Bihar News Live
News, Politics, Crime, Read latest news from Bihar

सारण: पुण्यतिथि पर याद किए गए लोककवि भिखारी ठाकुर संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल हो भोजपुरी

46

- sponsored -

 

 

बिहार न्यूज़ लाईव सारण डेस्क: छपरा

भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान के तत्ववाधान में बुधवार को भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले साहित्यकार भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि मनाई गई। भिखारी ठाकुर ने अपने गीतों एवं नाटकों के माध्यम से भोजपुरी भाषा को लोकप्रिय बनाकर पूरे दुनिया में फैलाने का काम किया। सारण जिले के एक छोटे से गाँव कुतुबपुर दियारा में 18 दिसम्बर 1887 को एक नाई परिवार में भिखारी ठाकुर का जन्म हुआ था। गरीबी के कारण वह अधिक शिक्षा-दीक्षा नहीं ग्रहण कर सकें और कम उम्र में ही रोजगार के लिए उन्हें अपना गांव छोड़कर खड़गपुर जाना पड़ा। यही कारण है कि भिखारी ठाकुर की नाटकों में कहीं ना कहीं विछोह, वियोग की पीड़ा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

गांव से दूर शहर में मजदूरी कर रहे भिखारी ठाकुर को मजदूरों के संगत ने गीत गाने की लत लगा दी। वह इन मजदूरों के साथ टोले-मुहल्ले में गाते फिरने लगे। उन मजदूरों के दुःख, दर्द उनकी गीतों के बोल होते थे, जिससे उनकी जगह-जगह पर बुलाहट होने लगी। इससे भिखारी ठाकुर को यह एहसास हुआ कि गा-बजाकर कर भी रोजी चलाई जा सकती है।

एक दिन वह सब कुछ छोड़ कर अपने गांव लौट आए और अपने कुछ मित्रों के साथ एक मण्डली बना रामलीला, भजन और कीर्तन आदि करने लगें। हालांकि उनके अंदर अभी भी अपने गांव से दूर रह रहे उन मजदूरों के लिए दर्द भरा पड़ा था, जिसे वे अपने नाटकों में मंचन कर जीवंत करने लगे।

- Sponsored -

उनकी नाटकों में समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों की पीड़ा और दुर्दशा साफ तौर पर झलकती है। उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों पर गहरा प्रहार किया। बिदेसिया, बेटी बेचवा, गबर घिचोर, बिधवा विलाप, पुत्रबध, कलयुग प्रेम, भाई बिरोध, गंगा स्नान उनके कुछ प्रमुख लोकनाटक हैं।
‘बिदेसिया’ इनके नाटकों में सबसे सफल नाटक है, जिसमें गांव के एक युवक ‘बिदेसी’ की शादी एक युवती ‘प्यारी सुंदरी’ से होती है। बेरोजगारी के चलते बिदेशी कलकत्ता (अब कोलकाता) जाने की सोचता है पर प्यारी सुंदरी उसे जाने से रोकती है। बिदेशी किसी तरह तो लुक छुप कर कलकत्ता रवाना हो जाता है, लेकिन प्यारी सुंदरी का रो-रो कर बुरा हाल हो जाता है। वियोग में वह “पियवा गइले कलकत्तावा रे सजनी…” गाती है ।

कलकत्ता में बिदेशी का संसर्ग किसी अन्य महिला से हो जाता है और उससे दो बच्चे भी जो जाते हैं। प्यारी के भेजे बटोही के अनुनय-विनय पर बिदेशी गांव आता है। दोनों एक दूसरे के लिए बिलख-बिलख कर रोते हैं। वहीं बिदेसिया की कलकत्ता की पत्नी भी कलकत्ता से गांव आकर पहली पत्नी के साथ रहने का आग्रह करती है। कोमल हृदय प्यारी उसे और उसके बच्चों को अपने साथ रहने की अनुमति देती है। पूरा परिवार हंसी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगते है। लोगों के आँखों को भर देने वाले इस सुखांत नाटक का मंचन आज भी भोजपुरी समाज में होता है।
कुरीतियों पर प्रहार करने वाला इनका एक और नाटक “बेटी बेचवा” में पुराने समय में बेटियों को बुजुर्ग पति के साथ ब्याहने और उनके साथ होने वाली प्रताड़ना को दिखाता है। भिखारी ठाकुर ने कई किताबें भी लिखी जो वाराणसी, हावड़ा और छपरा से प्रकाशित हुई ।

कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोकसंगीतकार और अभिनेता भिखारी ठाकुर की शख्सियत ने देश की सीमा तोड़ विदेशों में भी भोजपुरी को पहचान दिलाई। वहीं इनके नाटकों में होने वाला लौंडा नाच आज भी बिहार, उत्तर-प्रदेश और बंगाल में देखने को मिलता है।

भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी जागरण के संदेश वाहक, लोकगीत और भजन-कीर्तन के अनन्य साधक इस अमर कलाकार का देहावसान 10 जुलाई 1971 को हुआ। आज भी इनकी मण्डली नाटकों के माध्यम से भिखारी ठाकुर और उनके विचारों को जीवंत किए हुए है। पुण्य तिथि पर भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान के बैनर तले उनके पैतृक गाँव कुतुबपुर में
भिखारी ठाकुर सांस्कृतिक मंच पर लोक कला की प्रासंगिकता विषय पर आधारित एक संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की शुरुआत भिखारी ठाकुर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर की गई। अध्यक्षता राजकिशोर प्रसाद ठाकुर ने एवं संचालन भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान के अध्यक्ष डॉ सुनील प्रसाद ने किया। विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ सुनील ने कहा कि जमाने के हर दौर में लोक कला की उपयोगिता प्रासंगिक रही है। जनता के हितों को लेकर की गई इसकी शुरूआत अब बाजार का भी एक सशक्त माध्यम बनती जा रही है। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने गुलामी के दौर में लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की रचनाओं को सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ शुरू किए सांस्कृतिक आंदोलन का कारगर हथियार बताया। साथ ही वर्तमान समय में लोक कला को और समृद्ध करने की आवश्यक्ता बताई। वक्ताओं ने भोजपुरी भाषा को सरकारी मान्यता दिलाने से लेकर उसे और सशक्त बनाने पर बल दिया। इस मौके पर वक्ताओं ने भोजपुरी भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करने, मरणोपरांत भिखारी ठाकुर को भारत रत्न /पदमश्री देने सहित उनके रचनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने की माँग की गई। इस मौके पर भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र राकेश ठाकुर, सुनील ठाकुर, डॉ सुभाष शर्मा आदि उपस्थित थे।

 

साथ ही इस मामले में स्थानीय जन प्रतिनिधियों की उपेक्षापूर्ण नीति की निदा करते हुए भोजपुरी भाषा से जुड़े संगठनों की संयुक्त पहल की आवश्यक्ता बताई। संबोधित करने वालों में डा. अरविद राय, कृष्ण यादव कृष्णेंदु, भरत सिह सहयोगी, स्वामी विक्रमादित्य पाल, राजेंद्र राय, गायक धनी पांडेय दिनेश प्रसाद सिन्हा, डा. कुमार शीलभद्र, बाल्मीकि शर्मा आदि शामिल थे। इस मौके पर अमरेश कुमार सिंह, डा. सत्येंद्र कुमार विष्णू, रामजी प्रसाद, राम लखन प्रसाद समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

 

 

- Sponsored -

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

- sponsored -

- sponsored -

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More