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वाराणसी: देवउठनी एकादशी पर गंगा घाटों पर उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब

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*गंगा स्नान कर, किया दान पुण्य*

बिहार न्यूज़ लाइव वाराणसी डेस्क वाराणसी। काशी के प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी के पावन अवसर पर गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ा। लोगों ने गंगा स्नान किया। श्रद्धालुओं ने पुरोहितों से विधिविधान से पूजन-अर्चन कराया। वहीं पुरोहितों व भिखारियों को दान पुण्य किए। वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, अस्सी सहित विभिन्न घाटों पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रही। इस दौरान सुरक्षा के मद्देनजर वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस प्रशासन अलर्ट रहा।

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श्रद्धालु भोर से ही गंगा घाटों पर उमड़ पड़े। स्नान के पश्चात श्रद्धालु आचमन कर अपने क्षमता अनुसार दान दक्षिणा कर रहे थे। वाराणसी के अस्सी घाट से लेकर तुलसी घाट, केदारघाट, विश्व प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट, डॉ राजेंद्र प्रसाद घाट होते हुए अधिकतर घाटों पर श्रद्धालु गंगा स्नान कर रहे थे। गंगोत्री सेवा समिति दशाश्वमेध घाट के तीर्थ पुरोहित अजय कुमार तिवारी ने बताया कि देवउठनी एकादशी को स्नान दान कर लोग पुण्य के भागी बनते हैं। आज से पांच दिन पंचगंगा का स्नान शुरू होता है, जो पूर्णिमा देव दीपावली के दिन तक चलता है। ऐसी मान्यता है कि मां गंगा स्वयं आती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती है। इसलिए एक दिन के स्नान से एक माह के गंगा स्नान का फल मिलता है। लोगों के सभी पाप पतित पावनी मां गंगा में धुल जाते हैं।

*देवउठनी एकादशी की क्या है मान्यता*

शास्त्रों व मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष के एकादशी वाले दिन झीरसागर में निद्रा के लिए जाते हैं। जहां वह चार मास विश्राम करते हैं। इन चार महीना में हिंदू धर्म के अनुसार मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। इसके पश्चात कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी वाले दिन भगवान श्री हरि विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं। मंदिरो में भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना कर शंख ध्वनि से उन्हें जगाया जाता है। इसके साथ ही साथ आज शाम में शालिग्राम एवं माता तुलसी की पूजा (तुलसी के पौधे के रुप में) की जाती है।

 

मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय हैं। इसी के चलते आज के दिन अधिकतर घरों के आंगन में तुलसी के पौधे की विधि विधान पूर्वक पूजा की जाती है। उन पर वस्त्र आदि चढ़ाकर प्रतीकात्मक स्वरूप भगवान श्री हरि विष्णु से विवाह संपन्न कराया जाता है। जिसे हम लोग तुलसी विवाह कहते हैं। इसीलिए आज के दिन तुलसी विवाह भी मनाया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि तुलसी के पौधे में माता लक्ष्मी का वास होता है। इसके बाद ही सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।

 

 

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