौर पर उनके शब्द जादू करते दिखते हैं। जब वे रंगकर्मी के तौर पर मंच पर उतरते थे तो तालियां भी उन्हें दाद देती थक जाती थी। वे सामाजिक विसंगतियों को भी अपने लेखनी से उजागर करते चले और अपने विचार की आभा से समाज को भी आलोकित करते चले। संपादक के तौर पर उनकी भूमिका ने पत्रकारिता को भी एक संवेदनशील दिशा दिया। कम्युनिस्ट विचारधारा ने उन्हें प्रभावित किया और समाज के समावेशन और समरसता लाने के लिए वे ताजिंदगी प्रयासरत रहे।
अपनी तार्किक विचार मंथन की शैली के आधार पर उन्होंने अपनी विचारधारा को समाज के समक्ष रखा। उनकी चिंतनशैली ने समाज के विभिन्न आयामों को नई ऊर्जा प्रदान किया। उनके व्यवहार की मृदुलता, सरलता, स्पष्टता ने सभी पर अपना प्रभाव डाला और उनकी लोकप्रियता को आसमानी ऊंचाई प्रदान की। उनके व्यक्तित्व के माधुर्य ने उनके विरोधियों पर भी रूहानी विजय प्राप्त किया। अनुशासन और व्यवहारिकता के प्रति उन्होंने जो सामंजस्य स्थापित किया वह सदियों तक विद्वत समाज के लिए अनुकरणीय बना रहेगा।
आज के राजनीतिज्ञ परिप्रेक्ष्य में बात जब मूल्यों की होती है, बात जब नैतिकता की होती है तो स्वर्गीय केदारनाथ पांडेय स्मृति पटल पर सबसे पहले आते हैं। उन्होंने बिहार की राजनीति में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई, जो सदियों तक मिसाल के तौर पर राजनीतिक परंपरा का मार्गदर्शन करती रहेगी। बिहार की राजनीति में जब भी बात मूल्यों की होगी तो आदर्श के तौर पर स्वर्गीय केदार नाथ पांडेय ही याद किए जायेंगे। अपने 15 वर्षों के विधान परिषद के सदस्य के तौर पर कार्यरत रहने के दौरान उन्होंने उच्च सदन में राजनीतिक मर्यादा का एक स्तरीय प्रतिमान खड़ा किया। उन्होंने केवल समस्याओं को ही संज्ञान में नहीं लाया अपितु समाधान की ठोस और प्रभावी दिशा भी दिखाई।
आज जबकि समाज में शिक्षा, समाज के तौर पर कई चुनौतियां दिखाई देती हैं ऐसे में स्वर्गीय केदारनाथ पांडेय का व्यक्तित्व और कृतित्व हमारा सटीक मार्गदर्शन करता दिखता है। आवश्यकता इस बात की है कि हमारी राजनीतिक संस्कृति, शैक्षणिक परिवेश और सांस्कृतिक जीवंतता के संदर्भ में स्वर्गीय केदारनाथ पांडेय के मधुर स्मृतियों को संजोकर एक प्रतिमान के तौर पर प्रतिस्थापित किया जाय।